पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए महाराष्ट्र सरकार ने सिंगल यूज प्लास्टिक पर रोक लगा दी है. कुछ लोग इसका समर्थन कर रहे हैं, तो बहुत से अब भी प्लास्टिक के इस्तेमाल से दूर नहीं होना चाहते.
विज्ञापन
प्लास्टिक बैग के अत्यधिक उपयोग ने पर्यावरण को नष्ट करने का काम किया है. जहां-तहां पड़ा प्लास्टिक कचरा न सिर्फ स्वास्थ्य पर बुरा असर डालता है, बल्कि पूरे पारिस्थितिक-तंत्र को नुकसान पहुंचा रहा है. प्लास्टिक बैग के उपयोग से होने वाले नुकसान के बारे में तमाम सरकारी और गैर सरकारी प्रयासों के बावजूद इसका उपयोग अब तक जारी है. प्लास्टिक थैलियों में सामान देने और लेने में कमी नहीं आते देख महाराष्ट्र सरकार ने इस पर पाबंदी लगा दी है. साथ ही उपयोग करने पर जुर्माना भी लगा दिया है. जानकारों का मानना है कि जुर्माने के जरिए प्लास्टिक बैग के उपयोग पर रोक लग सकती है.
प्लास्टिक से प्रदुषण फैलाने में भारत दुनिया के 20 शीर्ष देशों में शामिल है. प्लास्टिक कचरे का दुष्प्रभाव जमीन, पानी और हवा तीनों पर पड़ता है. प्लास्टिक के तत्व जमीन में मिल जाने से जमीनों की उर्वरता खराब हो रही है. दूसरी तरफ प्लास्टिक कचरे से पानी भी दूषित हो रहा है. इससे भूजल पर विपरीत असर पड़ा है. वहीं, प्लास्टिक को जलाने से कई जहरीली गैस वातावरण में मिल जाती है, जिससे हवा भी प्रदूषित हो रही है.
प्लास्टिक कचरे का दुष्प्रभाव इंसानों के साथ ही अन्य जीवों पर भी पड़ रहा है. इसकी वजह से समुद्री जीवों की कुछ प्रजातियां धीरे-धीरे खत्म हो रही हैं. आवारा पशुओं के पेट में से प्लास्टिक बैग निकलना आम हो चला है. भारत में हर साल सैकड़ों गायों की मौत प्लास्टिक की थैलियां निगल जाने के कारण हो जाती है. पर्यावरण मंत्री हर्षवर्धन का कहना है कि एक बार इस्तेमाल के बाद फेंक दिए जाने वाले प्लास्टिक को 2022 तक समाप्त कर दिया जाएगा.
प्लास्टिक की जगह ये चीजें करें इस्तेमाल
जब प्लास्टिक लोगों की जिंदगियों का हिस्सा बना, तो सिर्फ उसके फायदों पर ही सबका ध्यान गया, इस पर नहीं कि यह कमाल का आविष्कार भविष्य के लिए कितना खतरनाक साबित हो सकता है. अब प्लास्टिक को अलविदा कहने का वक्त आ गया है.
प्लास्टिक को अपनी जिंदगी से निकालने में सबसे अहम कदम तो यही है कि इसकी दीवानगी को छोड़ा जाए. प्लास्टिक की जगह कपड़े के थैले का इस्तेमाल किया जा सकता है. इन जनाब की तरह प्लास्टिक की स्ट्रॉ को मुंह में फंसाने की शर्त लगाने की जगह कुछ बेहतर भी सोचा जा सकता है. मैर्को हॉर्ट ने 259 स्ट्रॉ को मुंह में रखने का रिकॉर्ड बनाया था.
तस्वीर: AP
खा जाओ
यूरोपीय संघ सिंगल यूज प्लास्टिक पर रोक लगाने पर विचार कर रहा है. ऐसे में प्लास्टिक की स्ट्रॉ, कप, चम्मच इत्यादि बाजार से गायब हो जाएंगे. इनके विकल्प पहले ही खोजे जा चुके हैं. जैसे कि जर्मनी की कंपनी वाइजफूड ने ऐसे स्ट्रॉ बनाए हैं जिन्हें इस्तेमाल करने के बाद खाया जा सकता है. ये सेब का रस निकालने के बाद बच गए गूदे से तैयार की जाती हैं.
