महाराष्ट्र में सत्ता के नाटक का पर्दा अभी गिरा नहीं है
२५ नवम्बर २०१९महाराष्ट्र में चल रहे सत्ता के खेल का कम से कम एक और दिन चलना तय हो गया है. महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस को राज्यपाल की ओर से सरकार बनाने का निमंत्रण दिए जाने के खिलाफ शिव सेना, कांग्रेस और एनसीपी की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को आदेश सुरक्षित रख लिया. कोर्ट का कहना है कि फैसला मंगलवार सुबह 10.30 बजे सुनाया जाएगा.
इसके पहले रविवार को याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत के तीन जजों की पीठ ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया था कि राज्य में सरकार बनाने से जुड़े दो महत्वपूर्ण पत्र अदालत में प्रस्तुत किये जाएं. पहला पत्र वह है जो राज्यपाल ने देवेंद्र फडणवीस को सरकार बनाने का निमंत्रण देने के लिए लिखा और दूसरा, फडणवीस की ओर से बहुमत का दावा करने वाला राज्यपाल को लिखा पत्र. सोमवार को केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने दोनों पत्र अदालत में प्रस्तुत किये. इसके बाद सभी पक्षों के वकीलों ने अपनी अपनी दलीलें पेश कीं और एक लम्बी जिरह के बाद अदालत ने आदेश सुरक्षित रख लिया.
एनसीपी विधायकों का रहस्यमयी पत्र
पूरा मामला इस प्रश्न पर टिका है कि क्या वाकई एनसीपी के विधायकों ने बीजेपी को समर्थन दिया? 23 नवम्बर को एक नाटकीय घटनाक्रम के तहत तड़के सुबह राज्यपाल ने फडणवीस को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी. फडणवीस का दावा था की एनसीपी के विधायक दाल के तत्कालीन नेता अजित पवार के नेतृत्व में उनकी पार्टी के विधायकों ने बीजेपी को समर्थन दे दिया है और बीजेपी-एनसीपी के इस गठबंधन के पास सरकार बनाने के लिए पर्याप्त विधायक हैं.
इस घटनाक्रम ने सब को चौंका दिया क्योंकि एनसीपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और अजीत पवार के चाचा शरद पवार बीजेपी के खिलाफ कांग्रेस और शिव सेना के साथ मिलकर सरकार बनाने की बातचीत कर रहे थे. शरद पवार ने तुरंत प्रेस वार्ता की और कहा कि उनके भतीजे के इस कदम का समर्थन उनकी पार्टी नहीं करती है और पार्टी अभी भी शिव सेना और कांग्रेस के ही साथ मिलकर सरकार बनाने की योजना बना रही है.कुछ देर बाद ही अजीत पवार को विधायक दल के नेता पद से हटा भी दिया गया और उनकी जगह जयंत पाटिल को नया नेता नियुक्त किया गया.
सोमवार को अदालत में केंद्र के वकील तुषार मेहता ने कहा कि फडणवीस के पत्र में अजित पवार के लिखे एक और पत्र की चर्चा थी जिसमें पवार ने उनकी पार्टी के 54 विधायकों के समर्थन का आश्वासन दिलाया था. एनसीपी के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने भी माना कि एनसीपी के विधायकों ने हस्ताक्षर तो किये थे, लेकिन अजीत पवार को विधायक दल का नेता बनाने का अनुमोदन करने के लिए, ना कि बीजीपी को समर्थन देने के लिए.
सिंघवी का कहना था कि बीजेपी के सिर्फ हस्ताक्षर हैं लेकिन साथ में कोई कवरिंग लेटर नहीं है जिसमें यह लिखा हुआ हो कि हस्ताक्षर किस लिए किये गए हैं.
फ्लोर टेस्ट पर बहस
सोमवार की सुनवाई में विधान सभा में बहुमत साबित करने पर भी बहस हुई. कांग्रेस, शिव सेना और एनसीपी के वकीलों ने दावा किया कि फडणवीस सरकार के पास बहुमत नहीं है और पीठ से अपील की कि विधान सभा में तुरंत बहुमत साबित करने के आदेश दिए जाएं.
केंद्र और फडणवीस के वकीलों ने कहा कि बहुमत साबित करने के लिए राज्यपाल ने 14 दिन दिए थे और उस अवधि को अचानक घटाया नहीं जा सकता. उन्होंने यह भी कहा कि संविधान के अनुसार प्रक्रिया यह है कि अभी विधायक प्रो-टेम स्पीकर चुनेंगे जिसकी निगरानी में विधान सभा का अध्यक्ष चुना जाएगा और वो बहुमत साबित करने के लिए फ्लोर टेस्ट कराएगा.
दूसरे पक्ष की दलील थी कि प्रो-टेम स्पीकर भी परीक्षण करा सकता है और ऐसा पहले भी हुआ है कि विवाद होने पर सुप्रीम कोर्ट ने तुरंत फ्लोर टेस्ट का आदेश दिया है. अंत में अदालत ने इस मामले पर आज फैसला नहीं सुनाया और उसे मंगलवार तक के लिए सुरक्षित रख लिया.
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