यौन अपराधों पर सख्त कानूनों के बावजूद भी जमीनी स्तर पर कोई सुधार नहीं हुआ है. यौन हिंसा के लगातार सामने आ रहे मामलों ने एक बार फिर महिलाओं के प्रति समाज के नजिरये पर चर्चा छेड़ दी है.
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भारत में यौन हिंसा के लगातार सामने आ रहे मामलों की वजह से महिलाओं के प्रति समाज के नजरिये पर फिर चर्चा शुरू हो गई है.
यौन अपराधों पर सख्त कानूनों के बावजूद जमीनी स्तर पर कोई सुधार नहीं हुआ है. यौन हिंसा के लगातार सामने आ रहे मामलों की वजह से महिलाओं के प्रति भारतीय समाज के नजरिये पर फिर चर्चा शुरू हो गई है.
हाल के महीनों में महिलाओं के साथ होने वाले बलात्कार, छेड़छाड़ और शोषण जैसे अपराधों में तेजी आई है. छोटे शहरों से लेकर बड़े शहरों में दर्ज होने वाले हाईप्रोफाइल मामले इसी का सबूत पेश कर रहे हैं. पिछले हफ्ते एक दक्षिण भारतीय अभिनेत्री का चलती गाड़ी में बलात्कार किया गया और आपत्तिजनक तस्वीरों के साथ उसका वीडियो भी बनाया गया. इस घटना ने देशभर में हंगामा खड़ा किया और अब लोग दोषियों को कड़ी सजा देने की मांग कर रहे हैं.
"रेप कैपिटल" का तमगा पा चुकी राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के एक पॉश इलाके में पिछले ही हफ्ते एक 24 वर्षीय युवती के साथ बलात्कार किया गया. आंकड़ों के मुताबिक दिल्ली में हर रोज बलात्कार की छह घटनाएं होती हैं लेकिन बलात्कार की ये घटनाएं सिर्फ दिल्ली तक ही सीमित नहीं हैं. मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में भी एक 17 वर्षीय युवती को जबरदस्ती गाड़ी के अंदर खींच कर उसका यौन उत्पीड़न किया गया. वहीं आंध्रप्रदेश में भी पुलिस ने मानसिक रूप से विकलांग एक 14 साल की बच्ची के साथ दुष्कृत्य करने के आरोप में दो लोगों को गिरफ्तार किया.
औरतों के लिए खतरनाक भारतीय शहर
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के 2015 के आंकड़े दिखाते हैं कि किस शहर में महिलाओं के खिलाफ सबसे ज्यादा अपराध हुए. ये छह शहर सबसे ज्यादा खतरनाक साबित हुए.
तस्वीर: Reuters
नंबर 6: दुर्ग-भिलाई, छत्तीसगढ़
दुर्ग और भिलाई दोनों नगरों को मिलाकर आंकड़े खतरनाक रहे. 10 लाख लोगों के इन शहरों में क्राइम रेट 16.4 रहा और रेप की दर रही 7.9.
तस्वीर: Reuters/M. Mukherjee
नंबर 5: नागपुर, महाराष्ट्र
राज्य की दूसरी राजधानी नागपुर में 2015 में रेप के 166 मामले दर्ज हुए और हिंसा 392. यानी रेप की दर रही 6.6 और हिंसक अपराधों की दर रही 15.7.
तस्वीर: AP
नंबर 4: भोपाल, मध्य प्रदेश
राजधानी भोपाल में भी महिलाएं ज्यादा सुरक्षित नहीं हैं. 2015 में यहां 133 रेप हुए और हिंसा के 322 मामले दर्ज हुए. यानी रेप की दर 7.1 रही. हिंसक अपराधों की दर 17.1 रही.
तस्वीर: Berlinale
नंबर 3: ग्वालियर, मध्य प्रदेश
महिलाओं के खिलाफ रेप की दर यहां रही 10.4. हिंसक अपराधों की दर 17.1 रही. 2014 में भी यहां हालात कुछ अच्छे नहीं थे.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
नंबर 2: दिल्ली
भारत की राजधानी दिल्ली को कई बार लोग रेप कैपिटल भी बोलते हैं. आंकड़े भी खतरनाक हैं. यहां 1893 रेप केस हुए और हिंसा के 4563 मामले हुए. यहां रेप की दर रही 11.6 और हिंसा की 28.
तस्वीर: Conway/AFP/Getty Images
नंबर 1: जोधपुर
राजस्थान के किलों का शहर महिलाओं के लिए खतरनाक साबित हुआ है. यहां रेप के 152 मामले सामने आए और हिंसा के 440 मामले दर्ज हुए जिनमें यौन हिंसा भी शामिल है. यानी रेप की दर रही 13.4 और हिंसा की 38.7.
