अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के लिए जरूरी सामान लिए जो रॉकेट अंतरिक्ष में पहुंचने वाला है उसका नाम उस महिला गणितज्ञ के नाम पार रखा गया है, जिनके लिखे गणित के फॉर्मूले अमेरिका के पहले अंतरिक्ष मिशन का आधार बने थे.
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कैथरीन जॉनसन एक ब्लैक अमेरिकी महिला थीं और वो उन्हीं के दिए हुए आंकड़े थे जिनके आधार पर 20 फरवरी 1962 को जॉन ग्लेन पृथ्वी की परिक्रमा करने वाले पहले अमेरिकी अंतरिक्षविज्ञानी बने. अब उसी ऐतिहासिक उड़ान की 59वीं वर्षगांठ पर नासा ने कैथरीन के नाम पर एसएस कैथरीन जॉनसन नाम का एक यान आईएसएस पर भेजा है. यान सोमवार 22 फरवरी को वहां पहुंच रहा है.
कैथरीन की उपलब्धियों पर "हिडेन फिगर्स" नाम की एक फिल्म भी बनी है. जिस कैप्सूल को उनका नाम दिया गया है उसे अमेरिकी कंपनी नॉर्थरॉप ग्रुम्मान ने बनाया है. अमेरिकी राज्य वर्जीनिया के पूर्वी तट से कैप्सूल की उड़ान के मौके पर कंपनी के वाइस प्रेसिडेंट फ्रैंक डेमॉरो ने कहा, "मिसेज जॉनसन को उनके हाथ से लिखे हुए गणित के फॉर्मूलों के लिए चुना गया जिनकी मदद से अमेरिका के अंतरिक्ष मिशन ने पहली सीढ़ियां चढ़ी. एक ब्लैक महिला होने के नाते उन्होंने जिस तरह से बार बार बाधाओं को पार किया उन उपलब्धियों के लिए भी उन्हें याद रखा जाता है."
फ्रैंक ने यह भी कहा, "आप सब के लिए होमवर्क यह है कि आप सब वह फिल्म जरूर देखें." जॉनसन का पिछले साल लगभग इसी समय के आस-पास 101 साल की उम्र में निधन हो गया था. यह फिल्म 2016 में आई थी. इसमें विशेष रूप से जॉनसन और वर्जीनिया के हैंपटन में स्थित नासा के लैंगली रिसर्च सेंटर में काम करने वाली दूसरी ब्लैक महिलाओं को दिखाया गया है.
कैप्सूल का वजन चार टन है. यह एक सप्ताह के भीतर आईएसएस पहुंचने वाला दूसरा यान होगा. बुधवार को रूस का एक कैप्सूल सेब और संतरे जैसी चीजें लेकर आईएसएस पहुंचा. फल मिलने परे जापान के एस्ट्रोनॉट सोइची नोगुची ने ट्वीट किया, "हमें ताजे फल बहुत पसंद हैं!" उन्होंने यह भी बताया कि शनिवार को अमेरिकी कैप्सूल की उड़ान से बस 10 मिनट पहले ही आईएसएस वर्जिनिया के ऊपर से उड़ा था.
नोगुची और उनके साथी छह अमेरिकी और रूसी अंतरिक्ष यात्री यान के साथ कुछ और चीजें पाने की उम्मीद कर सकते हैं. अमेरिकी कैप्सूल में उनके लिए टमाटर, बादाम, स्मोक्ड सालमन, पामेजान और चेडार चीज, कैरामेल और नारियल के टुकड़े. कैप्सूल में 12.000 छोटे छोटे राउंडवर्म भी हैं जिनका एक प्रयोग के लिए इस्तेमाल किया जाएगा. इसके साथ ही कुछ कंप्यूटर उपकरण हैं जिनसे आईएसएस में डाटा प्रोसेसिंग की रफ्तार बढ़ाने की कोशिश की जाएगी.
