महिला कारोबारी ने बनाए फैशनबेल हिजाब
२७ जून २०१९Modest fashion
हिजाब और हेडस्कार्फ की कहानी हजारों साल पुरानी है. इसे पहनना है या नहीं, इसके पीछे धार्मिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक और व्यक्तिगत कारण हो सकते हैं.
हिजाब और स्कार्फ का इतिहास
हिजाब और हेडस्कार्फ की कहानी हजारों साल पुरानी है. इसे पहनना है या नहीं, इसके पीछे धार्मिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक और व्यक्तिगत कारण हो सकते हैं. ऑस्ट्रिया के एक म्यूजियम में हिजाब की कहानी से रूबरू हुआ जा सकता है.
हिजाब और स्कार्फ का इतिहास
पश्चिमी देशों में हेडस्कार्फ शब्द को कई बार सीधे इस्लाम से जोड़ दिया जाता है. हालांकि सिर को ढंकने के पीछे कारण धार्मिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक होता है. ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना के वेल्टम्यूजियम की प्रदर्शनी में हेडस्कार्फ और हिजाब के इतिहास पर रोशनी डाली जा रही है.
ईसाई धर्म में हेडस्कार्फ
ईसाई धर्म में पर्दा नम्रता और कौमार्य का प्रतीक रहा है. बाईं ओर 2008 की एक पेटिंग है, जिसमें ईसा मसीह की मां मरियम ने नीले रंग का स्कार्फ डाल रखा है. बाइबल में महिलाओं के प्रार्थना के समय सिर ढंकने की हिदायत दी गई है. हालांकि कई ईसाई महिलाएं हर वक्त सिर ढंके रहती हैं. दाईं ओर की तस्वीर एक ईसाई महिला की है. इसे तुर्की में 1886 में खींचा गया था.
महिलाओं और पुरुषों के लिए स्कार्फ
वेल्टम्यूजियम की प्रदर्शनी में दुनिया के अलग-अलग हिस्सों के हेडस्कार्फ को दिखाया गया है. यहां महिलाओं के साथ-साथ पुरुषों के स्कार्फ की भी प्रदर्शनी लगी है. बाईं ओर ट्यूनीशिया के दूल्हे का स्कार्फ है जो 20वीं सदी के मध्य का है. दाईं ओर वाले हेडस्कार्फ को गुआटेमाला के पुरुष पहना करते थे.
रेगिस्तान के लिए अलग स्कार्फ
यह तस्वीर वियना के फोटोग्राफर लु़डविग गुस्ताव अलोइस जोएरर ने खींची है. यह तुआरेग कबीले के एक पुरुष की तस्वीर है जिसने पारंपरिक तरीके से अपना चेहरा ढंका हुआ है. ऐसा माना जाता है कि इस स्कार्फ से बुरी आत्माएं दूर रहती हैं. किशोरावस्था से पुरुषत्व की ओर बढ़ते युवा के लिए इसे पहनना महत्वपूर्ण संस्कार है. इसके उलट, यहां की महिलाओं को अपना चेहरा नहीं ढंकना होता है.
खुद की पहचान
मुस्लिम महिलाओं द्वारा पहने जाने वाले स्कार्फ या हिजाब पर बहस होती रहती है. निलबर गुरेस ने अपने 6 मिनट के वीडियो में हेडस्कार्फ और हिजाब को खोलती हैं. वीडियो में इस बात पर जोर दिया गया है कि मुस्लिम महिलाएं भले ही हिजाब पहनें या न पहनें, वे अपने व्यक्तित्व का प्रतिनिधित्व करती हैं.
अमूर्त कला का नमूना
वियना की प्रदर्शनी में हिजाब और हेडस्कार्फ को निराकार तस्वीरों के जरिए भी दिखाया गया है. इस तस्वीर को ऑस्ट्रियाई फोटोग्राफर टीना लेश्नर ने खींचा है. इसमें महिला के सिर के पीछे वाले हिस्से को दिखाया गया है. मूर्तिकला की तस्वीरें लेने के लिए मशहूर लेश्नर महिलाओं की संस्कृति से जुड़ी तस्वीरें लेती हैं.
पैकिंग के सामानों से बनाया
पहली नजर में योंगमान की यह 'माइंड ओवर मैटर - जूली, पोट्रेट ऑफ अ लेडी' नामक फोटो को 15वीं सदी की मशहूर 'पोट्रेट ऑफ अ लेडी' समझा जा सकता है. करीब से देखने पर पता चलेगा कि इस महिला का स्कार्फ पैकिंग करने वाले सामानों से बना है. इसकी अंगूठी किसी कैन का कवर है. योंगमान ने रिसाइकल करने वाले समानों से इसे बनाया है.
रूढ़िवाद से मुक्ति की ओर
दूसरे विश्व युद्ध के पहले रूढ़िवादी ऑस्ट्रिया में किसी महिला का पारंपरिक पोशाक पहनना व्यावहारिक और देशप्रेम से भरपूर माना जाता था. 50 के दशक में हेडस्कार्फ लग्जरी आइटम में बदल गया. सिल्क और खूबसूरत प्रिंट वाला स्कार्फ महिलाओं की आजादी का प्रतीक बन गया. यही नहीं, 1964 की फैशन प्रतियोगिताओं में पहला स्थान आने पर हेडस्कार्फ दिया जाता था.
लेस और फ्लोरल डिजाइन वाला
ऑस्ट्रियाई डिजाइनर सुजाने बिसोविस्की को खूबसूरत पोशाकों के लिए जाना जाता है. उनके कलेक्शन में लेस और फ्लोरल कारीगरी दिखाई देती है जिसे आधुनिक वेयना की युवतियों के लिए डिजाइन किया जाता है. 2018 में उनका यह कलेक्शन खास वेल्टम्यूजियम के लिए बनाया गया.
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