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महिला कैदियों के बच्चों की परवरिश की मुश्किलें

१७ जून २०१०

जेल में महिला कैदी और उनके बच्चे. जर्मनी की बात करें तो आधे से ज़्यादा क़ैदी इन महिलाओं के बच्चे हैं. अगर इन बच्चों को उनकी माओं से अलग कर दूसरे परिवारों में भेजा जाता है तो ये दोनों के लिए बहुत मुश्किल जाता है.

तस्वीर: DW/ Sanel Kajan

जर्मनी में तीन साल तक महिलाएं अपने बच्चों को साथ रख सकती हैं. भारत की भी कई जेलों में ये संभव है. उदाहरण के लिए भारत की राजधानी दिल्ली के तिहाड़ जेल में. 27 साल की मार्टिना श्मिड अपना असली नाम नहीं बताना चाहतीं हैं. हत्या के प्रयास के आरोप में वह जर्मन शहर फ्रैंकफर्ट के एक जेल में कैद हैं. वे भाग्यशाली थीं. उनका छोटा बेटा दामियान उनके साथ है. जब मार्टिना को हिरासत में लिया गया तब वह गर्भवती थीं और उन्हें सजा सुनाई जाने के पहले दामियान का जन्म हुआ.

जेल में जीवनतस्वीर: AP

जेलों में छोटे बच्चों की देख भाल के लिए टीचर और नर्स हैं. वे उनको प्रशीक्षण देती हैं, उन के साथ खेलती हैं. साथ ही साथ उन्हें सलाखों के बाहर की दुनिया भी दिखाती हैं. मार्टीना श्मिड एक तरफ बहुत खुश हैं कि उनका बेटा उनके साथ जेल में हैं. लेकिन कभी वे बहुत अकेलापन भी महसूस करतीं हैं. "मेरे बेटे के साथ मैंने कोई खेल, कोई गतिविधि नहीं की. जब वह पहली बार तैरने गया तो मैं उसके साथ नहीं थी. वो पहली बार ज़ू भी किसी और व्यक्ति के साथ गया. जब मुझे पहली बार अपने कमरे से कुछ घंटों के लिए बाहर निकलने की अनुमति मिली तब मेरे बेटे ने सब कुछ मुझे दिखाया. उस वक्त मुझे बहुत अजीब लगा."

तस्वीर: dpa

जर्मनी में बहुत कम ऐसे जेल हैं जहां महिलाओं अपने बच्चों को साथ रख सकती हैं. आम तौर पर बच्चे सिर्फ तीन साल की उम्र तक अपनी मांओं के साथ जेल में रह सकते हैं. जर्मन कानून के मुताबिक अगर मां को कुछ घंटों के लिए जेल से बाहर जाने की अनुमति है, तो बच्चे 6 साल की उम्र यानी स्कूल जाने तक मां के साथ रह सकते हैं. अगर मां नशे का शिकार है या उसे उम्र कैद की सज़ा सुनाई गई हो तो बच्चे को दूसरे परिवार में भेजा जाता है. हर मामले में युवा कल्याण कार्यालय फैसला लेती है. करीब बीस साल से बेआट्रिक्स डाईनहार्ड जेल में छोटे बच्चों की देखभाल करती हैं. वे कहती हैं.

"सबसे बडी समस्या यह है कि जब बच्चे बड़े होते हैं तो वे अपने अनुभव मां के साथ नहीं बांट पाते. मांओं को हम भरोसा देने की कोशिश करते हैं कि हम उनके बच्चों को लेकर जा रहे हैं और उनके दिमाग में कोई बुरी बात नहीं घुसा रहे. कभी कभार हमे बच्चों को अस्पताल ले जाना पडता है और उनकी माएं साथ नहीं जा सकतीं. बच्चे फिर रोने लगते हैं और यह दोनों के लिए बहुत ही मुश्किल होता है, कि वह एक दूसरे को छोड़ें."

मिलकर गाना गाना, कसरत करना, पेंटिंग करना- फ्रैंकफर्ट के जेल में रह रहे बच्चों को हर तरह का सहयोग और प्रोत्साहन देने की कोशिश की जा रही है. सुबह उन्हें जेल की कोठरी से लेकर रंगीले दीवारों वाले और खिलौनों से भरे कमरों में ले जाया जाता है. फिर भी असामान्य हालात में फ्रैंकफर्ट जेल में छोटे बच्चों की देखभाल करने वाली बेआट्रिक्स डाईनहार्ड का कहना है कि सबसे ज़रूरी है माओं का साथ रहना. "जब बच्चे बड़े हो जाते हैं और उन्हें बहुत सी चीज़ें समझ में आने लगती हैं, तब मैं उन्हें जेल के अंदर रखना अच्छा नहीं मानती हूं. लेकिन छोटे बच्चों को किसी तरह का नुकसान नहीं होता है."

विशेषज्ञो के मुताबिक ऐसा संभव है कि बच्चों के कारण महिलाएं अपनी जिंदगी में बदलाव लाने की कोशिश करती हैं. मार्टिना श्मिड भी यही सोचती हैं और अपने बेटे के सवालों की के कारण अपनी गलतियों पर विचार कर रही हैं."मेरे बेटे ने कई बार मुझसे पूछा कि हम क्यों जेल में हैं. मैंने उसे प्यार से समझाने की कोशिश की. लेकिन फिर उसने मुझसे यह कहा कि तुम बुरी थी और इसलिए तुम्हें जेल भेजा गया, तो क्या.. मैने कुछ बुरा किया था, क्या. कैसे मैं उसको समझाऊ कि उसका कोई कसूर नहीं था. एक मां होने के नाते यह सब बहुत ही मुश्किल है."

रिपोर्टः प्रिया एसेलबॉर्न

संपादनः एम गोपालकृष्णन

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