कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने एक लंबे अरसे बाद राजनीति की शतरंज की बिसात पर चाल चली है. अभी यह कहना मुश्किल है कि बाजी किसके हाथ रहेगी लेकिन यह निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि खेल बहुत दिलचस्प रहेगा.
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कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिख कर अनुरोध किया है कि लोकसभा में अपने बहुमत का लाभ उठाते हुए उनकी सरकार को लोकसभा में महिला आरक्षण विधेयक लाकर उसे पारित कराना चाहिए. उन्होंने लिखा है कि कांग्रेस हमेशा इस विधेयक के समर्थन में रही है और इस बार भी इसे पारित करने में वह भरपूर सहयोग करेगी. सोनिया गांधी यह याद दिलाना भी नहीं भूलीं कि पंचायतों और नगरपालिका आदि स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए कोटा निर्धारित करने का प्रस्ताव उनके पति और कांग्रेस अध्यक्ष राजीव गांधी ने 1989 में रखा था, लेकिन तब विपक्ष के विरोध के कारण ये विधेयक पारित नहीं हो पाये थे. बाद में 1993 में संसद के दोनों सदनों ने इन्हें पारित किया.
कांग्रेस के महिला संगठन की अध्यक्ष सुष्मिता देव ने भी यह घोषणा की है कि पिछली 21 मई से, जो राजीव गांधी का जन्मदिन भी है, कांग्रेस ने देश भर में महिला आरक्षण विधेयक के पक्ष में हस्ताक्षर अभियान चलाया था. अब पार्टी की महिला नेताओं ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से भेंट के लिए समय मांगा है ताकि "लाखों” हस्ताक्षर सौंपे जा सकें.
सोनिया गांधी के पत्र का तत्काल असर हुआ और वित्त मंत्री अरुण जेटली ने गुलाम नबी आजाद, अहमद पटेल और मोतीलाल वोरा जैसे वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं से मिलकर इस विषय पर चर्चा की. अब भारतीय जनता पार्टी के भीतर इस मुद्दे पर विचार-विमर्श हो रहा है, जिसके केंद्र में इस विधेयक के पारित होने का आगामी चुनावों पर पड़ सकने वाला असर है.
मिलिए फेमिनिस्ट पुरुषों से
महिलाएं अब भी कई समाजिक और राजनीतिक दायरों में समान प्रतिनिधित्व नहीं पा सकी हैं. लैंगिक बराबरी के लंबे संघर्ष के दौरान दुनिया भर के कई प्रतिष्ठित और प्रभावशाली पुरुष भी महिलाओं के साथ आये. मिलिए इन फेमिनिस्ट पुरुषों से.
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जस्टिन ट्रूडो, कनाडा
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने नवंबर 2015 में पद संभालने के साथ ही कुछ ठोस संदेश भी दे दिए. जिनमें से एक था लैंगिक बराबरी का संदेश. अपने मंत्रिपरिषद में उन्होंने महिलाओं और पुरुषों को बराबर बराबर संख्या में रखा.
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दलाई लामा, तिब्बत
तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने कभी कहा था, “मैं खुद को एक फेमिनिस्ट कहूंगा. क्या ये उन लोगों को नहीं कहा जाता जो महिलाओं के अधिकार के लिए लड़ते हैं?” नोबेल शांति पुरस्कार विजेता दलाई लामा चीन पर तिब्बत में धार्मिक दमन और तिब्बती संस्कृति को नष्ट करने के आरोप लगाते हैं.
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फ्रांसोआ ओलांद, फ्रांस
जब बात अपनी कैबिनेट में महिला और पुरुष नेताओं में बराबरी की हो, तो फ्रांस के राष्ट्रपति ओलांद का नाम भी आएगा. ऐसे ही कदम उठा कर चिली में राष्ट्रपति मिशेल बाखेलेट ने भी दुनिया के सामने मिसाल कायम की थी.
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मातेयो रेन्सी, इटली
फरवरी 2014 से दिसंबर 2016 तक इटली के प्रधानमंत्री रहे रेन्सी देश के इतिहास के सबसे युवा प्रधानमंत्री बने. वे लैंगिक समानता को राजनीतिक एजेंडे में तो जरूर लाये लेकिन सांसदों को उनसे और ज्यादा उम्मीदें थीं. फिर भी उनके कार्यकाल में संसद में 30 फीसदी महिला सांसद थीं, जो कि एक रिकॉर्ड था.
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खोसे लुई रोड्रिगेज जापाटेरो, स्पेन
2008 में जापाटेरो ने दूसरी बार प्रधानमंत्री चुने जाने पर अपने लिए एक महिला-बहुल कैबिनेट चुनी. लैंगिक समता के मुद्दे पर हमेशा से मुखर रहे जापाटेरो 2004 में ही कह चुके हैं, "मैं केवल एंटी-माचोवादी ही नहीं हूं, मैं एक फेमिनिस्ट हूं."
