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महत्वपूर्ण है इस बार क्वाड देशों की टोक्यो बैठक

राहुल मिश्र
५ अक्टूबर २०२०

टोक्यो में होने वाली क्वाड देशों की मंत्री स्तरीय बैठक के लिए भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर जापान जा रहे हैं. बैठक के केंद्र में चीन से इलाके में बढ़ती चिंता है. चीन की बढ़ती महात्वाकांक्षा इस संगठन को मजबूत कर रही है.

Indien Himalaya-Konflikt | Poster China Präsident Xi Jinping zerrissen
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/A. Solanki

भारत, आस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका की चारपक्षीय मंत्रिस्तरीय बैठक इस हफ्ते 6-7 अक्तूबर को टोक्यो में होने जा रही है. अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पेयो और जापानी तथा आस्ट्रेलियाई विदेशमंत्रियों के अलावा भारतीय विदेशमंत्री एस जयशंकर भी इसमें भाग लेंगे. माना जा रहा है कि बैठक के दौरान आपसी सामरिक और सैन्य साझेदारी बढ़ाने के साथ साथ इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में सहयोग को और पुख्ता करने के मसलों पर चर्चा और चिंतन-मंथन होगा.

क्वाड के इस स्वरूप (क्वाड 2.0) के पहले क्वाड 1.0 में मालाबार युद्ध अभ्यास उसका एक अहम हिस्सा था और तब कोई मंत्री-स्तरीय वार्ता कर इसे संस्थागत रूप देने का कोई विचार भी नहीं था. इन चार देशों का साझा मालाबार सैन्य अभ्यास 2007 में हुआ था जिस पर चीन ने खासा विरोध जताया था. चीन का कहना था कि यह चारों देश उसे घेरने के लिये संयुक्त सैन्य अभ्यास कर रहे हैं जबकि चीन किसी भी देश के खिलाफ नहीं है. इस घटना के बाद आस्ट्रेलिया ने मालाबार चतुर्देशीय सैन्य अभ्यास से खुद को अलग कर लिया था और यही वजह है कि अमेरिका और जापान के परोक्ष समर्थन के बावजूद भारत ने अपने इस युद्धाभ्यास में अभी तक आस्ट्रेलिया को शामिल नहीं किया है. आस्ट्रेलिया के निकलने के बावजूद मालाबार में भारत, जापान और अमेरिका की नौसेनाओं ने अपने युद्धाभ्यास जारी रखे थे. आस्ट्रेलिया के साथ भारत ने हाल के वर्षों में द्विपक्षीय युद्धाभ्यास शुरू किया है. अमेरिका और जापान भी आस्ट्रेलिया को अपने त्रिपक्षीय और द्विपक्षीय सैन्य अभ्यासों में शामिल करते रहे हैं.

भारत चीन सीमा पर तनावतस्वीर: Anupam Nath/AP/picture alliance

बदलते सामरिक परिदृश्य में इस बार कयास लगाए जा रहे हैं कि भारत मालाबार 2020 युद्धाभ्यास में आस्ट्रेलिया को न्योता देगा. हालांकि अभी तक इस पर औपचारिक तौर पर कोई निर्णय नहीं लिया गया है लेकिन आस्ट्रेलिया ने इसमें भाग लेने की अपनी मंशा साफ कर दी है. लेकिन किसी भी विवाद से बचने के लिए भारत में आस्ट्रेलिया की राजदूत ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि आस्ट्रेलिया के मालाबार में हिस्सा लेने को क्वाड की आगामी मंत्री-स्तरीय वार्ता से जोड़ कर नहीं देखा जाना चाहिए क्योंकि मंत्री-स्तरीय वार्ता का संबंध कूटनीति और इंडो-पैसिफिक से है सैन्य अभ्यास से नहीं.

