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महिमा को गंभीर भूमिकाओं की तलाश

२१ अक्टूबर २०१२

कई हिट फिल्में देने वाली महिमा चौधरी को अब बॉलीवुड में वापसी के लिए गंभीर भूमिकाओं की तलाश है. एक कार्यक्रम के सिलसिले में कोलकाता पहुंची महिमा ने डॉयचे वेले से बातचीत की. पेश हैं उसके प्रमुख अंश.

तस्वीर: DW/Prabhakar Mani Tiwari

हिंदी फिल्मों के शोमैन कहे जाने वाले सुभाष घई की फिल्म 'परदेस' से अपने फिल्मी करियर की शुरूआत करने वाली ऋतु चौधरी उर्फ महिमा को अब गंभीर भूमिकाओं की तलाश है. वह मानती हैं की घई जैसे निर्देशक के साथ करियर की शुरूआत करने की वजह से उनको कई समस्याओं से भी जूझना पड़ा.

यह बहुत कम लोगों को पता है कि कनाडा में पली-बढ़ी ऋतु ने अपने करियर की शुरूआत मॉडलिंग से की थी. एक साल के भीतर ही सुभाष गई ने उनको परदेस के जरिए हिंदी फिल्मों में ब्रेक तो दिया ही, उनका नाम भी बदल कर महिमा कर दिया.

फिल्म की सफलता ने उनको बॉलीवुड में एक स्थिर पहचान दी लेकिन वह खुद को मिले अवसरों को भुनाने में सफल नहीं हो पाई. महिमा ने परदेस के बाद संजय दत्त और चंद्रचूड सिंह के साथ राजकंवर निर्देशित दाग-द फायर से एक बार फिर अपने आपको बॉलीवुड में साबित किया. लेकिन उसके बाद उन्होंने जिन फिल्मों में काम किया वह बॉक्स ऑफिस पर उतनी कामयाब नहीं रहीं.

जैसे ही उनकी फिल्में असफल होने लगीं, निर्माता निर्देशकों ने उन्हें भुलाना शुरू कर दिया और धीरे-धीरे वे परदे से गायब हो गईं. चर्चित निर्देशक तनूजा चंद्रा की अंग्रेजी फिल्म 'होप एंड ए लिटिल शूगर' से जुड़ी और टीवी डांस शो 'जलवा वन टू का फोर' में बतौर जज बन चुकी महिमा एक बार फिर फिल्मों में सक्रिय हो रही हैं.

तस्वीर: DW/Prabhakar Mani Tiwari

डॉयचे वेले - लंबे अरसे तक आप फिल्मों से दूर रहीं. इस दौरान क्या कर रही थीं?

महिमा - दरअसल मैं निजी जिंदगी में व्यस्त हो गई थी. शादी हुई और एक बेटी भी है आरियाना. 2006 में फिल्म आई थी 'कुड़ियों का है जमाना'. वैसे आजकल लोग एक साल में कम ही फिल्में करते हैं, पहले जैसा नहीं रहा कि चार-पांच फिल्मों पर एक साथ काम होता है.

अपनी पहली ही फिल्म से सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का अवार्ड जीतने के बाद आपके लिए करियर का अनुभव कैसा रहा?

मैंने कभी इस बात की कल्पना नहीं की थी. मैं अकेली अभिनेत्री नहीं हूं जिसे सर्वश्रेष्ठ मान लेने के बाद भी अपने आपको साबित करने में इतना संघर्ष करना पड़ा हो. ऐसे कई कलाकार हैं जो अपने काम के लिए सर्वश्रेष्ठ राष्ट्रीय पुरस्कार जीतने के बाद भी संघर्ष करते रहे हैं. मैंने अपनी तरफ से हर फिल्म में पूरी मेहनत की. अब वह कामयाब रहीं या नहीं, यह नहीं कह सकती.

अपनी अंतिम फिल्म गुमनाम के बाद आप शादी करके गुमनामी के अंधेरे में चली गईं?

ऐसा हो जाता है. घर तो हर इंसान को बसाना ही पड़ता है. लेकिन मैंने शादी के बाद भी काम के बारे में सोचा तो लगा नहीं कि ऐसा होगा. हमारे यहां अब भी विवाहित अभिनेत्रियों को एक अलग छवि के साथ देखा जाता है. छोटे परदे पर ऐसा नहीं है तो मैंने वहां काम किया. जबकि हेमा जी से लेकर शर्मिला और डिम्पल कपाड़िया तक ने विवाह के बाद भी फिल्मों में काम किया है.

