1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
समाज

महिलाओं को शोषण से बचाने की नेपाल सरकार की पहल

लेखनाथ पांडे
५ मार्च २०२१

नेपाल की सरकार विदेशों में काम करने जाने वाली महिलाओं को शोषण और यौन शोषण से बचाने के लिए नया कानून लागू करने वाली है. हालांकि, महिला अधिकार कार्यकर्ता इसे लोगों को ‘गुमराह’ करने वाला बता रहे हैं.

Nepal Bhaktapur | Arbeitsmigrantinnen warten auf Rückfahrt in Heimatdorf
तस्वीर: Prabin Ranabat/Zuma/imago images

नेपाल की सरकार 40 साल से कम उम्र की महिलाओं के विदेश जाने को लेकर एक नया नियम लागू करने वाली है. इस नियम के तहत विदेश जाने वाली इन महिलाओं को अपने परिवार और स्थानीय वार्ड कार्यालय से सहमति लेनी होगी. अधिकारियों ने इस नियम का बचाव किया है. उनका कहना है कि कमजोर नेपाली महिलाओं को मानव तस्करी का शिकार होने से बचाने के लिए इस कानून की जरूरत है.

नेपाल के आव्रजन विभाग (डीओआई) के महानिदेशक, रमेश कुमार केसी ने डॉयचे वेले को बताया कि मानव तस्कर विदेशों में आकर्षक नौकरियों का वादा कर युवा, अशिक्षित, और गरीब तबके की महिलाओं को अपना शिकार बना रहे हैं. इन महिलाओं का यौन शोषण किया जाता है. साथ ही, कई अन्य तरीके से भी शोषण किया जाता है. इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए नए नियम का प्रस्ताव रखा गया है.

कुमार कहते हैं, "विदेश यात्रा के लिए 40 से कम उम्र की सभी महिलाओं को ऐसे दस्तावेजों की जरूरत नहीं होगी. यह नियम सिर्फ उन ‘कमजोर' महिलाओं पर लागू होगा जो पहली बार विदेश जा रही हैं. खासकर, अकेली और ‘खतरनाक' अफ्रीकी और खाड़ी देशों में, जहां नेपाली महिलाओं को काम करने का परमिट नहीं मिलता है.”

सोशल मीडिया से लेकर सड़क पर विरोध

हालांकि, महिला अधिकारों के लिए काम करने वाले एक्टिविस्टों ने इस प्रस्ताव की तीखी आलोचना की है. आलोचकों ने सोशल मीडिया से लेकर सड़कों पर अपने गुस्से का इजहार किया. इस प्रस्ताव को असंवैधानिक करार देते हुए कहा कि यह महिलाओं की आवाजाही की स्वतंत्रता और जीवन जीने के अधिकार का हनन करने की कोशिश है. नए नियम की घोषणा के बाद काठमांडू के प्रसिद्ध माइतीघर मंडला में सैकड़ों युवा लड़कियों और महिलाओं ने विरोध प्रदर्शन किया. उन्होंने माइग्रेशन प्रस्ताव के साथ-साथ देश भर में लिंग आधारित हिंसा और भेदभाव के अन्य तरीकों के खिलाफ प्रदर्शन किया.

महिला अधिकार कार्यकर्ता दुर्गा कार्की कहती हैं कि यह कदम दिखाता है कि नेपाल की नौकरशाही में "पितृसत्तात्मक मानसिकता की जड़ें कितनी गहरी हैं." उन्होंने डॉयचे वेले से कहा, "सरकार ने नेपाल की महिलाओं के साथ होने वाले शोषण और यौन शोषण का जवाब उनकी यात्रा पर रोक लगाकर और उनकी कमाई के अधिकार को सीमित करके दिया है. यह गुमराह करने वाला कानून है. हम 21वीं सदी में ऐसी भेदभावपूर्ण नीति की कल्पना नहीं कर सकते."

दुविधा में सरकार

हालांकि, डीओआई के महानिदेशक कुमार ने कहा कि माइग्रेशन नीति को लेकर सरकार दुविधा में है. वे कहते हैं, "अगर हम माइग्रेशन की प्रक्रियाओं को सख्त बनाने की कोशिश करते हैं, तो हमारी आलोचना की जाती है कि हम स्वतंत्रता और यात्रा के अधिकारों पर प्रतिबंध लगा रहे हैं. दूसरी ओर, अगर हम उदार रवैया अपनाते हैं तो हमें तस्करों की मदद करने के लिए दोषी ठहराया जाएगा."

