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महिला आरक्षण से अफगानिस्तान में बदलाव

७ जनवरी २०११

तालिबान के शासन में अफगानिस्तान की औरतों को न तो पढ़ने की इजाजत थी न काम करने की. 2005 में संसद की एक चौथाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित कर दी गईं. अब हाल के चुनावों में जीत कर आईं महिलाएं देश की तस्वीर बदल रही हैं.

तस्वीर: AP

अफगानिस्तान की संसद में 68 सीटें महिलाओं को दी गईं थी. चुनाव हुआ तो 69 महिलाएं जीत कर आईं यानी कोटे से एक ज्यादा. वारदाक प्रांत से दूसरी बार चुनाव जीत कर आईं सिद्दिक्वा मोबारेज मानती हैं कि इस बार के चुनाव महिलाओं की जीत हैं. मोबारेज ने कहा, "अगर कोई महिला परिवार की मुखिया हो सकती है तो वो देश की कमान भी संभाल सकती है, अगर आप चुनाव के नतीजे देखें तो आसानी से जान जाएंगे कि कई महिलाएं दोबारा चुन कर आई हैं. इससे पता चलता है कि महिलाएं राजनीति में काम कर सकती हैं और लोगों को उन पर भरोसा है. हम लोग सक्षम हैं और बदलाव देखना चाहते हैं."

चुनाव के दौर में बदलाव ही महिलाओं का सबसे बड़ा नारा था. इस बार के चुनाव में चार सौ महिलाएं मैदान में उतरीं और ये संख्या पांच साल पहले हुए चुनाव की तुलना में 70 फीसदी ज्यादा है. युवा महिलाओं के हक के लिए काम करने वाली फौजिया कोफी अफगानी राजनीतिज्ञों के बीच सुधारवादी नेता के रूप में मशहूर हैं. वो महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव और यौन उत्पीड़न को खत्म करने में सक्रिय हैं. उनका सपना है, "मैं ऐसे समाज में रहना चाहती हूं जहां कोई पहले या दूसरे दर्जे का नागरिक नहीं है. मैं बराबरी चाहती हूं और लिंग, जाति और भाषा के आधार पर बने हर तरह के भेदभाव को खत्म करना चाहती हूं."

तस्वीर: AP

हाल ही में एक हेनरीश बोइल फाउंडेशन ने राजनीति में महिलाओं पर एक रिसर्च किया. इस रिसर्च में अफगानिस्तान के विशेषज्ञ एंड्रीया फ्लेशेनबर्ग ने 91 महिला सांसदों से बात की. वो मानती हैं की बराबरी हासिल करने की ये जंग इतनी आसान नहीं है, "कुछ महिलाओं से कहा गया कि उनकी काबिलियत चुनाव में जीते पद पर बैठने की नहीं है. हालांकि इसके साथ ही वो ऐसे क्षेत्र में काम कर रही हैं जहां नियमों में लगातार बदलाव हो रहे हैं, यहां पारदर्शिता बहुत कम है और संरक्षणवाद बहुत ज्यादा. निश्चित रूप से ऐसे हालात में अपने हक के लिए खड़ा होना एक बेहद मुश्किल काम है."

इस बात से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता कि कुछ महिलाएं राजनीति में काम कर रही हैं. ज्यादातर महिलाएं पारंपरिक समाज की खड़ी की गई बाधाओं को पार नहीं कर पा रही हैं. कट्टरपंथी अफगानी अब भी यही मानते हैं कि राजनीति में महिलाओं की कोई जगह नहीं. फौजिया कोफी बताती हैं कि कई महिला सांसदों ने शिकायत की कि उनके पुरुष सहयोगी उनकी बातों पर ध्यान नहीं देते. कई महिलाओं को तो खासतौर पर परेशान किया जाता है, "हमें संसद में बोलने के लिए ज्यादा वक्त नहीं मिलता, लोग हमारी इज्जत खराब करने की कोशिश करते हैं और कई महिलाओं को तो धमकियां भी दी जाती हैं."

कई बार धमकी ही काफी नहीं होती. खुद फौजिया पर भी हमला हो चुका है जिनमें वो बाल बाल बचीं. तालिबान ने उनकी कार में बम लगा दिया था. बड़ी बात ये है कि सब कुछ होने के बावजूद अफगानिस्तान की राजनीति में अब इतनी महिलाएं हैं जितनी पहले कभी नहीं रहीं. महिलाओं को मिला आरक्षण उनकी इस मौजूदगी को बनाए रखेगा.

रिपोर्ट: यूलिया हान, होमएरिया हाइडारी/प्रिया एसेलबॉर्न

संपादन: ओ सिंह

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