कहीं कोई अपने सगे संबंधी को सड़क पर छोड़ कर भाग रहा है, तो कहीं अंजान लोग मसीहा बन कर मदद के लिए सामने आ रहे हैं. कोरोना काल दिखा रहा है कि डर के माहौल में इंसान का असली रूप कैसा होता है.
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भारतीयों पर कोरोना का खौफ भारी पड़ता जा रहा है. इसका असर समाज के ताने-बाने पर पड़ने लगा है. नतीजतन, इसके कई रंग सामने आने लगे हैं. कहीं रिश्तों की डोर कमजोर होती दिख रही है, तो कहीं जाति, धर्म-संप्रदाय का बंधन तोड़ मानवता अपने वजूद का अहसास भी करा रही है. कहीं बेटा-बेटी कोरोना पीड़ित बाप के शव को छोड़ कर भाग जा रहा है, तो वहीं दूसरी तरफ कोरोना संक्रमितों की पीड़ा को अपना दर्द समझ कोई अपने खर्चे से उनके घर तक खाना पहुंचा रहा है. एक ओर जहां सांसों की खरीद-फरोख्त चल रही है, तो वहीं दूसरी ओर कोई ऑक्सीजन सिलेंडर लेकर जरूरतमंद की पुकार पर उसके घर पहुंच जा रहा है.
अबोध बच्चियों ने पिता को दिया कंधा
पटना के दीघा इलाके में एक कारोबारी संजय चौधरी की कोरोना से मौत हो गई. पत्नी ने रिश्तेदारों को खबर दी, लेकिन कोई नहीं आया. शव को एक कमरे में बंद कर उनकी पत्नी रातभर तीन बच्चों के साथ बैठी रही. करीब 30 घंटे तक संजय की लाश पड़ी रही. अंत में मुहल्ले के कुछ लोगों ने उनका अंतिम संस्कार कराया.
पटना जिले में ही राजू कुमार की मौत हो गई. उसकी मौत कोरोना से नहीं हुई थी, किंतु कोविड से मौत की आशंका से भयभीत गांव के लोग अपने घरों से बाहर नहीं निकले. राजू की पत्नी ने घर-घर जाकर गांव के लोगों से दाह संस्कार के लिए हाथ जोड़े. वह बच्चों के साथ रो-रोकर लोगों से कहती रही कि राजू की मौत कोरोना से नहीं हुई है, लेकिन कोई आगे नहीं आया.
इसी तरह पटना में प्रभात कुमार की मौत हो गई. छह साल की बेटी उसके साथ रहती थी. वह 12 घंटे तक पिता के शव के साथ बिलखती रही. बाद में मकान मालिक को जानकारी मिली तो उसने पुलिस को सूचना दी. आखिरकार विधायक की पहल पर प्रभात का दाह संस्कार हो सका.
कहीं मदद, कहीं मुनाफाखोरी: त्रासदी के दो चेहरे
भारत में कोरोना की ताजा लहर ने भयावह स्थिति उत्पन्न कर दी है. सरकारी तंत्र नाकाम हो चुका है और आम लोग सरकार की जगह मददगार नागरिकों के भरोसे हैं. ऐसे में त्रासदी में मुनाफाखोरी के अवसर ढूंढने वालों की भी कमी नहीं है.
तस्वीर: ADNAN ABIDI/REUTERS
हाहाकार
कोरोना की ताजा लहर ने पूरे देश पर कहर बरपा दिया है. रोजाना संक्रमण के 3,00,000 से ज्यादा नए मामले सामने आ रहे हैं और रोज 3,000 से ज्यादा कोविड मरीजों की मौत हो जा रही है. दवाओं, अस्पतालों में बिस्तर और यहां तक कि ऑक्सीजन की भी भारी कमी हो गई है. अस्पतालों में भर्ती मरीज कोविड-19 से तो मर ही रहे थे, अब वो ऑक्सीजन की कमी से भी मर रहे हैं.