तस्वीर: UNI
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वकील वृंदा ग्रोवर के मुताबिक "देश के हर राज्य में महिलाओं की सुरक्षा का स्तर अलग-अलग है. इसके साथ ही आरोपियों पर दोष साबित न होने के चलते लैंगिंक हिंसा के मामलों में तेजी आई है और ये सारे ही मामले दक्षिण एशियाई देशों में महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा के इतिहास को दर्शाते हैं."
बलात्कार, यौन उत्पीड़न और महिलाओं के साथ होने वाले अपराध यही संकेत देते हैं कि भारत सुरक्षित नहीं है. राष्ट्रीय क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार 2015 के दौरान देश में बलात्कार के 34,651 दर्ज किए गए. लेकिन महिला सुरक्षा को लेकर काम कर रहे लोग इसे सही नहीं मानते. उनके मुताबिक बलात्कार के असल मामले इस आंकड़े से भी अधिक होंगे, लेकिन सुरक्षा की कमी और सामाजिक ताने-बाने के चलते कई बार महिलाएं सामने नहीं आती.
महिलाओं की सुरक्षा, उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनावों में एक अहम चुनावी मुद्दा है. आंकड़ों के मुताबिक उत्तर प्रदेश महिलाओं के लिए देश के सबसे असुरक्षित राज्यों में से एक है. महिलाओं के साथ होने वाले 11 फीसदी अपराध इसी राज्य में होते हैं. दूसरे स्थान पर 10 फीसदी के साथ पश्चिम बंगाल, 9.5 फीसदी के साथ महाराष्ट्र और 8.6 फीसदी के साथ राजस्थान का नंबर आता है.
पूर्व पुलिस अधिकारी अजय कुमार के मुताबिक यौन अपराधों से निपटने के लिए पुलिस सुधारों पर जोर दिया जाना चाहिए. वहीं नागरिक अधिकार समूह और स्वतंत्र शोधकर्ताओं के मुताबिक प्रशासन की कमी और कुछ राज्यों में लिंग अनुपात की गिरती दर भी इन अपराधों के लिए जिम्मेदार है.
भारत में बलात्कार अब भी एक सामाजिक समस्या है और यही कारण है कि जो महिलाएं इस तरह की हिंसा का शिकार भी होती हैं वे इन मामलों की रिपोर्ट दर्ज कराने में संकोच महसूस करती हैं. लेकिन अब बड़े शहरों में महिलाओं के लिए सुरक्षित माहौल तैयार करने की मुहिम छेड़ी गई है. फेसबुक पर "हैशटैग आई विल गो आउट" के साथ की गई शुरुआत अब एक देशव्यापी आंदोलन में तब्दील हो रही है.
इस विषय में काम कर रहीं कल्पना विश्वनाथ के मुताबिक, "भारतीय समाज में हो रहे परिवर्तन को सिर्फ महिलाओं के आसपास रखकर देखा जा रहा है. महिलाओं का काम पर जाना, सार्वजनिक स्थलों का इस्तेमाल करना, हक की मांग करना आदि व्यवहार समाज में महिलाओं के खिलाफ प्रतिक्रिया पैदा कर रहा है और ये प्रतिक्रिया बहुत हद तक महिलाओं पर की जाने वाली हिंसा की जिम्मेदार है."
क्यों होते हैं बलात्कार?
भारत में रोजाना औसतन 92 महिलाओं का बलात्कार होता है. जब भी किसी महिला के साथ यह जघन्य अपराध होता है, कभी सवाल उसके कपड़ों तो कभी देर रात घर से बाहर रहने पर उठाए जाते हैं. क्या महिलाओं पर बंदिशें लगाना ही है उपाय?
तस्वीर: Fotolia/Miriam Dörr
तन ढकने की जरूरत
मानव सभ्यता की शुरुआत से ही मौसम की मार से बचने के लिए शरीर को ढकने की जरूरत महसूस की गई. बीतते समय के साथ जानवरों की छाल पहनने से लेकर आज इतने तरह के कपड़े मौजूद हैं. जीवनशैली के आसान होने के साथ साथ कपड़ों के ढंग भी बदले हैं और अब यह अवसर, माहौल, पसंद और फैशन के हिसाब से पहने जाते हैं. फिर पूरे बदन को ढकने वाले कपड़ों पर जोर क्यों?
तस्वीर: Fotolia/Peter Atkins
अंग प्रदर्शन यानि बलात्कारियों को न्यौता
भारत में बलात्कार के ज्यादातर मामलों में पाया गया है कि पीड़िता ने सलवार कमीज और साड़ी जैसे भारतीय कपड़े पहने हुए थे. उनपर हमला करने वाले पुरुषों ने अपनी सेक्स की भूख के कारण संतुलन खो दिया. ऑनर किलिंग के कई मामलों में किसी महिला को सबक सिखाने के मकसद से उस पर जबरन यौन हिंसा की गई और फिर जान से मार डाला गया. इन सबके बीच कपड़ों पर तो किसी का ध्यान नहीं गया.
