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समाज

महामारी छीन रही है इनका बचपन

७ अक्टूबर २०२०

पेंट और धूल में सने हाथों के साथ ऑटो रिपेयर की दुकान में काम करता आकाश बार बार अपने घर की तरफ देखता है. उस जैसे लाखों बच्चे भारत में बाल मजदूरी के शिकार हैं. महामारी के दौर में यह समस्या और बढ़ गई है.

Moderne Sklaverei
फाइल तस्वीर: Anti-Slavery International

भारत के 5 से 14 साल की उम्र के एक करोड़ बच्चे खेतों, फैक्ट्रियों, रेस्तराओं या फिर सड़कों पर दूसरों के जूते चमकाने जैसे काम करते हैं. कोरोना की महामारी ने इन बच्चों की मुश्किलें और बढ़ा दी है. इस हफ्ते दिल्ली में बचपन बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ताओं के साथ जब पुलिस बाल मजदूरी के ठिकानों पर छापे मारने गई तो समाचार एजेंसी एएफपी के संवाददाता भी उनके साथ थे. बचपन बचाओ आंदोलन के संस्थापक नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी हैं.

मंगलवार की सुबह बचपन बचाओ आंदोलन के सैयद अरशद मेंहदी ऑटो शॉप में गए और प्यार से आकाश (बदला हुआ नाम) को बाहर ले कर आए. आकाश ने पहले तो गराज में काम करने की बात मानने से इनकार किया. मेंहदी ने उसके हाथ अपने हाथों के साथ रख कर दिखाया और बड़े प्यार से कहा, "तुम अपने हाथ देखो, वो पेंट और धूल से भरे हुए हैं."

फाइल तस्वीर: Bharat Patel

आकाश और 11 दूसरे लड़के जिनकी उम्र 18 साल से कम है वो रेस्तराओं और गराजों से बचपन बचाओ आंदोलन के उस छापे में निकाले गए.  इसके बाद इन्हें लेकर ये लोग डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के दफ्तर में ले गए. वहां उनसे डेस्क पर बुला कर बारी बारी से नाम, उम्र, गांव और उस राज्य का नाम पूछा गया जहां से वो आए हैं. साथ ही यह भी कि वो कितने घंटे काम करते हैं और उन्हें कितनी तनख्वाह मिलती है.

मेडिकल चेकअप, कोरोना टेस्ट और उनकी पूरी तनख्वाह उन्हें दिलाने के बाद इन किशोरों को उनके गांव वापस भेजा गया. ये सभी उत्तर भारत के गरीब गांवों या फिर छोटे शहरों से आए थे. इन लोगों को नौकरी देने वालों पर बाल मजदूरी, बंधुआ मजदूरी और मानव तस्करी के आरोप लग सकते हैं लेकिन इन्हें दोषी ठहराने की घटनाएं बहुत दुर्लभ हैं.

कानून के मुताबिक 14 साल के बच्चे से मजदूरी ज्यादातर मामलों में प्रतिबंधित है. 14 से 18 साल की उम्र के किशोर खतरनाक समझे जाने वाले काम नहीं कर सकते. इन खतरनाक कामों में रेस्तरां के कुछ काम भी शामिल हैं.

तस्वीर: Bharat Patel

बचपन बचाओ आंदोलन ने अप्रैल से लेकर अब तक 1200 बच्चों को ऐसी जगहों से छुड़ाया. हालांकि संगठन से जुड़े धनंजय तिंगाल ने बताया कि महामारी के कारण बड़ी संख्या में बच्चों को काम में धकेला जा रहा है. कोरोना के कारण महीने भर से ज्यादा चली तालाबंदी में लाखों लोगों की नौकरियां छिन गईं. एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का महामारी ने बुरा हाल किया है. नतीजा यह हुआ है कि परिवारों की मदद के लिए बहुत से बच्चों को काम करना पड़ रहा है.

बच्चों से काम लेने वाले उन्हें इसलिए काम पर रखते हैं क्योंकि बड़े लोगों की तुलना में उन्हें वेतन कम देना होता है और उनसे ज्यादा देर तक काम लिया जाता है. इसके अलावा उनका शोषण और दुर्व्यवहार भी आसानी से होता है. टिंगाल ने कहा, "गांवों की स्थिति तो बहुत ज्यादा खराब है. परिवारों को काम के लिए ज्यादा लोग चाहिए ताकि पैसे कमाए जा सके. अगर हम सुधार के लिए तुरंत कदम नहीं उठाएंगे तो स्थिति और ज्यादा बुरी होगी."

एनआर/आईबी (एएफपी)

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