आस्ट्रेलिया और क्वाड के अन्य सदस्य देश कुछ भी कहें चीन के लिए इन दोनों घटनाओं में कोई खास अंतर नहीं होगा. शायद चीन की इन दोनों पर प्रतिक्रिया भी एक जैसी ही आए. क्वाड बैठक के पीछे सबसे बड़ी वजह चीन का बढ़ता आक्रामक रवैया और भारत और जापान के साथ सीमा विवाद के साथ अमेरिका और आस्ट्रेलिया के साथ बढ़ते सामरिक और आर्थिक तनाव मुख्य वजहें हैं. चीन क्वाड को अपने खिलाफ लक्षित सैनिक गठबंधन के रूप में देखता है. इसी तरह वह इंडो पैसिफिक रणनीति को चीन की क्षेत्रीय प्रभुता को घटाने का जापानी प्रयास समझता है.

मनीला में 2017 में क्वाड की पहली बैठक हुई थी, जिसमें इन देशों के राष्ट्र व सरकार प्रमुखों ने हिस्सा लिया था. तब चारों ही देश अपनी अलग अलग प्रेस विज्ञप्तियां लेकर सामने आए थे. भारत की तरफ से चीन पर इन मसौदों में मुखर तौर पर कोई वक्तव्य नहीं दिया गया था. अमेरिका के अलावा सभी देशों ने चीन को लेकर एक गैर-प्रतिरोधात्मक छवि ही प्रस्तुत की थी. आम राय न बन पाने की स्थिति में चार अलग अलग वक्तव्य आए जिसकी मीडिया और टिप्पणीकारों ने यह कह कर आलोचना भी की थी कि क्वाड एक कमजोर और लचर प्लैटफॉर्म है जिसमें हर देश का अलग हित और चीन को लेकर चिंता का अलग अलग स्तर है.

सीमा विवाद के भारत में चीन विरोधी भावना बढ़ीतस्वीर: picture-alliance/AP Photo/A. Qadri

लेकिन अब परिस्थितियां बदल चुकी हैं. जहां भारत के लिए चीन के साथ शांतिपूर्वक विवाद सुलझाने के वुहान और मामल्लपुरम सरीखे उच्चतम स्तर पर संवाद के अनौपचारिक रास्ते बंद होते दिख रहे हैं और महीनों से चल रहा सीमा विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा तो वहीं जापान के साथ भी चीन के विवाद बढ़े हैं. दिलचस्प बात यह भी है कि शिंजो आबे के जाने के बाद भी प्रधानमंत्री योशिहिदे सुगा प्रशासन का चीन को लेकर रवैया वैसा ही है. टोक्यो सम्मेलन के साथ क्वाड पहली बार एक संगठन बनने की राह पर है.

जहां तक अमेरिका का सवाल है तो ट्रम्प का चीन को लेकर रुख साफ और कड़ा है. दक्षिण चीन सागर और ताइवान के साथ साथ व्यापार युद्ध पर भी अमेरिका के रूख में नरमी नहीं आयी है. माइक पॉम्पेयो की आसियान देशों के सालाना बैठक में भी यह बात स्पष्ट तौर पर दिखी. रहा आस्ट्रेलिया का सवाल तो उसने पिछले कुछ महीनों में न चाहते हुए भी चीन के हाथों कई आर्थिक प्रहार झेले हैं और आस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री स्कॉट मारिसन ने भी खुल कर चीन का विरोध किया है.

भारत, जापान और आस्ट्रेलिया के बीच हाल ही में हुए सप्लाई चेन रिलेशंस कोआपरेशन अग्रीमेंट के बाद यह साफ हो गया है कि अमेरिका की तर्ज पर ये देश भी चीन के साथ अपनी अर्थव्यवस्था को डी-हायफेनेट करने में लगे हैं. लद्दाख में पिछले महीनों के सैनिक तनाव के बाद भारत की चीन नीति भी दृढ़ता आई है. वह अमेरिका के करीब जाता भी दिख रहा है. ऐसे में देखना यह है कि टोक्यो में हो रही मंत्री-स्तरीय वार्ता में क्वाड गरजता ही है या बरसने का जज्बा भी रखता है और बैठक के दौरान यह चारों देश किस तरह के समझौतों को अंजाम देते हैं.

(राहुल मिश्र मलाया विश्वविद्यालय के एशिया-यूरोप संस्थान में अंतराष्ट्रीय राजनीति के वरिष्ठ प्राध्यापक हैं.)

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