1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

मराठवाड़ा में किसानों की हालत खराब

७ फ़रवरी २०२०

महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में पड़ने वाले आठ जिलों के किसान इन दिनों बहुत परेशान हैं. उनके सामने रोजगार का संकट पैदा हो गया है और ऐसे में गुजर बसर करना मुश्किल हो रहा है.

Indien Landwirtschaft Kartoffeln
तस्वीर: Getty Images/AFP/D. Dutta

महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र का बीड जिला सूखाग्रस्त इलाके में आता है. वहां आमतौर पर सामान्य से कम बारिश होती है. लेकिन पिछले साल बेमौसम बारिश के कारण वहां के किसान अब आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं. पिछले साल बारिश इतनी हुई कि किसानों की अच्छी फसल चौपट हो गई और उन्होंने जो कर्ज लिया था अब वे वह भी चुकाने में असमर्थ हैं.

गन्ना काटने के लिए पलायन करने वाले किसानों पर आई ऑक्सफैम इंडिया की एक नई रिसर्च बताती है कि हर साल 14 साल से कम उम्र के करीब दो लाख बच्चे अपने माता-पिता के साथ गन्ना काटने के लिए सूखा प्रभावित मराठवाडा से पलायन करते हैं. जबकि मराठवाडा खुद भी गन्ने की खेती का एक केंद्र है.

किसानों के लिए काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता और वकील विशाल कदम कहते हैं, "कपास, बाजरा और सोयाबीन की खेती करने वाले किसानों को बहुत आर्थिक नुकसान हुआ है. साथ ही फसल बीमा कंपनियों की भूमिका भी भ्रष्ट रही है. राज्य सरकार और केंद्र सरकार को जिस तरह जिम्मेदारी लेनी चाहिए थी, वह उन्होंने सही तरीके से नहीं निभाई."

मराठवाड़ा इलाके में आमतौर पर खेत में काम करने वाले पुरुष मजदूर को 300 रुपये और महिला मजदूर को 150-200 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से दिहाड़ी मिलती है. लेकिन गांव में काम ना होने के कारण वे पलायन कर रहे हैं. गांव से पलायन कर खेत मजदूर शहरी क्षेत्र जैसे पुणे, औरंगाबाद जा रहे हैं. किसानों का कहना है कि उन्होंने पूरी जिंदगी गांव में आत्मसम्मान और स्वाभिमान से बिताई लेकिन अब उन्हें ऐसे हालात में जिंदगी गुजारना पड़ रहा है.

सांकेतिक तस्वीर.तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Panthaky

किसान पुत्र आंदोलन नाम के संगठन से जुड़े अमर हबीब बताते हैं, "पिछले साल शुरुआत में बारिश नहीं हुई लेकिन जब बाद में बारिश हुई तो वह आफत बन गई. किसानों और मजदूरों का पलायन तो पिछले कुछ सालों से जारी है लेकिन अब वह और बढ़ गया है. गांव के किसान और खेती मजदूर शहरों में जाकर कुछ भी काम कर लेते हैं जिससे वे जिंदगी चला सकें." हबीब बताते हैं कि लैंड होल्डिंग कम होने की वजह से किसानों की हालत ज्यादा खराब हुई है और जितनी जमीन उनके पास बची है, उस पर किसानों का भी गुजारा होना मुश्किल है.

हबीब कहते हैं, "अगर किसी किसान के पास दो एकड़ जमीन है तो वह क्या करेगा और वह किसको काम पर लगाएगा. ऐसे में किसान खुद आधे समय मजदूरी करता है. किसानों की आय का मुख्य स्रोत मजदूरी बन गया है. यही कारण है कि गांव में किसान कम बचे हैं और जो थे वे पलायन कर चुके हैं."

सांकेतिक तस्वीर.तस्वीर: Getty Images/AFP/N. Nanu

दूसरी ओर विशाल कहते हैं कि किसानों के ऊपर बैंकों के कर्ज के साथ-साथ साहूकारों का भी कर्ज है. उनके मुताबिक, "बीड जिले के किसान साहूकारों के कर्ज के चक्र में फंसे हुए हैं. उनपर ब्याज बढ़ता ही जा रहा है." वह कहते हैं कि जब किसान अपना कर्ज नहीं चुका पाएगा और परिवार का गुजारा नहीं कर पाएगा तो वह कैसे खेत में काम करने वाले मजदूरों को मजदूरी दे पाएगा. किसानों के लिए काम करने वाले संगठनों का कहना है कि बीड जिले में मनरेगा का भी काम नहीं है जो पलायन का एक और कारण है.

किसान और खेती मजदूरों के इस संकट पर विशाल का कहना है, "इन हालात में किसानों के पास खुदकुशी के अलावा कोई और रास्ता नहीं बचता." महाराष्ट्र राजस्व विभाग के मुताबिक 2019 में किसान आत्महत्या के 2,808 मामले दर्ज किए गए थे. हबीब कहते हैं, "बहुत सारे लोगों ने आत्महत्या की कोशिश की है लेकिन वे मामले दर्ज ही नहीं है. किसान और खेती मजदूर पलायन कर जीने का रास्ता निकाल रहे हैं और जिनके पास जीने का रास्ता ही नहीं बचा है, वे खुदकुशी कर रहे हैं. "

इस तरह महाराष्ट्र के छोटे-छोटे गांव के किसान बड़े शहरों में जाकर सड़क किनारे या झुग्गी बस्ती में गुमनाम जिंदगी बिताने को मजबूर हैं.

__________________________

हमसे जुड़ें: WhatsApp | Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें