महामारी में महिलाओं को नहीं मिले गर्भनिरोधक
११ मार्च २०२१![गर्भनिरोधक](https://static.dw.com/image/43130843_800.webp)
लैंगिक और प्रजनन संबंधी स्वास्थ्य पर संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी यूएनएफपीए ने कम और मध्यम आय वाले 115 देशों में पड़ताल के बाद अपनी रिपोर्ट जारी की है. रिपोर्ट में कहा गया है कि बीते साल खासतौर से तीन महीने ऐसे थे, जब गर्भनिरोधकों तक महिलाओं की पहुंच बहुत सीमित हो गई. इससे उनका परिवार नियोजन प्रभावित हुआ. इसका नतीजा 14 लाख अनचाहे गर्भों के रूप में देखने को मिल सकता है.
यूएनएफपीए की कार्यकारी निदेशक नतालिया कानेम का कहना है, "कोविड की वजह से दुनिया भर में महिलाओं और लड़कियों को काफी कुछ झेलना पड़ा है. लेकिन इसके सबसे ज्यादा दुष्परिणाम सबसे गरीब तबके की महिलाओं को भुगतने पड़े हैं." आंकड़ों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा, "अमीर देशों में कम बच्चे पैदा हो रहे हैं जबकि विकासशील देशों में जन्म लेने वाले शिशुओं की संख्या ज्यादा है. इसकी वजह यह है कि वहां पर्याप्त गर्भनिरोधक नहीं मिल पाते हैं."
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बुनियादी जरूरत
पिछले साल जब पूरी दुनिया में कोरोना वायरस का फैलाव शुरू हुआ तो उससे निपटने के लिए लॉकडाउन लगाया गया. संक्रमण के डर से लोग घर पर ही रहे. स्वास्थ्य केंद्रों पर नहीं जा पाए और इसलिए उन्हें गर्भनिरोधक भी नहीं मिल सके. इसके साथ ही उनकी आपूर्ति भी बाधित हुई.
यूएनएफपीए का कहना है कि उन्हें मिली जानकारी के मुताबिक बीते साल अप्रैल से मई महीने के बीच परिवार नियोजन की सेवाओं में काफी बाधाएं आईं, लेकिन उसके बाद बहुत से देश इन सेवाओं को बहाल करने में सफल रहे. रिपोर्ट का कहना है कि संभवतः 1.2 करोड़ महिलाओं को महामारी की वजह से गर्भनिरोधक नहीं मिल पाए. हालांकि असल संख्या और ज्यादा भी हो सकती है.
कानेम का कहना है कि आंकड़े दिखाते हैं कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय स्थिति को बहुत ज्यादा खराब होने से रोकने में कामयाब रहा. पहले हुए शोधों में कहा जा रहा था कि शायद 1.3 करोड़ से 4.4 करोड़ महिलाओं को गर्भनिरोधक नहीं मिल पाए हैं. यूएनएफपीए की रिपोर्ट कहती है कि 70 से ज्यादा देशों से जमा किए गए उनके सर्वे डाटा में 41 प्रतिशत लोगों ने कहा कि परिवार नियोजन से जुड़ी 41 सेवाएं बाधित हुईं जबकि 56 प्रतिशत का कहना है कि उन्हें कोई समस्या नहीं हुई.
बाल विवाह में इजाफा
कानेम ने गर्भनिरोधकों को बड़ी जरूरत बताया है. उनका कहना है, "ये ऐसी जरूरतें हैं जिन्हें प्राथमिकता दी जानी चाहिए. ऐसा नहीं है कि हम कह दें, कि अगर पास में है तो अच्छा है, नहीं है तो कोई बात नहीं. यह मानवीय गरिमा का बुनियादी हिस्सा है."
उन्होंने कहा कि महामारी के दौरान महिलाओं के लिए कई दूसरी चुनौतियां भी बढ़ी हैं. इनमें बाल विवाह का जोखिम भी शामिल है जिनकी संख्या इस दौरान काफी बढ़ गई. पिछले दिनों ही संयुक्त राष्ट्र की बाल कल्याण संस्था यूनिसेफ ने भी चेतावनी दी थी कि कोरोना महामारी की वजह से इस दशक में अतिरिक्त एक करोड़ बाल विवाह देखने को मिल सकते हैं.
एके/एमजे (एएफपी)
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