तस्वीर: Danish Siddiqui/REUTERS
नाकाम तंत्र
चारों ओर फैले इस हाहाकार ने देश में सरकारी तंत्र के खोखलेपन और महामारी से लड़ने की तैयारों में कमी को उजागर कर दिया है. हालत ऐसे हो चले हैं कि आम लोगों के अलावा अस्पतालों को ऑक्सीजन हासिल करने के लिए सोशल मीडिया पर एसओएस संदेश डालने पड़ रहे हैं.
तस्वीर: Raj K Raj/Hindustan Times/imago images
सोशल मीडिया बना हेल्पलाइन
सरकारी तंत्र की विफलता को देखते हुए कुछ लोग आगे बढ़ कर जरूरतमंदों की मदद कर रहे हैं. लोग सोशल मीडिया पर अपनी जरूरत डाल रहे हैं और मदद करने वाले किसी तक दवा पहुंचा रहे हैं, किसी तक ऑक्सीजन और किसी तक प्लाज्मा. इनके व्यक्तिगत नेटवर्क से अस्पतालों में रिक्त बिस्तरों की जानकारी भी मिल रही है. इनमें कुछ राजनीतिक कार्यकर्ता हैं, कुछ सामाजिक कार्यकर्ता, कुछ फिल्मी सितारे तो कुछ धर्मार्थ संगठन.
तस्वीर: Danish Siddiqui/REUTERS
ऑक्सीजन लंगर
सबसे भयावह कमी है ऑक्सीजन की. ऐसे में कुछ लोगों और कुछ धर्मार्थ संगठनों ने ऑक्सीजन मुहैया करवाने का बीड़ा उठाया है. कुछ लोग घरों तक भी ऑक्सीजन सिलिंडर और ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर पहुंचा दे रहे हैं, तो कुछ ने सार्वजनिक स्थलों पर ऑक्सीजन देने का इंतजाम किया है. यह महामारी के लिहाज से खतरनाक भी है, लेकिन लोग इस तरह की सेवाएं लेने को लाचार हैं.
लेकिन इस विकट परिस्थिति में भी मानव स्वभाव के दो चेहरे सामने आए हैं. एक तरफ अपनी जान जोखिम में डाल कर दूसरों की मदद करने वाले लोग हैं, तो दूसरी तरफ ऐसे भी हैं जिन्हें इस त्रासदी में भी जमाखोरी और मुनाफाखोरी सूझ रही है. आवश्यक दवाओं की कालाबाजारी हो रही है और उन्हें 10 गुना दाम पर बेचा जा रहा है. कई मामले ऐसे ही सामने आए हैं जहां लोगों ने दवा का 10 गुना दाम भी वसूल लिया और दवा भी नकली दे दी.
मानवीय त्रासदी में भी लोग अमानवीय व्यवहार से बाज नहीं आ रहे हैं. एम्बुलेंस सेवाओं में भी ठगी के कई मामले सामने आए हैं, जहां मरीजों या उनके परिवार वालों से चंद किलोमीटर के कई हजार रुपए वसूले गए हैं.
तस्वीर: Altaf Qadri/AP Photo/picture alliance
ऑक्सीजन "डकैती"
ऐसे भी मामले सामने आए हैं जहां ठगों ने ऑक्सीजन के लिए दर दर भटकते लोगों को ऑक्सीजन सिलिंडर बता कर आग बुझाने वाले यंत्र बेच दिए. पुलिस इन मामलों में सख्ती से पेश आ रही है और ऐसे लोगों के अवैध धंधों का भंडाफोड़ कर उन्हें हिरासत में ले रही है.
तस्वीर: ADNAN ABIDI/REUTERS
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पत्नी का गला रेत कर ली आत्महत्या
यह तो मृत लोगों की बात थी, किंतु हद तो तब हो गई जब कोरोना होने पर पत्नी द्वारा घर पर रहकर इलाज कराने की बात कहने पर पति ने उसकी हत्या कर दी और खुद भी छलांग लगा कर जान दे दी. दरअसल, पटना जंक्शन के स्टेशन मैनेजर अतुल लाल की पत्नी तुलिका कुमारी कोरोना संक्रमित हो गई थी. अतुल चाहते थे कि पत्नी अस्पताल में भर्ती हो जाए, किंतु तुलिका होम आइसोलेशन में रहना चाहती थी. इसी बात को लेकर दोनों में विवाद हुआ और कोरोना के खौफ से भयभीत अतुल ने बच्चों के सामने ही ब्लेड से तुलिका का गला रेत दिया और खुद अपार्टमेंट की चौथी मंजिल से कूदकर आत्महत्या कर ली.
मुजफ्फरपुर के रहने वाले अर्जुन ओझा कोरोना संक्रमित हो गए. लोगों के दबाव पर उनका शिक्षक बेटा अपनी पत्नी के साथ एंबुलेंस से पिता को ले गया. अर्जुन की पत्नी को लगा कि बेटा-बहू इलाज के लिए ले गए हैं, किंतु बेटा-बहू रास्ते में एंबुलेंस रुकवा कर फरार हो गए. थोड़ी देर के इंतजार के बाद एंबुलेंस चालक भी उन्हें सड़क किनारे छोड़कर भाग गया. बाद में सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद डीएम के आदेश पर उन्हें अस्पताल ले जाया गया, जहां उनकी मौत हो गई.
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अंधेरे को खत्म करने की कोशिश में युवा
शहरों में बहुत सारे लोग ऐसे हैं जो अकेले रह रहे हैं या फिर परिवार के साथ हैं, किंतु कोरोना संक्रमित होने के कारण वे भोजन नहीं बना पा रहे या फिर उनके पास राशन या अन्य जरूरी सामान नहीं रह गया है. इसी पीड़ा को महसूस कर दो बहनें अनुपमा व नीलिमा संक्रमितों के घर मुफ्त खाना पहुंचा रहीं हैं. कुछ महीने पहले इनकी मां और दोनों बहनें कोरोना पॉजिटिव हो गईं थीं, तभी इन्हें लोगों की इस परेशानी का अहसास हुआ था.
राजधानी पटना के काजीपुर मोहल्ले की रहने वाली बहनों में बड़ी अनुपमा कहती हैं, "बुजुर्ग या ऐसे जो लोग अकेले रहते हैं या फिर वह परिवार जिसके सभी सदस्य कोरोना पॉजिटिव हो गए हैं, वे तो बीमारी से लड़ रहे होते हैं, उन्हें खाना कौन देगा. यही सोचकर आसपास के ऐसे घरों में खाना पहुंचाना शुरू किया." एक-दो लोगों से शुरू हुई दोनों बहनों की यह मुहिम अब पूरे पटना में रंग ला रही है. नीलिमा कहती हैं, "जब मैं खाना सौंपती हूं और तब उनके चेहरे देखकर जो संतुष्टि मिलती है, उसे मैं बयान नहीं कर सकती. इतने कॉल्स आ रहे थे और इतने जरूरतमंद लोग थे कि हम दूर-दूर तक खाना पहुंचाने को तैयार हो गए." फिलहाल रोजाना करीब 200 लोगों को यह सुविधा नि।शुल्क दे रहे हैं.
क्या कहती है आपकी ब्लड टेस्ट की रिपोर्ट
कोरोना दौर में लगातार लोगों के ब्लड टेस्ट हो रहे हैं. लेकिन टेस्ट की रिपोर्ट में क्या लिखा होता है, यह सबकी समझ में नहीं आता. यहां आसान भाषा में समझें खून की जांच को.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/D. Farrell
कैल्शियम
यह शरीर के सभी अंगों के लिए जरूरी है. अगर खून में कैल्शियम की ज्यादा मात्रा हुई तो यह बीमारी का संकेत है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/TASS/D. Sorokin
CO2
शरीर के मेटाबॉलिज्म फंक्शन और पीएच बैलेंस को मापता है.
