दुनिया की सबसे बड़ी प्रयोगशाला सर्न में महिलाओं के खिलाफ टिप्पणी करने पर एक वैज्ञानिक की छुट्टी कर दी गई. लेकिन इस मामले ने विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं के साथ भेदभाव की बहस को फिर तेज कर दिया है.
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यूरोपीयन ऑर्गेनाइजेशन फॉर न्यूक्लियर रिसर्च (सर्न) ने इतालवी भौतिक विज्ञानी अलेसांद्रो स्त्रूमिया की लैंगिक मुद्दों पर एक प्रजेंटेशन को "बेहद आपत्तिजनक" बताते हुए उन्हें निलंबित कर दिया है. पीसा की यूनिवर्सिटी से जुड़े स्त्रूमिया ने "हाई एनर्जी थ्योरी एंड जेंडर" नाम के सेमिनार के दौरान यह प्रजेंटेशन दी थी.
सर्न के प्रवक्ता का कहना है कि तत्काल सेमिनार की रिकॉर्डिंग उपलब्ध नहीं थी. इसलिए जो चार्ट, ग्राफ और तालिका दिखाई गईं, उन्हें संदर्भ के बिना समझना मुश्किल है. लेकिन एक जगह कहा गया था, ''भौतिक विज्ञान को पुरुषों ने ही खोजा और खड़ा किया है. इसे न्यौता देकर नहीं बनाया गया.''
सर्न का कहना है कि प्रोफेसर ने जो प्रेजेंटेशन दिया, उसके कंटेंट की जानकारी संस्था को पहले से नहीं थी, लेकिन उन्होंने जो कहा वह अस्वीकार्य है.
समाचार एजेंसी एपी ने जब इस बारे में स्त्रूमिया से संपर्क किया तो उन्होंने कहा कि उनकी जो सोच थी वह एक गलतफहमी है और वह नहीं मानते कि भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में पुरुष महिलाओं से बेहतर हैं.
उन्होंने कहा, "वर्कशॉप में लगातार कहा जा रहा था कि पुरुष बुरे होते हैं और हमारे साथ भेदभाव करते है. मैंने चेक किया कि क्या वाकई ऐसा है तो परिणाम था, ऐसा नहीं है. "
प्रोफेसर स्त्रूमिया ने कहा, "एक राजनीतिक समूह है जो चाहता है कि महिलाएं और दूसरे लोग खुद को पीड़ित ही समझते रहें." अपने निलंबन पर स्त्रुमिया ने कहा, ''मेरा मानना है कि सर्न गलती कर रहा है. मुझे इसलिए निलंबित किया गया क्योंकि यह सच है और यह राजनीति रुख के उलट है."
महिला आरक्षण बिल की अहम बातें
महिला आरक्षण बिल का मुद्दा फिर चर्चा में है. आइए जानते हैं कि क्या है यह बिल?
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क्या है महिला आरक्षण बिल?
यह भारतीय संविधान के 85वें संशोधन का विधेयक है. इसके अंतर्गत लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी सीटों पर आरक्षण का प्रावधान रखा गया है. इसी 33 फीसदी में से एक तिहाई सीटें अनुसूचित जाति और जनजाति की महिलाओं के लिए आरक्षित की जानी है. महिला आरक्षण के लिए संविधान संशोधन 108वां विधेयक राज्यसभा में 2010 में पारित हो चुका. अब लोकसभा में इसे पारित करवाने की बारी है.
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कभी नहीं बन पाई एक राय
पहली बार इस बिल को 1996 में एचडी देवगौड़ा के नेतृत्व वाली सरकार में पेश किया गया था. तब सत्ता पक्ष में एक राय नहीं बन सकी थी. उस वक्त जेडीयू अध्यक्ष रहे शरद यादव ने इसका विरोध किया था. 1998 में जब इस विधेयक को पेश करने के लिए तत्कालीन कानून मंत्री थंबी दुरई खड़े हुए थे. तब संसद में बड़ा हंगामा हुआ और हाथापाई भी हुई उसके बाद उनके हाथ से विधेयक की प्रति को लेकर लोकसभा में ही फाड़ दिया गया.
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महिला आरक्षण बिल के विरोधी कौन?
आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव का मानना है कि यह बिल लोकतंत्र को खत्म करने की साजिश है. देश में महंगाई, गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और देश के भीतर एवं सीमा पर खतरे जैसी समस्याएं हैं. लोगों का ध्यान इन मुद्दों से हटाने के लिए महिला सशक्तीकरण के नाम पर यह बिल लाया जा रहा है.
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"परकटी महिलाएं"
जेडीयू के पूर्व अध्यक्ष शरद यादव ने संसद में महिला आरक्षण विधेयक का विरोध करते हुए कहा था कि यदि ये बिल पारित हो गया तो वह जहर खा लेंगे. यादव का आरोप था कि इस बिल से सिर्फ परकटी (छोटे बालों वाली) औरतों को फायदा पहुंचेगा. उनकी मांग थी कि इस बिल में अल्पसंख्यक समुदाय की महिलाओं को कोटा मिले.
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मुलायम सिंह का तर्क
सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह की यह मांग थी कि महिला आरक्षण बिल को मूल स्वरूप (यानी अल्पसंख्यक महिलाओं को कोटा दिए बिना) संसद में ना रखा जाए. आरोप लगाया कि इससे देश की अमीर महिलाएं बहुत आगे बढ़ जाएंगी और गरीब वर्ग की औरतें पिछड़ जाएंगी.
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राहुल के पत्र पर मोदी सरकार का जवाब
महिला आरक्षण बिल पास करवाने को लेकर पिछले दिनों लिखे राहुल गांधी के पत्र पर मोदी सरकार ने सियासी पासा फेंका है. कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने शर्त रखी है कि राहुल को महिला आरक्षण विधेयक के साथ तीन तलाक और हलाला मामले पर भी सरकार का साथ देना चाहिए. कांग्रेस तीन तलाक और हलाला के मुद्दे पर बंटी हुई है.
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विधेयक पारित करने का यह है सबसे अच्छा समय
राज्यसभा में बिल के पारित होने की वजह से यह मुद्दा अभी जिंदा है. मोदी सरकार के पास संख्याबल है और अब कांग्रेस ने बिल को पास करने में दिलचस्पी दिखाई है. अगर लोकसभा इसे पारित कर दे, तो राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद यह कानून बन जाएगा. इससे 2019 के लोकसभा चुनाव नए कानून के तहत हो सकेंगे और नई लोकसभा में 33 फीसदी महिलाएं आ सकेंगी.
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महिला शोधकर्ताओं का विरोध
इस वर्कशॉप में मौजूद रहीं और जर्मनी में कॉस्मोलॉजी की पढ़ाई करने वाली लॉरा कोवी का कहना है कि स्त्रुमिया की कही बातों में दम नहीं था. उन्होंने कहा, "वह दावा कर रहे थे कि महिलाएं पुरुषों के मुकाबले कम रिसर्च प्रकाशित होने के बाजवूद पद पा रही हैं. मुझे नहीं लगता कि उनकी बात को साबित करने के लिए कोई डाटा मौजूद है."
कोवी मानती हैं कि दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण भौतिक विज्ञानी पुरुष रहे हैं, लेकिन उनके मुताबिक यह एक तरह का "ऐतिहासिक पूर्वाग्रह" है क्योंकि पुरुषों के पास महिलाओं के मुकाबले पढ़ने-लिखने के अधिक मौके रहे हैं.
कोवी बताती हैं कि स्त्रुमिया पहले भी आपत्तिनजक बातें कहते रहे हैं और सेमीनार में अपनी प्रजेंटेशन के बाद ही उन्हें कई लोगों के विरोध का सामना करना पड़ा. बात इतनी बढ़ गई कि सेशन को फौरन खत्म कर दिया गया. कोवी बताती हैं, "उनकी बातें सुनकर लोग परेशान हो गए. बाद में तो वे पूरी तरह अवैज्ञानिक बातें करने लगे.''
यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन की डॉ. जूली मूट ने भी इस सेमीनार में प्रजेंटेशन दिया. उन्हें यह बात "शर्मनाक" लगती है कि स्त्रुमिया ने वहां पेश दूसरी प्रेजेंटेशनों में कही बातों पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया. इसमें वह अपनी रिसर्च का भी जिक्र करती हैं जो करीब 40 हजार युवाओं पर की गई और इसमें 10 से 18 साल के लोगों के इंटरव्यू शामिल हैं.