तस्वीर: Wisefood
आलू वाला चम्मच
एक दिन में कुल कितने प्लास्टिक के चम्मच और कांटे इस्तेमाल होते हैं, इसके कोई आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं लेकिन इतना जरूर है कि दुनिया भर में कूड़ेदान इनसे भरे रहते हैं. भारत की कंपनी बेकरीज ने ज्वार से छुरी-चम्मच बनाए हैं. स्ट्रॉ की तरह इन्हें भी आप खा सकते हैं. ऐसा ही कुछ अमेरिकी कंपनी स्पड वेयर्स ने भी किया है. इनके चम्मच आलू के स्टार्च से बने हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Scholz
चोकर वाली प्लेट
जिस थाली में खाएं, उसी को खा भी जाएं! पोलैंड की कंपनी बायोट्रेम ने चोकर से प्लेटें तैयार की हैं. अगर आपका इन्हें खाने का मन ना भी हो, तो कोई बात नहीं. इन प्लेटों को डिकंपोज होने में महज तीस दिन का वक्त लगता है. खाने की दूसरी चीजों की तरह ये भी नष्ट हो जाती हैं. और इन प्लेटों का ना सही तो पत्तल का इस्तेमाल तो कर ही सकते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Reszko
कप और ग्लास
अकेले यूरोप में हर साल 500 अरब प्लास्टिक के कप और ग्लास का इस्तेमाल किया जाता है. नए कानून के आने के बाद इन सब पर रोक लग जाएगी. इनके बदले कागज या गत्ते के बने ग्लास का इस्तेमाल किया जा सकता है. जर्मनी की एक कंपनी घास के इस्तेमाल से भी इन्हें बना रही है. तो वहीं बांस से भी ऑर्गेनिक ग्लास बनाए जा रहे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/empics/D. Thompson
घोल कर पी जाओ
इंडोनेशिया की एक कंपनी अवनी ने ऐसे थैले तैयार किए हैं जो देखने में बिलकुल प्लास्टिक की पन्नियों जैसे ही नजर आते हैं. लेकिन दरअसल ये कॉर्नस्टार्च से बने हैं. इस्तेमाल के बाद अगर इन्हें इधर उधर कहीं फेंक भी दिया जाए तो भी कोई बात नहीं क्योंकि ये पानी में घुल जाते हैं. कंपनी का दावा है कि इन्हें घोल कर पिया भी जा सकता है.
तस्वीर: Avani-Eco
अपना अपना ग्लास
भाग दौड़ की दुनिया में बैठ कर चाय कॉफी पीने की फुरसत सब लोगों के पास नहीं है. ऐसे में रास्ते में किसी कैफे से कॉफी का ग्लास उठाया, जब खत्म हुई तो कहीं फेंक दिया. इसे रोका जाए, इसके लिए बर्लिन में ऐसा प्रोजेक्ट चलाया जा रह है जिसके तहत लोग एक कैफे से ग्लास लें और जब चाहें अपनी सहूलियत के अनुसार किसी दूसरे कैफे में उसे लौटा दें.
तस्वीर: justswapit
क्या जरूरत है?
ये छोटे से ईयर बड समुद्र में पहुंच कर जीवों को भारी नुकसान पहुंचाते हैं. समुद्री जीव इसे खाना समझ कर खा जाते हैं. यूरोपीय संघ इन पर भी रोक लगाने के बारे में सोच रहा है. इन्हें बांस या कागज से बनाने पर भी विचार चल रहा है. लेकिन पर्यावरणविद पूछते हैं कि इनकी जरूरत ही क्या है. लोग नहाने के बाद अपना तौलिया भी तो इस्तेमाल कर सकते हैं.