तस्वीर: DW/K. Keppner
कानून का डर नहीं
संयुक्त राष्ट्र ने 2013 में एशिया प्रशांत क्षेत्र में किए अपने सर्वे में पाया गया कि सर्वे में शामिल हर चार में एक पुरुष ने अपने जीवन में कम से कम एक बार किसी महिला का बलात्कार किया है. इनमें से 72 से लेकर 97 फीसदी मामलों में इन पुरुषों को किसी कानूनी कार्यवाई का सामना नहीं करना पड़ा था.
तस्वीर: DW/P.M. Tewari
मनोरंजन का साधन हैं यौन अपराध
उत्तर प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ इतने ज्यादा यौन अपराधों का कारण प्रदेश की पुलिस ने वहां मोबाइल फोनों के बढ़ते इस्तेमाल, पश्चिमी देशों के बुरे असर और छोटे कपड़ों को ठहराया. लोगों को सुरक्षा देने की अपनी जिम्मेदारी में पूरी तरह विफल पुलिस का कहना है कि मनोरंजन के बहुत कम साधन होने के कारण पुरुष यौन अपराधों को अंजाम देने लगते हैं.
तस्वीर: Indranil Mukherjee/AFP/Getty Images
महिलाओं से मिल रही है चुनौती
सड़कों, ऑफिसों या किसी सार्वजनिक स्थान पर कई बार महिलाओं के कपड़े नहीं बल्कि उनके चेहरे से झलकता आत्मविश्वास, स्वच्छंद रवैया और अब तक पुरुषों के कब्जे में रहे कई क्षेत्रों में उनकी पहुंच कई पुरुषों को बौखला रही है. सदियों से स्थापित पुरुषसत्तात्मक समाज के समर्थक ऐसी औरतों को सामाजिक संतुलन को बिगाड़ने का जिम्मेदार मानते हैं और यौन हिंसा कर उन्हें समाज में उनकी सही जगह दिखाने की कोशिश करते हैं.
तस्वीर: UNI
महिलाओं को ज्यादा बड़ा खतरा किससे
दुनिया के सबसे युवा देश में आज बलात्कार महिलाओं के खिलाफ चौथा सबसे बड़ा अपराध बन चुका है. नेशनल क्राइम ब्यूरो की 2013 रिपोर्ट बताती है कि साल दर साल दर्ज होने वाले इन करीब 98 फीसदी मामलों में बलात्कारी पीड़ित का जानने वाला था. ज्यादातर मामले जो प्रकाश में आते हैं वे सार्वजनिक जगहों पर अनजान लोगों द्वारा किए गए होते हैं जिस कारण इस सच्चाई पर ध्यान नहीं जाता.
तस्वीर: picture-alliance/AP
एक कदम आगे, दो कदम पीछे
एक ओर पहले के मुकाबले ज्यादा लड़कियां पढ़लिख रही हैं और कार्यक्षेत्र में पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही हैं. दूसरी ओर इस कारण वे शादी और बच्चे देर से पैदा कर रही हैं. भारत में शादी के पहले शारीरिक संबंध बनाने के मामले समाज के लिए असहनीय और खतरा बताए जाते हैं. इस कारण बहुत से युवा पुरुष को अपनी यौन इच्छा पूरी करने का कोई स्वस्थ तरीका नहीं मिलता और कई बार यही यौन हिंसा का कारण बनता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
हिंसा का चक्र गर्भ से ही शुरु
भारत में अजन्मे बच्चे की लिंग जांच कर मादा भ्रूण को गर्भ में ही मार देने की घटनाएं आम हैं. जो लड़कियां जन्म ले पाती हैं वे संख्या में इतनी कम हैं कि समाज का संतुलन बिगड़ गया है. स्त्री-पुरुष अनुपात के मामले में भारत 1970 से भी नीचे आ गया है. इसके अलावा बाल विवाह, कम उम्र में मां बनना, प्रसव से जुड़ी मौतें और घरेलू हिंसा के लिए भी क्या छोटे कपड़ों को ही जिम्मेदार मानेंगे.
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एक अनुमान के मुताबिक हर साल भारत में 1000 से भी अधिक एसिड अटैक के मामले सामने आते हैं. इन सभी मामलों में पुरूष दोषी होते हैं और महिलाएं पीड़ित.
साल 2012 में दिल्ली की एक मेडिकल छात्रा के साथ हुई गैंगरेप की घटना के बाद देश में महिलाओं की सुरक्षा के मुद्दे ने तूल पकड़ा था. लेकिन इस घटना के इतने सालों बाद भी समाज में महिलाओं की सुरक्षा को सुनिश्चित नहीं किया जा सका है.