एक ईमेल में उन्होंने बताया, ''नतीजे बताते हैं कि भौतिक विज्ञान में लड़कियों को भेदभाव का सामना करना पड़ता है. कोई टीचर कहता है, 'भौतिकी के लिए लड़कों वाले दिमाग की जरूरत है' तो कहीं अध्यापक लड़कों के मुकाबले लड़कियों को भौतिकी पढ़ने के लिए कम प्रोत्साहित करते हैं. इससे लड़कियों को अपनी काबिलियत पर संदेह पैदा होने लगता है कि क्या वे वाकई भौतिक विज्ञान को समझ पा रही हैं.''
दिलचस्प बात यह है कि सर्न की प्रमुख इस समय एक महिला हैं. इतालवी भौतिक विज्ञानी फाबियोला जियानोत्ती इसका नेतृत्व कर रही हैं. इस पूरे विवाद के बाद सर्न ने एक बयान में कहा है कि उसके यहां सभी को बराबर मौके दिए जाते हैं और जातीयता, धार्मिक विश्वास, लिंग या फिर लैंगिक झुकाव के आधार पर किसी से भेदभाव नहीं होता.
वीसी/एमजे (एपी)
दुनिया मुट्ठी में रखने वाली महिलाएं
दुनिया मुट्ठी में रखने वाली महिलाएं
अमेरिकी पत्रिका फॉर्चून हर साल दुनिया की टॉप मैनेजरों की सूची जारी करती है. इसमें एशिया प्रशांत की टॉप मैनेजर भी होती हैं और इंटरनेशनल भी. आइए नजर डालें दुनिया की ताकतवर महिला प्रबंधकों पर..
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चंदा कोचर
आईसीआईसीआई बैंक की प्रबंध निदेशक और सीईओ हैं. इन्हें एशिया प्रशांत की सूची में दूसरी सबसे ताकतवर महिला बताया गया है. पहले नंबर पर ऑस्ट्रेलिया की सीईओ गेल केली हैं.
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अरुंधती भट्टाचार्य
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में तीन साल के लिए चेयरमैन के पद पर बैठने वाली अरुंधती भट्टाचार्य पहली महिला हैं. भारत में एसबीआई की 16,000 शाखाओं में कुल दो लाख अठारह हजार कर्मचारी काम करते हैं.
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वर्जीनिया जिनी रोमेटी
दुनिया में पहले नंबर की मैनेजर आईटी कंपनी आईबीएम की चेयरमैन और सीईओ रोमेटी हैं. वह दो साल से नंबर वन पर बनी हुई हैं.
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मैरी बारा
कार निर्माता कंपनी जनरल मोटर्स की सीईओ इस उद्योग में पहली महिला कार्यकारी अधिकारी बनी. फॉर्चून की विश्व रैकिंग में वह दूसरे नंबर पर हैं.
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इंदिरा नूयी
विश्व रैंकिंग में पेप्सी कंपनी की इंदिरा नूयी तीसरी रैंक पर हैं. 2013 के दौरान अमेरिका के नए 50 सर्वश्रेष्ठ खाद्य पदार्थों और पेय में पेप्सी कंपनी के नौ उत्पाद शामिल थे.
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मैरिलीन ह्यूसन
हथियार निर्माता कंपनी लॉकहीड मार्टिन की अध्यक्ष, चेयरमैन और कार्यकारी अधिकारी भी एक महिला ही हैं, ह्यूसन की दुनिया में रैंकिंग चौथी है. और रक्षा क्षेत्र की कंपनियों में पहली महिला प्रमुख भी.
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शैरिल सैंडबर्ग
पांचवें से 10वीं रैंक पर पहुंसी सैंडबर्ग मशहूर सोशल नेटवर्किंग कंपनी फेसबुक की चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर (सीओओ) हैं. पिछले साल उनकी बेस्टसेलर किताब 'लीन इन' ने उन्हें कॉरपोरेट सेक्टर में लैंगिंक समानता का चेहरा बना दिया.