छोटे परदे पर आने की क्या वजह थी ?

उस शो में आने की मेरी तीन वजहें थीं. एक, मैं खुद रिएल्टी शोज की प्रशंसक हूं. दूसरा, मैं शो के निर्माता बोनी जैन को आठ साल से जानती हूं और तीसरे, उस समय नाइन-एक्स के जितने भी शो थे वह शानदार थे. यह अलग बात है कि तकनीकी वजहों से वह बंद हो गया.

कहा जाता है कि परदेस के बाद घई ने आपको किसी और फिल्म में नहीं लिया क्योंकि उनको आपके नखरे पंसद नहीं आए और इसका असर आपके करियर पर भी पड़ा.

ऐसी बात नहीं है. कभी भी कोई कलाकार किसी एक निर्देशक के सहारे इंडस्ट्री में काम करने नहीं आता. मेरे और उनके बीच कभी कोई झगड़ा नहीं हुआ. वह मेरे लिए गॉडफादर की तरह थे. लेकिन परदेस के बाद शायद उनके पास मेरे लायक कोई भूमिका ही नहीं थी.

आप अपने करियर और जीवन को किस नजरिए से देखती हैं?

मेरे पिता एक सख्त अनुशासन में रहने वाले व्यक्ति थे और मां सजग महिला थीं. इसकी वजह से मुझे अनुशासित जीवन जीने में मदद मिली. अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद मैंने मॉडलिंग और अभिनय की शुरूआत की. मैं बतौर वीजे पहली बार परदे पर आई. परदेस के बाद जिदंगी बदल गई. लेकिन हमेशा वही नहीं होता जो हम चाहते हैं. मुझो इस बात की खुशी है कि मैंने जो चाहा वह मुझे मिला.

अपने लंबे सफर में आप किन फिल्मों को बेहतर मानती हैं ?

मैंने लगभग तीन दर्जन फिल्मों में काम किया है. लेकिन कुरूक्षेत्र, सहर, दिल क्या करे, दोबारा और परदेस मेरे करियर की सबसे बेहतरीन फिल्में हैं.

फिल्मों की महिमा कुछ संवदेनशील और मजाकिया किस्म की है. असल जिंदगी में आप कैसी हैं?

हां बिल्कुल वैसी ही हूं, संवेदनशील, मजाक़िया और बहुत घरेलू. मुझे घर में रहना बेहद पसंद है.

आजकल अभिनेत्रियों में शादी के बाद भी फिल्मों में काम करने का प्रचलन बढ़ रहा है. क्या शादी-शुदा अभिनेत्रियों के बारे में बॉलीवुड की सोच बदली है?

ऐसा नहीं है. शर्मीला टैगोर ने शादी के बाद भी कई फिल्मों में काम किया था. डिंपल कपाड़िया को लोगों ने शादी के बाद सागर में बहुत पसंद किया, रेखा जी ने हमेशा काम किया है. राखी, हेमा मालिनी, नूतन, तनुजा इन सबने काम किया. फिर बीच में ऐसा हुआ कि अभिनेत्रियों ने शादी के बाद खुद ही काम करना छोड़ दिया. लेकिन अब शादी-शुदा अभिनेत्रियों ने फिर से काम करना शुरु कर दिया है, तो लोग फिर से उन्हें स्वीकार करने लगे हैं. मुझे तो लगता है कि दर्शकों को कभी इस बात से समस्या नहीं रही. लोग तो रेखा जी को लेकर शायद ज्यादा उत्सुक रहते हैं कि उन्होंने खुद को कैसे मेनटेन किया है. माधुरी, जूही या काजोल को देखकर ज्यादा उत्सुक रहते हैं कि मां बनने के बावजूद वह फिल्मों में काम कर रही हैं.

मां बनने के बाद आपके भीतर क्या बदलाव आया है?

मैं हमेशा बच्चों और जानवरों के करीब रही हूं क्योंकि वह आप पर निर्भर होते हैं. मुझे लगता है कि मां बनने के बाद मुझमें यह बड़ा बदलाव आया है कि मैंने अपने बारे में सोचना छोड़ दिया है. अब मैं हमेशा अपनी बेटी के बारे में ही सोचती हूं.

इंटरव्यू: प्रभाकर, कोलकाता

संपादन: ईशा भाटिया

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