जर्मनी के बेल्जियम पर हमले के साथ 4 अगस्त 1914 में पहले विश्व युद्ध की शुरुआत हुई. 100 साल पहले हुई लड़ाई को आज विश्व के नेताओं ने बेल्जियम के लियेज शहर में याद किया.
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पहले विश्व युद्ध को अंग्रेजी में द ग्रेट वॉर भी कहा जाता है. अगस्त 1914 में लियेज शहर ने जर्मन सैनिकों को दूर रखने की हर कोशिश की और इसकी वजह से जर्मनी की जीत की उम्मीदें भी पानी में मिल गईं. लेकिन लियेज शहर को युद्ध का भारी नुकसान उठाना पड़ा. बेल्जियम पर जर्मनी के आक्रमण के बाद ब्रिटेन भी युद्ध में शामिल हो गया. उसके बाद लड़ाई पूरे यूरोप और फिर दुनिया भर में फैल गई. कुल एक करोड़ सैनिक मरे, दो करोड़ घायल हुए, करोड़ों आम लोगों ने अपनी जान गंवाई और पूरे विश्व का राजनीतिक ढांचा बदल गया.
लियेज में श्रद्धांजलि
पहले विश्व युद्ध का मुख्य समारोह लियेज के अलाइड वॉर मेमोरियल ऑफ क्वांत में हो रहा है. यह एक मीनार है जो एक पुराने चर्च के पास स्थित है. लियेज में राजा फिलिप ने इस उपलक्ष्य पर विश्व को संबोधित किया. उन्होंने लियेज शहर में यूरोप के नेताओं के साथ दुनिया को संदेश दिया. समारोह में ब्रिटेन के राजकुमार विलियम, स्पेन के नए राजा फेलिपे छठे, फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद और जर्मन राष्ट्रपति योआखिम गाउक मौजूद थे.
विश्व नेताओं के स्वागत के लिए लियेज में सुरक्षा का कड़ा बंदोबस्त किया गया. इससे पहले ऑस्ट्रेलिया में प्रधानमंत्री टोनी एबट ने उस दिन को याद करते हुए कहा कि वह "मानव इतिहास के लिए प्रलय" के बराबर था. इसी की वजह से नाजीवाद, दूसरा विश्व युद्ध और शीत युद्ध भी हुए. फांस के राष्ट्रपति ओलांद और जर्मन राष्ट्रपति गाउक ने फ्रांस की सरहद के अलसेस प्रांत की लड़ाई को याद किया जिसमें 30,000 सैनिक मारे गए थे. उन्होंने पहले और दूसरे विश्व युद्ध के बाद फ्रांस और जर्मनी के बीच दोस्ती को सराहा और कहा कि यह आज की दुनिया के लिए मिसाल है, खास कर यूक्रेन और गाजा के लिए, जहां सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं. 4 अगस्त 1914 को याद करने के लिए ब्रिटेन अपना अलग समारोह आयोजित कर रहा है.
अगला समारोह
बम गिराने वाले चमगादड़
दूसरे विश्व युद्ध में 6 जून 1944 को कबूतर गठबंधन सेना की नॉर्मैंडी में लैंडिंग की अच्छी खबर लाए. सेना में चमगादड़, मधुमक्खी, चिड़िया या डॉल्फिन बहुत सारे जानवरों का सेना में इस्तेमाल किया जाता रहा है. देखें तस्वीरें...
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संदेसे आते हैं
दोनों विश्व युद्धों में कबूतरों का संदेश भेजने के लिए काफी इस्तेमाल किया गया. उनके अच्छे दिशा ज्ञान के कारण दूसरे विश्व युद्ध में सिर्फ ब्रिटेन ने दूर दराज में संदेश भेजने के लिए दो लाख कबूतर इस्तेमाल किए. इस पंछी ने हजारों लोगों की जान भी बचाई है. कुछ को तो विक्टोरिया क्रॉस की तरह का डिकिन मेडल भी दिया गया.
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फोटोग्राफर कबूतर
ये पंछी सिर्फ संदेश लाते ले जाते नहीं थे. 1907 में युलियुस नॉयब्रोनर को आयडिया आया कि इनके गले में छोटा सा कैमेरा बांध हवा से फोटो भी लिए जा सकते हैं. इन्हें कभी जासूसी के लिए या लड़ाई के मैदान में इस्तेमाल किया जाना था या नहीं, इस बारे में कोई जानकारी नहीं है. अमेरिका ने प्रोजेक्ट पिजन के तहत पिजन गाइडेड मिसाइल बनाने की कोशिश भी की.
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सबसे अच्छा दोस्त
इंसान के सबसे अच्छे दोस्त कुत्ते को बारुदी सुरंग सूंघने और बम धमाकों में घायल लोगों को ढूंढने के लिए इस्तेमाल किया जाता था. वियतनाम में अमेरिका ने चार हजार कुत्ते इस्तेमाल किए, इनमें अधिकतर लैब्रेडोर और जर्मन शेफर्ड प्रजाति के थे.
