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समाज

महामारी की आड़ में फैलाई जा रही हैं मुस्लिम विरोधी भावनाएं

११ अप्रैल २०२०

मरकज निजामुद्दीन वाले प्रकरण का इस्तेमाल मुस्लिम समुदाय के खिलाफ नफरत और हिंसा भड़काने के लिए किया जा रहा है. इसमें राजनेताओं, सरकारों, मीडिया और सोशल मीडिया, सब की भूमिका पर प्रश्न चिन्ह लग रहे हैं.

Global Ideas Indien Coronavirus Lockdown in Neu-Delhi
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Hussain

पिछले कुछ सालों में भारत में मुसलमानों के खिलाफ अत्याचार और हिंसा के मामले बढे हैं, लेकिन किसी ने कल्पना नहीं की थी कि ये मामले ऐसे समय में भी चलते रहेंगे जब भारत ही नहीं पूरी की पूरी दुनिया एक महामारी की जद में है. अब ऐसा लग रहा है कि मुस्लिम विरोधी उन्माद फैलाने वालों को महामारी की वजह से एक और बहाना मिल गया है.

हाल में कोरोना वायरस के संक्रमण के बड़ी संख्या में फैलने के एक प्रकरण के बाद इस तरह की गतिविधियों ने तूल पकड़ा. दक्षिणी दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में तबलीगी जमात नामक मुस्लिम धार्मिक संस्था के दिल्ली मुख्यालय 'मरकज निजामुद्दीन' में मार्च महीने के बीच में एक सम्मलेन में शामिल होने के लिए देश-विदेश से हजारों लोग आए थे. अधिकारी मान रहे हैं कि विदेश से इस सम्मलेन में आए किसी यात्री के जरिए कोरोना वायरस यहां आया और फिर सम्मलेन में आए और लोगों में उसका संक्रमण फैल गया. संक्रमित लोग जब दिल्ली से निकल अलग अलग राज्यों में अपने घर वापस गए तो संक्रमण और राज्यों तक भी फैल गया.

आंकड़ों की आड़ में 

केंद्र सरकार और कुछ राज्य सरकारों ने भी इस प्रकरण को विशिष्ट रूप से दर्शाया. केंद्र सरकार की रोजाना होने वाली प्रेस वार्ता में मरकज से संबंधित मामलों के आंकड़े अलग से दिए जाने लगे. दिल्ली सरकार अभी तक रोज मरकज से जुड़े आंकड़े अलग से बताती है. केंद्र सरकार ने यहां तक कह दिया था कि पूरे देश में संक्रमण के जितने मामले हैं उनमें से 30 प्रतिशत से भी ज्यादा मामले मरकज से ही संबंधित हैं. कभी यह नहीं बताया गया कि मरकज से जुड़े कुल कितने मामलों की जांच हुई है और उनमें से कितने प्रतिशत लोग संक्रमित पाए गए हैं.

तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/R. Shukla

इस बात पर भी ध्यान नहीं दिया गया कि पूरे देश में ही होने वाली जांच की संख्या बहुत कम थी. 133 करोड़ लोगों के देश में रोजाना सिर्फ 12-13 हजार सैंपलों की जांच हो रही थी. अल्पसंख्यक मामलों के केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने यहां तक तक कह दिया कि जमात के सदस्यों ने 'तालिबानी जुर्म' किया है. 

मीडिया ने बनाया माहौल

भारत में मीडिया के एक धड़े ने पिछले कुछ सालों में मुस्लिम विरोधी होने की पहचान ही बना ली है. यह धड़ा भी इस अभियान में जुड़ गया. कुछ अखबारों, न्यूज एजेंसियों और टीवी चैनलों में रोज ही तब्लीगी जमात के लोगों को बुरी रोशनी में दिखाने वाली असत्यापित खबरें आने लगीं. कई खबरों का तो खुद पुलिस को खंडन करना पड़ा.

 
ये खबरें फिर कुछ टीवी न्यूज चैनलों पर रोज शाम ऊंची आवाज में होने वाली बहसों की खुराक बनने लगीं और कोरोना जिहाद का हैशटैग चल पड़ा.  
 
सोशल मीडिया और व्हाट्सऐप ने इस अभियान को और आगे बढ़ा दिया. तरह तरह के झूठे और भड़काऊ संदेश और वीडियो भेजे जाने लगे.

