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महिलाओं के लिए आइसलैंड बेहतरीन, भारत धरातल पर

२५ सितम्बर २०११

भारत में महिलाओं के साथ अच्छा बर्ताव नहीं किया जाता. 165 देशों में महिलाओं की स्थिति को लेकर न्यूजवीक पत्रिका ने एक सर्वे किया है. इसमें भारत को काफी नीचे, 141वें स्थान पर रखा गया है.

तस्वीर: AP

दिग्गज पत्रिका न्यूजवीक ने महिलाओं के लिए 'अच्छे और खराब स्थानों' को लेकर सर्वे किया. सर्वे में यह देखा गया कि किस देश में महिलाओं को कैसे अधिकार दिए गए हैं और वहां महिलाओं के जीवन का स्तर कैसा है. आइसलैंड को महिलाओं के लिए सबसे उपयुक्त देश बताया गया है. कनाडा, डेनमार्क और फिनलैंड उसके बाद आते हैं.

तस्वीर: Subhash Prrohit

धरातल में भारत

एशियाई देशों में फिलीपींस एक मात्र ऐसा देश है जो टॉप 20 में है. भारत को काफी नीचे रखा गया हैं. 165 देशों की सूची में भारत 141वें स्थान पर हैं. बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, म्यांमार, श्रीलंका और चीन जैसे देश महिला अधिकारों और उनकी देखभाल के मामले में भारत से बेहतर आंके गए हैं.

अमेरिका में यूनिवर्सल सोसाइटी ऑफ हिंदूइज्म के अध्यक्ष राजन जेद के मुताबिक भारत आर्थिक रूप से वैश्विक ताकत बनने की राह पर है लेकिन अधिकतर महिलाएं इस बदलाव से अछूती हैं. भारत में महिलाओं को अब भी बराबरी का हक नहीं मिल रहा है. उन्हें भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है. जेद कहते हैं, "हमें भारत में अपनी महिलाओं को सशक्त करने की जरूरत है. कानून के तहत उनके साथ बेहतर व्यवहार होना चाहिए. उन्हें स्वास्थ्य, शिक्षा और राजनीति में आने का मौका देना होगा. कामकाज के क्षेत्र में भी उन्हें ज्यादा मौके दिए जाने चाहिए."

तस्वीर: CC/BCClimateChampions

दुनिया भर में महिलाओं की स्थिति को लेकर हाल ही में संयुक्त राष्ट्र की भी एक रिपोर्ट आई. उस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में महिलाओं की स्थिति बेहतर नहीं है. भारत में अब भी 39 फीसदी महिलाएं और पुरुष पत्नी की पिटाई को सही ठहराते हैं. शारीरिक हिंसा का शिकार होने वाली महिलाओं में से सिर्फ 35 फीसदी ही पुलिस रिपोर्ट दर्ज कराती हैं. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक प्रसव के दौरान होने वाली मौतों को रोकने के लिए भारत कदम उठा रहा है लेकिन वह वादों से काफी पीछे है.

समस्या का एक नमूना

भारत में आम लोग स्वास्थ्य सेवाओं के लिए सरकारी अस्पतालों पर निर्भर रहते हैं. गांवों और छोटे शहरों में प्रसव के दौरान महिलाएं सरकारी अस्पतालों पर निर्भर रहती हैं. लेकिन कई जगहों पर अस्पताल नाम की चीज ही नहीं है. ज्यादातर सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों, कमरों और अत्याधुनिक मशीनों की कमी है. ऑपरेशन थिएटर में पुराने पंखे दिखाई पड़ना आम बात है. ऑक्सीजन के जंग लगे सिलेंडर, जंग खाई हुई मशीनें हर किसी की निगाह में आ ही जाती हैं. कुछ गैर सरकारी संगठन कहते हैं कि सरकार सरकारी अस्पतालों के प्रति गंभीर नहीं है.

तस्वीर: CC/Barefoot Photographers of Tilonia

सरकारी अस्पतालों में मैनेजमेंट नाम की कोई चीज नहीं है. डॉक्टरों को इलाज भी करना है और अस्पताल का ध्यान भी रखना है. मशीन खराब होने जाने पर उन्हें अर्जी लिखनी है, अर्जी जिला प्रशासन को जाएगी, फिर वहां से आगे जाएगी. यह एक अंतहीन सी प्रक्रिया है. किसी को पता नहीं कि नए उपकरण कब आएंगे. वहीं निजी अस्पतालों में डॉक्टर सिर्फ इलाज करते हैं, बाकी काम मैनेजमेंट संभालता है. अस्पताल की सफाई, मशीनों की देखभाल और काम काज को व्यवस्थित करने का काम प्रबंधन करता है. यह कोई जादुई नुस्खा नहीं है जो सिर्फ निजी अस्पतालों पर ही लागू होता है. कहीं न कहीं यह बात सच है कि भारत में सरकारी अस्पतालों की संख्या बढ़ाने और उन्हें बेहतर बनाने से ज्यादा ध्यान निजी अस्पताल की फौज खड़ी करने में लगाया गया है.

रिपोर्ट: एजेंसियां/ओ सिंह

संपादन: वी कुमार

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