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समाज

महामारी ने 15 करोड़ से ज्यादा बच्चे गरीबी में धकेले

१७ सितम्बर २०२०

कोरोना महामारी की मार जिन पर सबसे ज्यादा पड़ी है, उनमें दुनिया के सबसे गरीब बच्चे भी शामिल हैं. संयुक्त राष्ट्र के बाल कोष यूनिसेफ का कहना है कि आने वाले महीनों में हालात बहुत बदतर हो सकते हैं.

Brasilien, Kinderarmut
तस्वीर: Getty Images/R.Alves

यूनिसेफ और सेव द चिल्ड्रेन की तरफ से प्रकाशित विश्लेषण में कहा गया है कि कोरोना संकट ने 15 करोड़ से ज्यादा बच्चों को गरीबी के दलदल में धकेल दिया है. महामारी और उसके कारण लगे लॉकडाउन की वजह से कम और मध्यम आय वाले देशों में गरीबी में रहने वाले बच्चों की संख्या 15 प्रतिशत बढ़ कर 1.2 अरब हो गई है. इस रिपोर्ट को कई मानकों के आधार पर तैयार किया गया है जिनमें शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और रहने की जगह ना मिलना शामिल है.

यूनिसेफ की कार्यकारी निदेशक हेनरीटा फोर का कहना है, "जो परिवार गरीबी से निकलने के मुहाने पर खड़े थे, उन्हें वापस खींच लिया गया है जबकि दूसरे लोग ऐसी तंगी और परेशानियां झेल रहे हैं जो उन्होंने कभी नहीं देखीं." उन्होंने कहा, "सबसे चिंता की बात तो यह है कि हम अभी इस संकट की शुरुआत पर खड़े हैं, इसके अंत पर नहीं."

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तो क्या करें?

रिपोर्ट में सभी सरकारों से इन बच्चों को गरीबी से निकालने के कदम उठाने का आग्रह किया गया है. रिपोर्ट के लेखक कहते हैं कि सामाजिक सेवा, श्रम बाजार और दूरस्थ शिक्षा जैसे क्षेत्रों में हस्तक्षेप और निवेश की जरूरत है. फोर कहती हैं, "सरकारों को हाशिए पर पड़े बच्चों और उनके परिवारों को अपनी प्राथमिकता में शामिल करना होगा और कैश ट्रांसफर और बाल भत्ता, दूरस्थ शिक्षा के अवसर, स्वास्थ्य सेवाएं और स्कूलों में भोजन मुहैया कराने जैसी सामाजिक सुरक्षा व्यवस्थाओं का तेजी से विस्तार करना होगा."

यूनिसेफ की प्रमुख ने कहा कि अगर सरकारें आज इन क्षेत्रों में निवेश करती हैं तो इससे उन्हें भविष्य के झटकों से निपटने में मदद मिलेगी. रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि सिर्फ वित्तीय कारकों से यह मूल्यांकन ना किया जाएगा कि कोई व्यक्ति किस कदर वंचित है. हालांकि ये कारण बड़ी भूमिका निभाते हैं. रिपोर्ट कहती है कि शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण, जल और साफ सफाई वाले घर मुहैया कराने जैसी सुविधाओं पर अलग अलग क्षेत्रों को एक साथ मिल कर काम करना चाहिए.

बच्चों के लिए काम करने वाली एक और संस्था सेव द चिल्ड्रेन की मुख्य कार्यकारी अधिकारी इंगेर एशिंग ने कहा, "यह महामारी पहले ही इतिहास की सबसे बड़ी वैश्विक शिक्षा इमरजेंसी पैदा कर चुकी है. गरीबी बढ़ने से सबसे कमजोर तबके के बच्चों और उनके परिवार के लिए नुकसान की भरपाई करना बहुत मुश्किल होगा." उन्होंने कहा, "जिन बच्चों की पढ़ाई छूट रही है, उन्हें बाल श्रम या बाल विवाह में धकेला जा सकता है और फिर वे आने वाले सालों में गरीबी के चक्र में फंस कर रह जाएंगे."

एके/एमजे (डीपीए)

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