महिला पत्रकार और अधिकार कार्यकर्ता सोना खटिक ने मानव तस्करी से निपटने के लिए प्रस्तावित कानून की सफलता पर संदेह जताया है. वे कहती हैं, "अगर मानव तस्कर युवा लड़कियों और महिलाओं को शिकार बना रहे हैं, तो सरकार को इनका नेटवर्क खत्म करने के लिए कानून लाना चाहिए. अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई करने में सरकार की विफलता की वजह से सिर्फ गरीब महिलाओं का उत्पीड़न और शोषण नहीं होना चाहिए."

खटिक कहती हैं, "महिलाओं के यात्रा करने और उनकी कमाई पर रोक लगाने के बजाए, अधिकारियों को इस समस्या से निपटने के लिए कोई और रास्ता तलाशना चाहिए. वे रोजगार देने के लिए भर्ती करने वाली एजेंसियों के लिए बेहतर नियम बना सकते हैं और गंतव्य देशों की सरकारों के साथ महिलाओं के अनुकूल श्रम समझौते कर सकते हैं. साथ ही, शोषण और दुर्व्यवहार की सूचना मिलने पर सुरक्षा उपलब्ध करा सकते हैं और तुरंत कार्रवाई कर सकते हैं." खटिक ने यह भी पूछा कि सरकार ने महिलाओं की तरह ही पुरुषों को विदेश जाने के लिए अपने परिवारों और स्थानीय एजेंसियों से मंजूरी लेने के नियम का प्रस्ताव क्यों नहीं रखा.

यौन शोषण का शिकार हो रहीं नेपाली महिलाएं

हाल के वर्षों में, विदेशों में नेपाली महिलाओं के साथ शोषण और यौन शोषण के कई मामले सामने आए. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का अनुमान है कि 2018 में 15,000 महिलाओं और 5,000 लड़कियों सहित लगभग 35,000 लोगों की तस्करी की गई थी. संयुक्त राष्ट्र के ड्रग और अपराध कार्यालय ने जानकारी दी कि यह तस्करी ज्यादातर यौन शोषण, बंधुआ मजदूरी और यहां तक कि अंग निकालने के लिए की जाती है. अप्रैल 2017 से, नेपाल ने घरेलू सहायक के तौर पर काम करने के लिए कुछ मध्य पूर्वी देशों में महिलाओं के जाने पर प्रतिबंध लगा दिया है.

यह रोक तब लगाई गई, जब कतर, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और कुवैत में नेपाली महिलाओं के साथ बड़े पैमाने पर शोषण की खबरें सामने आई. नेपाल और इन देशों के बीच विभिन्न श्रम समझौतों का हवाला देते हुए इस प्रतिबंध को हटाने की मांग बढ़ रही है. नेपाल की अर्थव्यवस्था प्रवासी श्रमिकों के भेजे गए पैसे पर बहुत अधिक निर्भर करती है. वित्तीय वर्ष 2018-19 में, नेपाल को कुल 8.79 अरब डॉलर विदेशों से आए. यह रकम देश की कुल आय का एक चौथाई से अधिक है.

विदेश में महिलाओं के माइग्रेशन पर रोक लगाने वाली सरकार का कहना है कि वर्तमान में नेपाल के ज्यादातर प्रवासी श्रमिक पुरुष हैं. नेपाल लेबर माइग्रेशन रिपोर्ट 2020 के अनुसार, देश में 35 लाख से अधिक लोगों को विदेश में काम करने के लिए श्रम परमिट जारी किए. उनमें से केवल 5% महिला श्रमिकों के लिए थे. युवा महिला श्रमिकों को प्रभावित करने वाले नए प्रस्ताव को मंजूरी के लिए गृह मंत्रालय को भेजा गया है. संभावना जताई जा रही है कि आने वाले महीनों में यह कानून लागू हो जाएगा. डीओआई के अधिकारी कुमार ने कहा कि मंत्रालय विभिन्न समूहों की चिंताओं को देखते हुए प्रस्ताव की समीक्षा कर सकता है.

__________________________

हमसे जुड़ें: Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें
डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें