महामारी ने दिया स्वतंत्र संगीतकारों को मौका
११ दिसम्बर २०२०भारत में संगीत प्रेमियों के बीच अमूमन बॉलीवुड के गानों का वर्चस्व रहता है. लेकिन जब कोरोना वायरस महामारी की वजह से नई फिल्मों की रिलीज रुक गई तो उससे स्वतंत्र संगीतकारों को नाम कमाने के नए अवसर मिल गए, भले ही कभी कभी ये उन्हें अपने बेडरूम से करना पड़ा हो.
गायक कार्लटन ब्रगैंजा की लोकप्रियता ने मार्च में तालाबंदी लागू होने के बाद नई बुलंदियां हासिल कीं, और अब उन्हें नए नए प्रस्तावों के साथ एजेंटों के फोन लगातार आते रहते हैं. तीन महीनों से भी ज्यादा तक 48-वर्षीय कार्लटन ने अपनी रातें अपने बेडरूम से ही दर्शकों के लिए ऑनलाइन प्रदर्शन देने में बिताई और इस क्रम में उन्हें हजारों नए प्रशंसक भी मिल गए.
बेंगलुरु से उन्होंने एएफपी को बताया, "मैंने फेसबुक पर 70 दिनों तक रोज लाइव प्रदर्शन किया, जिसमें मैं सुनने वालों की फरमाइशें भी लेता रहता था." 125 कार्यक्रम करने के बाद उन्होंने फेसबुक पर 15 लाख व्यूज हासिल कर लिए हैं. मुफ्त में किए गए ये प्रदर्शन अब उनके काम आ रहे हैं. जैसे जैसे तालाबंदी के प्रतिबंध हटते जा रहे हैं, उन्हें निजी कार्यक्रमों की बुकिंग मिलती जा रही है.
महामारी की वजह से भारत के मनोरंजन कैलेंडर में अचानक आए इस शून्य का फायदा सिर्फ कार्लटन जैसे तजुर्बेकार संगीतकारों को ही नहीं मिल रहा है. हिप-हॉप कलाकार पलक परनूर कौर जैसे कलाकारों के भी ऑनलाइन प्रशंसकों की संख्या काफी बढ़ गई है. पलक 2018 से 'लिल मलाई' के नाम से एक छोटे से गोप्रो कैमरे का इस्तेमाल कर रिक्शों और बसों में वीडियो शूट कर रही हैं.
वो भारत के मिल्लेनियलों और उनके मुद्दों पर अपना ध्यान केंद्रित करती हैं और इस वजह से इंस्टाग्राम और यूट्यूब की युवा ऑडियंस के साथ उनका एक विशेष जुड़ाव बन गया है. महिलाओं के खिलाफ हिंसा जैसे मुश्किल विषयों को टटोलने के लिए उनके प्रशंसक उनकी सराहना करते हैं. मुंबई से पलक ने एएफपी को बताया, "बॉलीवुड संगीत के खालीपन को आजाद संगीतकार अपने मौलिक संगीत से भर रहे हैं और संगीत भी ऐसा जिससे श्रोता जुड़ाव महसूस कर रहे हैं. अब हमारी मौजूदगी का उन्हें पहले से ज्यादा अहसास है."
ऑडियो स्ट्रीम करने वाली सेवा जिओसावन का डाटा भी साबित करता है कि एक बड़ा बदलाव हो रहा है. तालाबंदी के बाद से उनके साप्ताहिक टॉप 30 चार्ट पर गैर-फिल्मी संगीत का ही वर्चस्व रहा है. जिओसावन के मुताबिक अक्टूबर के मध्य तक भारत में स्ट्रीम होने वाले सारे टॉप पांच गाने गैर-फिल्मी गाने थे.
सीडी बेबी और ट्यूनकोर जैसी अमेरिकी स्वतंत्र संगीत कंपनियों के भारत में विस्तार की वजह से भी संगीतकारों के लिए ऑनलाइन अपनी एल्बम रिलीज करना आसान हो गया है. लेकिन जानकार चेताते हैं कि बॉलीवुड को अपनी जगह दोबारा हासिल करने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा. म्यूजिकप्लसडॉटकॉम के संपादक प्रियाक धर ने एएफपी को बताया, "एक बार फिल्में शुरू हो जाने की देर है और संभव है कि उसके बाद श्रोता फिर से बॉलीवुड संगीत की ओर लौट जाएंगे और गैर-फिल्मी गानों की लोकप्रियता गिर जाएगी."
संगीत कंपनी टर्नकी के प्रबंधक निदेशक अतुल चूड़ामणि ने बताया कि सोशल मीडिया पर फॉलोवर पा लेने के बावजूद कई कलाकारों को अभी भी पैसा कमाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है. उन्होंने बताया, "कलाकारों ने ऑनलाइन कॉन्सर्ट भी शुरू किए हैं, लेकिन उनमें से अधिकतर मुफ्त हैं. तालाबंदी की वजह से कलाकारों के पास ऑनलाइन व्यूज और बड़ी संख्या में फॉलोवर होने के बावजूद ऑफलाइन कार्यक्रम आयोजित नहीं हो रहे हैं और कमाई नहीं हो रही है."
लेकिन कुछ लोगों के लिए माइक के प्रति उनके खिंचाव का मुख्य कारण पैसा नहीं है. रैपर दुलेश्वर तंडी ने अप्रैल में तालाबंदी में फंसे करोड़ों प्रवासी श्रमिकों के हालात पर जो रैप वीडियो बनाए वो वायरल हो गए और उन्हें अचानक प्रसिद्धि मिल गई. पूर्वी भारत के एक गांव में रहने वाले दुलेश्वर ने अपने वीडियो मोबाइल फोन पर ही शूट किए और उनमें गरीबों के प्रति सरकार की संवेदनहीनता की आलोचना की.
'दुले रॉकर' के नाम से रैप करने वाले 27-वर्षीय कलाकार ने एएफपी को बताया, "तालाबंदी की वजह से मेरा परिवार दाने दाने को मोहताज हो गया था क्योंकि ना हमारे पास पैसे थे और ना कोई काम मिल रहा था. मैंने फिर सरकार के प्रति अपने गुस्से को दिशा देने के लिए रैप करना शुरू किया और सबने मजबूत प्रतिक्रिया दी."
उन्होंने फिल्म जगत से आए प्रस्तावों को ठुकरा दिया है और वो कहते हैं कि उन्हें, "महिलाओं का वस्तुकरण करने वाला रैप संगीत बनाना" मंजूर नहीं है. लेकिन उनकी कहानी कुछ इस तरह पलटी जैसा बॉलीवुड फिल्मों में पलटती है. वो अब अमेरिका की बड़ी संगीत कंपनी यूनिवर्सल ग्रुप म्यूजिक के लिए एक एल्बम पर काम कर रहे हैं. वे कहते हैं, "समाज गरीबी को कैसे देखता है, मैं उसमें बदलाव लाना चाहता हूं."
सीके/आईबी (एएफपी)
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