कहीं बहिष्कार तो कहीं गोली

इन सब का देश में लोगों के दिमाग पर क्या असर पड़ा यह अब सामने आ रहा है. एक पूरा का पूरा मुस्लिम विरोधी सेंटीमेंट ही जन्म ले चुका है. कहीं मुस्लिम समुदाय के लोगों को कॉलोनियों में आने नहीं दिया जा रहा है तो कहीं और वीभत्स घटनाएं हो रही हैं.

पंजाब के होशियारपुर से खबर आई कि वहां कई मुस्लिम गुज्जर परिवारों के साथ मार-पीट कर उन्हें उनके गांव से निकाल दिया गया है, सिर्फ इसलिए कि वे मुस्लिम हैं. मजबूरी में स्वान नदी के तले पर रह रहे इन परिवारों की शिकायत है कि जब से निजामुद्दीन मरकज वाली खबर फैली है तब से आस पास के गांवों के लोग भी उन्हें परेशान कर रहे हैं, बावजूद इसके कि वे कभी दिल्ली गए भी नहीं

दिल्ली से सटे गुड़गांव के धनकोट गांव में शनिवार चार अप्रैल को चार युवकों ने उनके गांव की मस्जिद पर गोलियां चला दीं. युवकों को अब पुलिस ने हिरासत में ले लिया है. पुलिस का कहना है कि चारों युवक निजामुद्दीन मरकज वाले प्रकरण के बारे में सुन कर परेशान थे और यह सुनिश्चित करने मस्जिद गए थे कि वहां कहीं कोई छिपा तो नहीं है. पुलिस के अनुसार युवकों ने कुछ दिन पहले सोशल मीडिया पर देखा था कि मरकज की तरह उनके गांव की मस्जिद में भी लोग छिपे हुए हैं.

तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/N. Kachroo

अफवाहों से हिंसा

पांच अप्रैल को दिल्ली के बवाना इलाके में कुछ युवकों ने एक मुस्लिम युवक को बुरी तरह पीटा क्योंकि उन्हें संदेह था कि वे कोरोना वायरस से संक्रमित हैं और जान-बूझकर संक्रमण फैला रहा है. मुस्लिम युवक को बाद में बचा लिया गया और उस पर हमला करने वाले युवकों को पुलिस ने हिरासत में ले लिया है.

छह अप्रैल को झारखंड के गुमला में एक अफवाह के फैलने के बाद एक मुस्लिम युवक के साथ मार-पीट की गई. युवक को बचा लिया गया लेकिन उसके एक दिन बाद उसी मार-पीट को लेकर मुस्लिम और आदिवासी समुदायों के कुछ लोगों के बीच फिर मार-पीट हुई जिसमें एक आदिवासी युवक की जान चली गई और कई लोग बुरी तरह से घायल हो गए.

स्थानीय मीडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार अफवाह उड़ायी गई थी कि कुछ लोग गांव में घुसकर कोरोना वायरस फैला रहे हैं और कुएं में थूक रहे हैं, थूके हुए नोट फेंक रहे हैं और छींक रहे हैं. इस तरह की अफवाहों का बाजार अभी भी गरम है. गुमला में अभी भी अफवाहों की वजह से हो रही झड़पों की खबर आ रही है. 

नेताओं द्वारा अपील

तस्वीर: Getty Images/AFP/I. Mukherjee

मुस्लिम समुदाय को टारगेट किया जाना इस समय इतनी बड़ी समस्या बन गया है कि नेताओं और सरकारों को आधिकारिक रूप से लोगों से इसके खिलाफ अपील करनी पड़ी है और चेतावनी भी देनी पड़ी है. महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्रियों ने बयान जारी कर के कहा कि वायरस धर्म नहीं देखता और लोगों को महामारी का साम्प्रदायिकरण नहीं करना चाहिए. ऐसी ही अपील बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पार्टी के सभी सदस्यों से भी की.

यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र ने भी इन घटनाओं का संज्ञान लिया. एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार नीति आयोग की हाल में हुई एक बैठक में भारत में संयुक्त राष्ट्र की रेजिडेंट कोऑर्डिनेटर रेनाटा लोक-देसालिये ने कहा कि कुछ विशेष समुदाय के लोगों को कलंकित किया जा रहा है और इस के खिलाफ कदम  उठाने की आवश्यकता है. इसके अगले दिन स्वास्थ्य मंत्रालय ने लोगों को ऐसा ना करने के लिए एक एडवाइजरी भी जारी की. वहीं भारत ने इसे संयुक्त राष्ट्र का भारत के निजी मामलों में हस्तक्षेप बताया है और इस पर आपत्ति जाहिर की है.

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