अभिनय की दुनिया के एक लेजेंड बन चुके अमिताभ बच्चन ने कई सामाजिक मुद्दों पर अपने विचार रखे हैं. लेकिन लैंगिक समानता का मुद्दा उनके दिल के करीब माना जाता है. वे यूएन के बालिका विकास कार्यक्रम में दूत भी हैं और अपने सोशल मीडिया संदेशों में फेमिनिज्म का समर्थन करते दिखते हैं.
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फरहान अख्तर और राहुल बोस
क्या आप जानते हैं कि लोकप्रिय कैंपेन मर्द (MARD- Men Against Rape and Discrimination) बॉलीवुड अभिनेता, निर्देशक और लेखक फरहान अख्तर ने ही शुरू किया था. वह कहते हैं, “लैंगिक हिंसा और भेदभाव कोई महिलाओं का मुद्दा नहीं बल्कि पुरुषों का भी है. राहुल बोस भी एक फेमिनिस्ट अभिनेता हैं.
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हरीश अय्यर, मानवाधिकार कार्यकर्ता
सामाजिक कार्यकर्ता अय्यर ने कई बार सार्वजनिक मंचों पर फेमिनिज्म के समर्थन में अपनी आवाज बुलंद की है. खुद एक समलैंगिक मानवाधिकार कार्यकर्ता हरीश, समलैंगिकों के अधिकारों के लिए आवाज उठाते रहे हैं.
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की निजी लोकप्रियता भले ही अभी तक बरकरार हो, उनकी सरकार की लोकप्रियता में खासी कमी आयी है. इसका कारण नोटबंदी और जीएसटी का देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ा बुरा असर माना जा रहा है. रोजगार के नये अवसर पैदा होने के बजाय लोगों के पास जो रोजगार था, वह भी छिन रहा है. अखबारों में खबर छपी है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक अंदरूनी सर्वेक्षण के मुताबिक भाजपा आगामी चुनावों में हार का सामना कर सकती है. ऐसे में यदि भाजपा महिला आरक्षण विधेयक संसद में पेश करके उसे पारित करा लेती है, तो उसे देश की महिलाओं का समर्थन हासिल करने में सफलता मिल सकती है और उसकी चुनावी नैया पार लग सकती है. कांग्रेस ने यह विधेयक 9 मार्च 2010 को राज्यसभा में पारित करा लिया था लेकिन लोकसभा में यह पेश भी नहीं हो सका.
इस मुद्दे पर पहल करके सोनिया गांधी ने देश की महिलाओं को जता दिया है कि उनके अधिकारों के प्रति अन्य दलों के मुक़ाबले कांग्रेस और स्वयं वह खुद कहीं अधिक गंभीर हैं. इसी के साथ उन्होंने यह भी जता दिया है कि पिछले साढ़े तीन साल में भाजपा को महिलाओं की सुध नहीं आयी. उधर उनकी अपनी पार्टी का सहयोगी राष्ट्रीय जनता दल भी विधेयक के पक्ष में नहीं है. न ही अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी तथा अनेक अन्य क्षेत्रीय दल ही इसके पक्ष में हैं. दरअसल इस विधेयक में सभी विधानसभाओं और लोकसभा में एक-तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित करने का प्रावधान है. अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित सीटों का एक-तिहाई इन समुदायों की महिलाओं के लिए आरक्षित कर दिया जाएगा. इस पर सबसे अधिक आपत्ति अन्य पिछड़े वर्गों के शरद यादव और मुलायम सिंह यादव जैसे नेताओं को है जिन्हें लगता है कि आरक्षण का लाभ ऊंची जातियों की पढ़ी-लिखी महिलाओं को मिलेगा और उनकी अपनी जातियों की महिलाएं उससे वंचित रह जाएंगी. विधेयक के खिलाफ एक तर्क यह भी है कि पार्टियां टिकट बांटते समय एक-तिहाई सीटों पर महिला उम्मीदवारों को क्यों नहीं खड़ा करतीं? अगर वे ऐसा करने लगें, तो फिर आरक्षण की जरूरत ही न रहे.
भाजपा को इस मुद्दे पर फैसला लेने में कुछ समय तो लगेगा ही. यदि उसने वाकई सोनिया गांधी की चुनौती स्वीकार कर ली और महिला आरक्षण विधेयक पारित कराने का सेहरा उसके सिर पर बंध भी गया, तब भी महंगाई और सरकार की आर्थिक नीतियों से बेहाल महिलाओं का समर्थन मिलने की कोई गारंटी नहीं है. लेकिन यदि उसे यह समर्थन मिल गया, तो सोनिया गांधी के लिए इस खेल में मात से बचना मुश्किल हो जाएगा.
