महाराष्ट्र में फिर एक बार आंदोलन के लिए सड़कों पर किसान
क्रिस्टीने लेनन
२१ नवम्बर २०१८
महाराष्ट्र में हजारों किसान खेतों की बजाय सड़कों पर हैं. अधिकारों और सुविधाओं से स्वयं को वंचित बताने वाले ये किसान अब सरकार से आर पार की लड़ाई लड़ना चाहते हैं.
विज्ञापन
महाराष्ट्र में सरकार से नाउम्मीद हो चुके हजारों किसानों को एक बार फिर सड़क पर उतरना पड़ा है. ये किसान स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने के साथ ही न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कानून लाने जैसी मांगों के लिए आंदोलन कर रहे हैं.
बारबारसड़कपरउतरतेकिसान
महाराष्ट्र में किसानों का यह पहला आंदोलन नहीं है. इसी साल मार्च के महीने में भी किसानों ने ऐसा ही एक बड़ा प्रदर्शन किया था तब लगभग 25 हजार किसान नासिक से मुंबई आए थे. किसानों ने कर्ज माफी और अपनी फसलों को उचित न्यूनतम समर्थन मूल्य दिलाने के लिए पिछले साल भी आन्दोलन का सहारा लिया था. कर्ज माफी की योजना की घोषणा कर तब सरकार किसानों को मानाने में सफल रही थी. बार बार सड़क पर उतरते किसानों की मांगे नई नहीं है. मुख्य रूप से लोड शेडिंग की समस्या, वन अधिकार कानून लागू करने, सूखे से राहत, न्यूनतम समर्थन मूल्य जैसी मांगों पर किसान तुरंत निर्णय चाहते हैं. स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुसार किसान फसल उत्पादन मूल्य से पचास प्रतिशत ज्यादा दाम की गारंटी चाहते हैं. इसका वादा सरकार ने ही किया था.
ये हैं भारतीय किसानों की मूल समस्याएं
भारत की पहचान एक कृषि प्रधान देश के रूप में रही है लेकिन देश के बहुत से किसान बेहाल हैं. इसी के चलते पिछले कुछ समय में देश में कई बार किसान आंदोलनों ने जोर पकड़ा है. एक नजर किसानों की मूल समस्याओं पर.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/P. Adhikary
भूमि पर अधिकार
देश में कृषि भूमि के मालिकाना हक को लेकर विवाद सबसे बड़ा है. असमान भूमि वितरण के खिलाफ किसान कई बार आवाज उठाते रहे हैं. जमीनों का एक बड़ा हिस्सा बड़े किसानों, महाजनों और साहूकारों के पास है जिस पर छोटे किसान काम करते हैं. ऐसे में अगर फसल अच्छी नहीं होती तो छोटे किसान कर्ज में डूब जाते हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/NJ. Kanojia
फसल पर सही मूल्य
किसानों की एक बड़ी समस्या यह भी है कि उन्हें फसल पर सही मूल्य नहीं मिलता. वहीं किसानों को अपना माल बेचने के तमाम कागजी कार्यवाही भी पूरी करनी पड़ती है. मसलन कोई किसान सरकारी केंद्र पर किसी उत्पाद को बेचना चाहे तो उसे गांव के अधिकारी से एक कागज चाहिए होगा.ऐसे में कई बार कम पढ़े-लिखे किसान औने-पौने दामों पर अपना माल बेचने के लिए मजबूर हो जाते हैं.
तस्वीर: DW/M. Krishnan
अच्छे बीज
अच्छी फसल के लिए अच्छे बीजों का होना बेहद जरूरी है. लेकिन सही वितरण तंत्र न होने के चलते छोटे किसानों की पहुंच में ये महंगे और अच्छे बीज नहीं होते हैं. इसके चलते इन्हें कोई लाभ नहीं मिलता और फसल की गुणवत्ता प्रभावित होती है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/N. Seelam
सिंचाई व्यवस्था
भारत में मॉनसून की सटीक भविष्यवाणी नहीं की जा सकती. इसके बावजूद देश के तमाम हिस्सों में सिंचाई व्यवस्था की उन्नत तकनीकों का प्रसार नहीं हो सका है. उदाहरण के लिए पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के क्षेत्र में सिंचाई के अच्छे इंतजाम है लेकिन देश का एक बड़ा हिस्सा ऐसा भी है जहां कृषि, मॉनसून पर निर्भर है. इसके इतर भूमिगत जल के गिरते स्तर ने भी लोगों की समस्याओं में इजाफा किया है.
तस्वीर: picture alliance/NurPhoto/S. Nandy
मिट्टी का क्षरण
तमाम मानवीय कारणों से इतर कुछ प्राकृतिक कारण भी किसानों और कृषि क्षेत्र की परेशानी को बढ़ा देते हैं. दरअसल उपजाऊ जमीन के बड़े इलाकों पर हवा और पानी के चलते मिट्टी का क्षरण होता है. इसके चलते मिट्टी अपनी मूल क्षमता को खो देती है और इसका असर फसल पर पड़ता है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/M. Swarup
मशीनीकरण का अभाव
कृषि क्षेत्र में अब मशीनों का प्रयोग होने लगा है लेकिन अब भी कुछ इलाके ऐसे हैं जहां एक बड़ा काम अब भी किसान स्वयं करते हैं. वे कृषि में पारंपरिक तरीकों का इस्तेमाल करते हैं. खासकर ऐसे मामले छोटे और सीमांत किसानों के साथ अधिक देखने को मिलते हैं. इसका असर भी कृषि उत्पादों की गुणवत्ता और लागत पर साफ नजर आता है.
तस्वीर: DW/P. Mani Tewari
भंडारण सुविधाओं का अभाव
भारत के ग्रामीण इलाकों में अच्छे भंडारण की सुविधाओं की कमी है. ऐसे में किसानों पर जल्द से जल्द फसल का सौदा करने का दबाव होता है और कई बार किसान औने-पौने दामों में फसल का सौदा कर लेते हैं. भंडारण सुविधाओं को लेकर न्यायालय ने भी कई बार केंद्र और राज्य सरकारों को फटकार भी लगाई है लेकिन जमीनी हालात अब तक बहुत नहीं बदले हैं.
तस्वीर: Anu Anand
परिवहन भी एक बाधा
भारतीय कृषि की तरक्की में एक बड़ी बाधा अच्छी परिवहन व्यवस्था की कमी भी है. आज भी देश के कई गांव और केंद्र ऐसे हैं जो बाजारों और शहरों से नहीं जुड़े हैं. वहीं कुछ सड़कों पर मौसम का भी खासा प्रभाव पड़ता है. ऐसे में, किसान स्थानीय बाजारों में ही कम मूल्य पर सामान बेच देते हैं. कृषि क्षेत्र को इस समस्या से उबारने के लिए बड़ी धनराशि के साथ-साथ मजबूत राजनीतिक प्रतिबद्धता भी चाहिए.
तस्वीर: DW/P. Mani Tewari
पूंजी की कमी
सभी क्षेत्रों की तरह कृषि को भी पनपने के लिए पूंजी की आवश्यकता है. तकनीकी विस्तार ने पूंजी की इस आवश्यकता को और बढ़ा दिया है. लेकिन इस क्षेत्र में पूंजी की कमी बनी हुई है. छोटे किसान महाजनों, व्यापारियों से ऊंची दरों पर कर्ज लेते हैं. लेकिन पिछले कुछ सालों में किसानों ने बैंकों से भी कर्ज लेना शुरू किया है. लेेकिन हालात बहुत नहीं बदले हैं.
तस्वीर: Aditi Mukerji
9 तस्वीरें1 | 9
इस आन्दोलन में एक बड़ी संख्या उन आदिवासियों की है जो जंगल-जमीन पर अपने अधिकार को सुरक्षित रखना चाहते हैं. ये आदिवासी किसान वर्ष 2006 में पास हुए वन अधिकार कानून को ठीक ढंग से लागू किए जाने की मांग कर रहे हैं. सामाजिक कार्यकर्ता आनंद रेवतकर का कहना है कि वन अधिकार कानून आदिवासी किसानों को जंगल से पैदा होने वाले उत्पादों के सहारे अपनी जीविका चलाने का अधिकार देता है.
सरकारसेनाराजगी
सरकार से नाराज हजारों किसानों ने एक बार फिर मुंबई में शक्ति का अहसास सरकार को कराया है. कृषि मंत्रालय से कुछ दूरी पर ही स्थित आजाद मैदान में अनुमान है कि लगभग 20 से 30 हजार किसान पहुंचे हैं. दो दिवसीय विरोध प्रदर्शन का आयोजन करने वाली किसान और आदिवासी लोक संघर्ष समिति ने सरकार पर किसानों के हितों की उपेक्षा करने का आरोप लगाया है. आंदोलन करने आए अधिकतर किसान मुख्यमंत्री पर वादाखिलाफी का आरोप लगा रहे हैं. इस साल मार्च में हुए किसान आंदोलन के बाद सरकार ने लगभग सभी मांगों पर सहमति जताते हुए आंदोलन को खत्म करा दिया था. तब, मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने किसानों को भरोसा दिलाने के लिए एक पत्र भी जारी किया था. किसान संगठनों का दावा है कि 8 महीने बीत जाने के बाद भी सरकार ने अब तक कोई वादा पूरा नहीं किया है. इस बार आर पार की लड़ाई के मूड में संघर्षरत किसान राज्य सरकार की ओर से आश्वासन नहीं एक्शन चाहते हैं.
हालातअच्छेनहींहैं
महाराष्ट्र का एक बड़ा क्षेत्र हर साल सूखे की चपेट में आता है, जिससे किसानों के सामने बड़ा संकट खड़ा हो जाता है. इस साल भी राज्य के कई क्षेत्रों में सूखे की स्थिति पैदा हो गई है. मराठवाड़ा क्षेत्र में नौ बांध में से दो सूख चुके हैं और दूसरे बांधों में भी पर्याप्त पानी नहीं है. किसानों के लिए ये हालात अच्छे नहीं कहे जा सकते. साल दर साल खेती से जुड़े लोगों की समस्या बढ़ती जा रही है. सूखा और दूसरे कारणों से किसानों की कमाई प्रभावित हुई है. कर्ज का जाल और आत्महत्या का संबंध भी कृषि संकट से ही जुड़ा हुआ है. जल संरक्षण के क्षेत्र में कार्य करने के लिए प्रसिद्ध राजेंद्र सिंह भी किसानों को समर्थन देने के लिए आंदोलन में शरीक हुए हैं. उन्होंने, जल संकट का सामना कर रहे किसानों के लिए सरकार से समाधान करने की अपील की है.
किसानों के समर्थन में और भी आवाजें उठने लगी हैं. कई दलों ने किसानों की चिंता के साथ स्वयं को जोड़ा है. किसानों की मांगों को सही ठहराने वालों की संख्या भी बढ़ी है. केंद्र और महाराष्ट्र में बीजेपी के साथ सरकार चला रही शिवसेना भी किसानों का समर्थन कर रही है. शिवसेना सांसद श्रीकांत शिंदे ने आन्दोलनरत किसानों से मुलाकात के बाद कहा कि उनकी पार्टी किसानों की मांगों का समर्थन करती है.