शरीर में विषैले तत्वों और एल्केलोसिस/ऐसिडोसिस का मापक है.
तस्वीर: picture-alliance/blickwinkel/McPhotos
क्रेआटिनिन
किडनी फंक्शनिंग का मापक है.
तस्वीर: Fotolia/alexskopje
सोडियम
शरीर में हाइड्रेशन स्टेट्स की जानकारी देता है. शरीर में पानी और इलेक्ट्रोलाइड्स की कमी होने से नसों पर ज्यादा दबाव पड़ता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
ग्लूकोज टेस्ट
डायबिटीज की जांच करता है और शरीर में इंसुलिन के फंक्शन का संकेत देता है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/N. Seelam
पोटेशियम
शरीर के फ्लूइड बैलेंस की जानकारी देता है.
तस्वीर: Universitätsklinikum Heidelberg
BUN (ब्लड यूरिया नाइट्रोजन)
यह हृदय और किडनी के कामकाज को दर्शाता है.
तस्वीर: Getty Images/S. Gallup
टोटल बिलिरुबिन
लीवर की सेहत बताता है. इसी जांच से पीलिया का भी पता चलता है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/J. Mabromata
टोटल प्रोटीन
किडनी और लीवर से जुड़ी बीमारियों के इंफेक्शन को मापता है.
तस्वीर: Colourbox
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इसी तरह पटना के गौरव राय सांसों के मसीहा बन शहर में ऑक्सीजन मैन के नाम से जाने जा रहे हैं. गौरव अब तक तीन हजार से अधिक लोगों को ऑक्सीजन सिलेंडर उपलब्ध करा चुके हैं. वे कहते हैं, "कोरोना की पहली लहर में अस्पताल में भर्ती था. जीने की आस टूट चुकी थी. पूरे परिवार को ऑक्सीजन सिलेंडर के लिए भटकना पड़ा था. एक महीने बाद जब स्वस्थ होकर घर लौटा तो तय किया कि ऑक्सीजन के बिना किसी को मरने नहीं दूंगा."
इनसे इतर दो दर्जन युवा लेखक ऐसे हैं जो सोशल मीडिया पर कोरोना वॉरियर्स नामक ग्रुप बना लोगों को ऑक्सीजन सिलेंडर व दवाइयां उपलब्ध कराने में मदद कर रहे हैं. ये अस्पतालों में खाली बेड के बारे में भी लोगों को बता रहे. ये सभी कोरोना मरीज रह चुके लोगों का पता लगा कर प्लाज्मा डोनेट करने के लिए भी उन्हें प्रोत्साहित कर रहे हैं.
वहीं संतोष कुमार अपनी टीम के साथ बुजुर्गों व दिव्यांगों को घर से ले जाकर वैक्सीन दिलवाते हैं और फिर उन्हें घर पहुंचाते हैं. अगर ऑनलाइन अपॉइंटमेंट लेने में या कोई अन्य परेशानी होती है तो उसमें भी मदद करते हैं. मुकेश हिसारिया, जिनका कोई नहीं होता उनके शव का अंतिम संस्कार
करवाते हैं. पिछली कोरोना लहर में इन्होंने 42 लोगों का अंतिम संस्कार करवाया था. मुकेश कहते हैं, "कोरोना संक्रमित व्यक्ति के शव को अपने भी कंधा नहीं देना चाहते. ऐसे लोगों का शव एंबुलेंस भेजकर घाट पर मंगवाया जाता है और फिर विधि विधान से उनका अंतिम संस्कार किया जाता है. बाद में अस्थि कलश भी परिवार वालों को भिजवा दिया जाता है."
महामारी के बहाने ही सही, डार्विन का सिद्धांत तो लागू होगा ही और अपनी स्वाभाविक वृत्ति के अनुरुप स्वयं को बचाने के लिए हरेक व्यक्ति रक्षात्मक मोड में रहेगा ही.
भारत में सांसों का संकट
भारत में कोरोना वायरस की दूसरी लहर के बीच ऑक्सीजन की कमी से मरीज और उनके रिश्तेदार लाचार घूम रहे हैं. ऑक्सीजन नहीं मिलने की वजह से कई मरीजों की मौत हो जा रही है. कई मरीजों को अस्पताल में बेड भी नहीं मिल पा रहा है.
तस्वीर: ADNAN ABIDI/REUTERS
शहर दर शहर लोग बेहाल
भारत के बड़े शहर हो या छोटे हर जगह कोरोना के मरीजों को बेहतर इलाज के लिए भटकना पड़ रहा है. देश की स्वास्थ्य व्यवस्था कोरोना के मरीजों का भार नहीं उठा पा रही है.
तस्वीर: Adnan Abidi/REUTERS
शहर दर शहर लोग बेहाल
देश के कई गुरुद्वारों में कोरोना के मरीजों को निशुल्क ऑक्सीजन दी जा रही है. मरीजों के लिए राजधानी दिल्ली में खास इंतजाम किए गए हैं. दिल्ली सिख गुरुद्वारा मैनेजमेंट कमिटी की तरफ से 250 बेड का कोविड फैसिलिटी सेंटर बनया गया.
तस्वीर: Sajjad Hussain/Getty Images/AFP
शहर दर शहर लोग बेहाल
उत्तर भारत में इस वक्त भीषण गर्मी पड़ रही है. मरीज ही नहीं उनके रिश्तेदारों को कड़ी धूप में अस्पताल के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं.
तस्वीर: Naveen Sharma/ZUMA Wire/imago images
शहर दर शहर लोग बेहाल
कोरोना के जो मरीज घर पर अपना इलाज करा रहे होते हैं जब उनका ऑक्सीजन लेवल अचानक गिर जाता है तो उन्हें अस्पतालों के चक्कर काटने पड़ते हैं. ज्यादातर उनके हाथ निराशा ही लगती है.
तस्वीर: Adnan Abidi/REUTERS
शहर दर शहर लोग बेहाल
भारत में कोरोना वायरस विकराल रूप ले चुका है. बड़े अस्पताल और छोटे अस्पताल दोनों ही कोरोना के मरीज लेने से इनकार कर रहे हैं. कई बार डॉक्टर भी मजबूरी में मरीजों को घर ले जाने की सलाह दे देते हैं.
अस्पताल में जगह नहीं मिलने के बाद परिजनों का बुरा हाल हो जाता है. वे अस्पताल प्रशासन के आगे कई बार हाथ जोड़ते भी नजर आते हैं.
तस्वीर: -/Hindustan Times/imago images
शहर दर शहर लोग बेहाल
दिल्ली के कॉमनवेल्थ गेम्स विलेज को अस्थायी कोविड-19 देखभाल केंद्र के रूप में बनाया गया है. दिल्ली में कोरोना के मामले तेजी से बढ़ने के साथ ही ऑक्सीजन, इंजेक्शन और दवाइयों का संकट हो गया है.
तस्वीर: Raj K Raj/Hindustan Times/imago images
शहर दर शहर लोग बेहाल
सिर्फ दिल्ली ही नहीं कई राज्यों में पिछले कुछ दिनों से ऑक्सीजन का संकट बना हुआ है. हाईकोर्ट केंद्र और राज्य सरकारों को ऑक्सीजन सप्लाई करने को लेकर आदेश भी दे चुका है.
अस्पताल में बेड ही नहीं बल्कि एंबुलेंस जैसी जरूरी सेवा भी कई मरीजों को नसीब नहीं हो रही है. अनेक राज्यों में मरीज रिक्शा, ऑटो रिक्शा, मोटर साइकिल पर सवार होकर अस्पताल तक पहुंचते हैं.