भारत में महिलाओं के कानूनी अधिकार
भारत में महिलाओं के लिए ऐसे कई कानून हैं जो उन्हें सामाजिक सुरक्षा और सम्मान से जीने के लिए सुविधा देते हैं. देखें ऐसे कुछ महत्वपूर्ण कानूनी अधिकार...
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पिता की संपत्ति का अधिकार
भारत का कानून किसी महिला को अपने पिता की पुश्तैनी संपति में पूरा अधिकार देता है. अगर पिता ने खुद जमा की संपति की कोई वसीयत नहीं की है, तब उनकी मृत्यु के बाद संपत्ति में लड़की को भी उसके भाईयों और मां जितना ही हिस्सा मिलेगा. यहां तक कि शादी के बाद भी यह अधिकार बरकरार रहेगा.
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पति की संपत्ति से जुड़े हक
शादी के बाद पति की संपत्ति में तो महिला का मालिकाना हक नहीं होता लेकिन वैवाहिक विवादों की स्थिति में पति की हैसियत के हिसाब से महिला को गुजारा भत्ता मिलना चाहिए. पति की मौत के बाद या तो उसकी वसीयत के मुताबिक या फिर वसीयत ना होने की स्थिति में भी पत्नी को संपत्ति में हिस्सा मिलता है. शर्त यह है कि पति केवल अपनी खुद की अर्जित की हुई संपत्ति की ही वसीयत कर सकता है, पुश्तैनी जायदाद की नहीं.
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पति-पत्नी में ना बने तो
अगर पति-पत्नी साथ ना रहना चाहें तो पत्नी सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अपने और बच्चों के लिए गुजारा भत्ता मांग सकती है. घरेलू हिंसा कानून के तहत भी गुजारा भत्ता की मांग की जा सकती है. अगर नौबत तलाक तक पहुंच जाए तब हिंदू मैरिज ऐक्ट की धारा 24 के तहत मुआवजा राशि तय होती है, जो कि पति के वेतन और उसकी अर्जित संपत्ति के आधार पर तय की जाती है.
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अपनी संपत्ति से जुड़े निर्णय
कोई भी महिला अपने हिस्से में आई पैतृक संपत्ति और खुद अर्जित की गई संपत्ति का जो चाहे कर सकती है. अगर महिला उसे बेचना चाहे या उसे किसी और के नाम करना चाहे तो इसमें कोई और दखल नहीं दे सकता. महिला चाहे तो उस संपत्ति से अपने बच्चो को बेदखल भी कर सकती है.
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घरेलू हिंसा से सुरक्षा
महिलाओं को अपने पिता या फिर पति के घर सुरक्षित रखने के लिए घरेलू हिंसा कानून है. आम तौर पर केवल पति के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले इस कानून के दायरे में महिला का कोई भी घरेलू संबंधी आ सकता है. घरेलू हिंसा का मतलब है महिला के साथ किसी भी तरह की हिंसा या प्रताड़ना.
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क्या है घरेलू हिंसा
केवल मारपीट ही नहीं फिर मानसिक या आर्थिक प्रताड़ना भी घरेलू हिंसा के बराबर है. ताने मारना, गाली-गलौज करना या फिर किसी और तरह से महिला को भावनात्मक ठेस पहुंचाना अपराध है. किसी महिला को घर से निकाला जाना, उसका वेतन छीन लेना या फिर नौकरी से संबंधित दस्तावेज अपने कब्जे में ले लेना भी प्रताड़ना है, जिसके खिलाफ घरेलू हिंसा का मामला बनता है. लिव इन संबंधों में भी यह लागू होता है.
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पुलिस से जुड़े अधिकार
एक महिला की तलाशी केवल महिला पुलिसकर्मी ही ले सकती है. महिला को सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले पुलिस हिरासत में नहीं ले सकती. बिना वारंट के गिरफ्तार की जा रही महिला को तुरंत गिरफ्तारी का कारण बताना जरूरी होता है और उसे जमानत संबंधी उसके अधिकारों के बारे में भी जानकारी दी जानी चाहिए. साथ ही गिरफ्तार महिला के निकट संबंधी को तुरंत सूचित करना पुलिस की ही जिम्मेदारी है.
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मुफ्त कानूनी मदद लेने का हक
अगर कोई महिला किसी केस में आरोपी है तो महिलाओं के लिए कानूनी मदद निःशुल्क है. वह अदालत से सरकारी खर्चे पर वकील करने का अनुरोध कर सकती है. यह केवल गरीब ही नहीं बल्कि किसी भी आर्थिक स्थिति की महिला के लिए है. पुलिस महिला की गिरफ्तारी के बाद कानूनी सहायता समिति से संपर्क करती है, जो कि महिला को मुफ्त कानूनी सलाह देने की व्यवस्था करती है.