तस्वीर: picture alliance/dpa/Wildlife Photographer of the Year /J. Hofman
8 तस्वीरें1 | 8
23 मार्च को राज्य सरकार ने एक अधिसूचना जारी करके सभी तरह की प्लास्टिक सामग्री के उत्पादन, इस्तेमाल, बिक्री, वितरण और भंडारण पर प्रतिबंध लगा दिया था, जिसमें एक बार इस्तेमाल किए जाने वाले बैग, चम्मच, प्लेट, पीईटी और पीईटीई बोतल और थर्मोकोल की चीजें भी शामिल थीं. अधिसूचना में निर्माताओं, वितरकों और रिटेल व्यापारियों को प्रतिबंधित माल के वर्तमान भंडार के खत्म करने के लिए तीन महीने की अवधि प्रदान की गई थी. उपयोगकर्ताओं को ऐसी चीजों को खत्म करने के लिए केवल एक महीने की अवधि प्रदान की गई थी. सरकार के इस निर्णय के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाने वालों को कोई राहत नहीं मिली. मुंबई उच्च न्यायालय ने प्लास्टिक सामग्री पर प्रतिबंध लगाने के महाराष्ट्र सरकार के निर्णय पर रोक लगाने से इनकार करते हुए लोगों से प्लास्टिक बैन में अपनी सहायता देने की अपील की थी. अदालत ने कहा कि वह पर्यावरण पर प्लास्टिक कचरे के प्रतिकूल प्रभाव को नजरंदाज नहीं कर सकती.
एक अनुमान के मुताबिक महाराष्ट्र में हर रोज 1200 मीट्रिक टन प्लास्टिक कचरा निकलता है, जो राज्य के पर्यावरण के साथ लोगों की सेहत पर भी बुरा असर डालता है. पर्यावरण कार्यकर्ता तो पहले से ही प्लास्टिक थैलियों के विरोध में अभियान चलाए हुए थे. अब आम लोगों को भी प्लास्टिक कचरे के प्रतिकूल प्रभाव से पर्यावरण को हो रहे नुकसान की चिंता होने लगी है. सरकार के प्लास्टिक पर प्रतिबंध का जनता विरोध नहीं कर रही है. उलटे जनता का एक वर्ग सरकार से इस कदम का स्वागत कर रहा है.
एक उपभोक्ता सीमा जाधव कहती हैं कि अब वह सब्जी लेने जाती हैं, तो बिना झोला लिए घर से नहीं निकलती. पहले प्लास्टिक थैलियों में ही लेकर आती थीं. वहीं सब्जी विक्रेता किशन यादव कहते हैं, "अब भी अधिकतर लोग सब्जी रखने के लिए प्लास्टिक थैली की मांग करते हैं." यानी सरकार के तमाम प्रयास के बावजूद लोग प्लास्टिक बैग का उपयोग करना नहीं छोड़ रहे हैं. शायद जुर्माने के बाद लोग इसके उपयोग से परहेज करने लगें.
प्लास्टिक बैग के नुकसान को देखते हुए कागज या कपड़े के बैग के इस्तेमाल पर जोर दिया जा रहा है. वैसे, कागज लकड़ी से बनता है और लकड़ी का स्रोत पेड़ है. इसलिए अगर कागज का इस्तेमाल बढ़ेगा, तो अधिक पेड़ कटेगा जो अंततः पर्यावरण के लिए नुकसानदायक ही होगा.
प्लास्टिक बैग पर कड़ा बैन लगाने वाले देश
प्लास्टिक और पॉलीथिन के कचरे से ज्यादातर देश परेशान हैं. लेकिन कड़े कदम उठाने की हिम्मत नहीं कर पा रहे हैं. इस मामले में अफ्रीका के ये देश मिसाल से कम नहीं है.
तस्वीर: picture alliance/WILDLIFE
इरीट्रिया
2005 से प्लास्टिक बैग पर पाबंदी.
तस्वीर: picture alliance/WILDLIFE
तंजानियाइरीट्रिया
2006 से पॉलीथिन पर पाबंदी.
तस्वीर: Getty Images/AFP/J. Directo
बोत्सवाना
2007 से प्लास्टिक बैग्स पर बैन.
तस्वीर: Reuters/A. Zeyad
रवांडा
2008 से प्लास्टिक बैगों पर पाबंदी.
तस्वीर: Divine Agborli
गाबोन
2010 से पॉलीथिन बैग पर पाबंदी.
तस्वीर: Divine Agborli
मॉरिटेनिया
2013 से प्लास्टिक बैग्स के उत्पादन और बिक्री पर रोक.