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युद्ध के कुत्ते
दूसरे विश्व में इन्हें एंटी टैंक डॉग्स कहा जाता है. रूस की सेना इन्हें जर्मनी के टैंकों के खिलाफ इस्तेमाल करती थी. विस्फोटकों के साथ इन्हें टैंक के नीचे जाने की ट्रेनिंग दी जाती. जैसे ही ये वहां पहुंचते बम में विस्फोट करवा दिया जाता. 1996 तक इन्हें इस्तेमाल किया जाता रहा. अब कुत्तों का इस्तेमाल विस्फोटक ढूंढने में किया जाता है, धमाके में उड़ा देने के लिए नहीं.
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बम गिराने वाले चमगादड़
अमेरिका ने एक प्रयोग शुरू किया, 1940 के दशक में चमगादड़ों पर बम बांध दिए जाते थे. जैसे ही बम का कनस्तर गिराया जाता हजारों छोटे चमगादड़ नैपैम को लिए उड़ते और नीचे किसी इमारत पर बैठते. योजना थी एक ही शहर में एक साथ कई जगह आगजनी करने की जाए.
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अंडरकवर किटी
1960 में सीआईए ने अकूस्टिक किट्टी प्रोजेक्ट के जरिए सोवियत दूतावासों में जासूसी करने की योजना शुरू की. इसके लिए एक बिल्ली में माइक्रोफोन, बैटरी, एंटीना ऑपरेशन कर लगा दिए जाते. ये बाहर होने वाली बातचीत रिकॉर्ड कर सकते थे. इस प्रोजेक्ट को 1967 में खत्म कर दिया गया.
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बचाव के लिए डॉल्फिन
सी लायन और डॉल्फिन अमेरिकी सेना में 1960 से काम कर रहे हैं. वह नौसेना के मैमल प्रोग्राम का हिस्सा हैं. उन्हें दुश्मन गोताखोरों का पता लगाने, जहाज के यात्रियों को सुरक्षित तट तक पहुंचाने और पानी के नीचे बिछाई गई बारुदी सुरंगों का पता लगाने के लिए किया जाता था. इराक युद्ध के दौरान फारस की खाड़ी में बारूदी सुरंगों की सफाई का काम डॉल्फिन करती थीं.
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सूंघने वाली मधुमक्खियां
मीठा पराग सूंघने की मधुमक्खी की क्षमता का भी इस्तेमाल सेना में किया गया. क्रोएशिया में बम पार्टिकल को मीठे घोल में डूबा कर शोधकर्ता ऐसी मधुमक्खियां ब्रीड करवा रहे हैं जो तीन मील दूर से ही छिपी हुई बारुदी सुरंग का पता लगा लें.
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नौकरी पर चूहे
तंजानिया में बेल्जियाई गैर सरकारी संगठन अपोपो चूहों को बारुदी सुरंग सूंघने की ट्रेनिंग दे रहा है. इन्हें कड़ी ट्रेनिंग दी जाती है और फिर ये दूसरे देशों को किराये पर दिए जाते हैं. फिलहाल 57 चूहे ऐसे हैं जो इन सुरंगों का पता लगा सकते हैं.
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आतंक निरोधी चूहे
1970 में ब्रिटेन की एमआई5 ने योजना बनाई कि वह खास चूहों की एक टीम बनाएगी जिन्हें एड्रेनलीन यानि स्ट्रेस हार्मोन सूंघना सिखाया जाएगा. जैसे ही किसी में एड्रेनलीन बढ़ेगा चूहे उसे सूंघ लेंगे. सबसे पहले इन्हें तेल अवीव में आतंकियों को सूंघने के लिए तैनात किया गया, लेकिन जल्द ही पता चला कि वे नर्वस यात्रियों और आतंकियों के बीच फर्क नहीं कर सकते.
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शहीदों की याद में
दुनिया भर की सेनाएं जानवरों की खासियतों पर सालों साल निर्भर रही है. लंदन में विश्व युद्ध के दौरान मारे गए जानवरों की याद में ये स्मारक बनाया बनाया गया है. इसे 2004 में लंदन में सार्वजनिक रूप से खोला गया.
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लियेज के बाद एक और समारोह फ्रांस के मों शहर में होगा जहां लंदन और पेरिस में नेताओं ने जर्मन सैनिकों को आगे बढ़ने से रोकने की कोशिश की. मों में ब्रिटेन के पत्नी केट के साथ प्रिंस विलियम, उनके भाई प्रिंस हैरी और प्रधानमंत्री डेविड कैमरन समारोह की अगुवाई करेंगे. इसी जगह पर पहले ब्रिटिश सैनिक की मौत हुई थी और इसकी जगह पर 11 नवंबर 1918 में चार साल की बर्बरता के बाद आखिरी बार एक ब्रिटिश सैनिक की मौत हुई थी. इस दिन को आर्मिस्टिस डे के नाम से जाना जाता है.
मों समारोह में सें-सिंम्फोरियां के कब्रिस्तान को याद किया जाएगा जहां कॉमनवेल्थ के 22 और 284 जर्मन सैनिकों को एक साथ दफनाया गया है.