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महिलाओं के लिए आर्थिक, राजनैतिक अधिकार कम

३ नवम्बर २०११

वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम के अनुसार पिछले छह सालों में दुनिया के लगभग सभी देशों में महिलाओं को बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य के अधिकार मिले हैं. लेकिन आर्थिक और राजनैतिक अधिकारों में वे अभी भी पुरुषों से बहुत पीछे हैं.

तस्वीर: picture alliance/landov

वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम की नई रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के 85 प्रतिशत देशों में महिलाओं की स्थिति में सुधार आया है. महिलाओं को अब पहले की तुलना में बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मिल रही हैं और शिक्षा का हक भी. लेकिन अभी भी राजनीति में उनका योगदान बहुत कम है और उनकी आर्थिक स्थिति में भी कोई खास सुधार नहीं आया है. 'ग्लोबल जेंडर गैप' नाम की इस रिपोर्ट में 135 देशों में महिलाओं और पुरुषों के भेदभाव पर चर्चा की गई है. इस रिपोर्ट को बनाने के लिए अंतरराष्ट्रीय श्रम संघ, संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम और विश्व स्वास्थ्य संगठन से आंकड़े इकट्ठा किए गए हैं.

स्कूल जाना ही सब कुछ नहीं

रिपोर्ट के अनुसार स्वास्थ्य सेवाओं में काफी तरक्की देखी गई है. स्वास्थ्य के लिहाज से महिलाओं और पुरुषों में अंतर 96 प्रतिशत खत्म हो गया है. वहीं शिक्षा के क्षेत्र में अंतर 93 प्रतिशत खत्म हुआ है. लेकिन आर्थिक योगदान में केवल 59 फीसदी का ही अंतर खत्म हो पाया है. वहीं राजनैतिक अधिकारों के लिहाज से नतीजे बेहद निराशाजनक हैं. इसमें केवल 18 प्रतिशत का अंतर खत्म हो पाया है.

तस्वीर: UNI

न्यूयॉर्क स्थित गैर सरकारी संगठन 'इक्वेलिटी नाऊ' की अध्यक्ष यासमीन हसन का इस बारे में कहना है, "हालांकि यह बहुत खुशी की बात है कि शिक्षा और स्वास्थ्य के लिहाज से महिलाओं और पुरुषों में भेद खत्म हो रहा है, लेकिन राजनैतिक और आर्थिक साझेदारी में ऐसा नहीं हो पा रहा है. और यह बात समझनी जरूरी है कि केवल शिक्षा प्रदान करने से महिलाओं और पुरुषों के बीच फर्क को पूरी तरह खत्म नहीं किया जा सकता."

वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम ने पहली रिपोर्ट 2006 में प्रस्तुत की थी. इस बार की रिपोर्ट में पिछले छह साल के आंकड़ों की तुलना की गई है. साथ ही अलग अलग देशों में महिला सशक्तिकरण को ले कर जो कार्यक्रम चल रहे हैं, उनका भी इसमें उल्लेख है. रिपोर्ट के लेखकों में से एक हाउजमन ने कहा कि दुनिया ने काफी तरक्की कर ली है, लेकिन अभी भी बहुत लंबा रास्ता तय करना बाकी है, "लातिन अमेरिका में पुरुषों की तुलना में अधिक महिलाएं स्कूल जाती हैं, लेकिन शादी और बच्चों की देख भाल के चक्कर में वे आर्थिक और राजनैतिक तौर पर अपना सहयोग देने से पीछे रह जाती हैं."

तस्वीर: DW

नजरअंदाज होता सामर्थ्य

रिपोर्ट के अनुसार फिनलैंड, आइसलैंड, नॉर्वे और स्वीडन में सभी क्षत्रों में महिलाओं और पुरुषों में अंतर 80 से 85 प्रतिशत खत्म हो गया है. सब से बुरे हालात यमन के हैं. यहां केवल 50 प्रतिशत तक ही फर्क कम हो पाया है. नाइजीरिया, माली, कमबोडिया और तंजानिया में पिछले छह सालों में महिलाओं और पुरुषों में भेद बढ़ा है. छह साल पहले माली 81वें स्थान पर था. अब वह 132वें स्थान पर पहुंच गया है. थाईलैंड ने इस साल देश की पहली महिला प्रधानमंत्री को चुना और बुरुंडी ऐसा अकेला देश है जहां महिला श्रमिकों की संख्या पुरुषों से ज्यादा है.

तस्वीर: AP

रिपोर्ट में अलग अलग देशों में महिला सशक्तिकरण के लिए जरूरी कदमों का भी जिक्र किया गया है. वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम के अध्यक्ष क्लाउस श्वाब ने महिलाओं की स्थिति पर निराशा जताते हुए कहा, "जिस दुनिया में 20 प्रतिशत से भी कम महिलाएं राजनीति का हिस्सा हैं, वह दुनिया बहुत बड़े अवसर गंवा रही है और ढेर सारे सामर्थ्य को नजरअंदाज कर रही है."

'इक्वॉलिटी नाओ' की यासमीन हसन का कहना है कि इस रिपोर्ट में उन पारंपरिक बातों का जिक्र नहीं किया गया है जिनके चलते महिलाएं आगे नहीं बढ़ पाती हैं. इसीलिए भले ही उन्हें बेहतर शिक्षा मिले और अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं भी, लेकिन नौकरियां करने या राजनीति में उतरने के लिए उन्हें कोई प्रोत्साहन नहीं मिलता. भारत के लिए भी यह बात सच ही लगती है.

रिपोर्ट: आईपीएस/ ईशा भाटिया

संपादन: आभा एम

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