इसके अलावा चांद पर एस्ट्रोनॉट भेजने के नासा के कार्यक्रम के लिए रेडिएशन डिटेक्टर और अंतरिक्षयात्रियों के पेशाब को पीने के पानी में बदलने के लिए एक नया सिस्टम भी भेजा गया है. नॉर्थरॉप ग्रुम्मान ने नासा के लिए 15वीं बार अंतरिक्ष में सामान भेजा है. स्पेसएक्स नासा के लिए यह काम करने वाली दूसरी कंपनी है.
'नंगे भूखों का देश आसमान को छूने चला है' - भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम पर पश्चिम के कुछ देशों की ऐसी ही प्रतिक्रिया थी. लेकिन भारतीय वैज्ञानिकों की मेहनत ने ऐसे आलोचकों को बगलें झांकने पर मजबूर कर दिया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Indian Space Research Organisation
1962
भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने विक्रम साराभाई के अगुवाई में इंडियन नेशनल कमेटी फॉर स्पेस रिसर्च की स्थापना की. संस्थापकों में साराभाई के साथ वैज्ञानिक केआर रमणनाथन भी थे.
तस्वीर: Keystone/Getty Images
1963
केरल के थुंबा गांव में पहला रॉकेट प्रक्षेपण केंद्र बनाने की तैयारी हुई. विषुवत रेखा के करीब होने के वजह से इस जगह का चुनाव किया गया. लेकिन बिल्कुल उपयुक्त जमीन पर सेंट मैरी माग्देलेने चर्च था. साराभाई ने चर्च के पादरी से बातचीत की. अंतरिक्ष में भारत का सपना पूरा करने के लिए चर्च ने भी अपनी जमीन विज्ञान के नाम कर दी.
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1963
चर्च की जमीन पर बने थुंबा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉचिंग स्टेशन से ही भारत ने पहली बार ऊपरी वायुमंडल तक जाने वाला रॉकेट लॉन्च किया. यह भारत के अंतरिक्ष इतिहास का पहला प्रक्षेपण था.
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1969
अंतरिक्ष रिसर्च को भारत के विकास से जोड़ने के इरादे से एक खास संगठन इसरो की स्थापना की गई. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की स्थापना में भी विक्रम साराभाई का अहम योगदान था.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
1971
आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में स्पेस सेंटर की स्थापना की गई. लेकिन इसी साल विक्रम साराभाई का निधन भी हुआ. उनके निधन के बाद मशहूर गणितज्ञ सतीश धवन इसरो के चैयरमैन बने. धवन की याद में अब श्रीहरिकोटा के सेंटर को सतीश धवन स्पेस सेंटर कहा जाता है.
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1975
19 अप्रैल 1975 को भारत ने अपना पहला उपग्रह आर्यभट्ट अंतरिक्ष में लॉन्च किया. पूरी तरह भारत में ही डिजायन की गई इस सैटेलाइट को रूस के सहयोग से अंतरिक्ष में भेजा गया. भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान में यह घटना भी मील का पत्थर है.
तस्वीर: ISRO
1979
भारत ने पहली एक्सपेरिमेंटल रिमोट-सेंसिंग सैटेलाइट भास्कर-1 अंतरिक्ष में भेजी. इसके द्वारा भेजी गई तस्वीरों से जंगलों और मौसम के बारे में जानकारियां मिली.
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1980
भारत ने पहली बार अंतरिक्ष तक जाने वाले रॉकेट सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल-3 (एसएलवी-3) का परीक्षण किया. इसके सफल परीक्षण के बाद भारत खुद अपने उपग्रह अंतरिक्ष में भेजने में सक्षम हो गया. भारत के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ही इस प्रोजेक्ट डायरेक्टर थे. 1980 में इसी रॉकेट की मदद से सैटेलाइट रोहिणी को अंतरिक्ष में भेजा गया.
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1984
एक संयुक्त मानव मिशन के तहत सोवियत संघ और भारत ने अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजा. इसी अभियान के जरिए राकेश शर्मा अंतरिक्ष में पहुंचने वाले पहले भारतीय एस्ट्रोनॉट बने. शर्मा ने सोवियत अंतरिक्ष स्टेशन में आठ दिन बिताए.
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1993
भारत ने बेहद भरोसेमंद लॉन्च व्हीकल पीएसएलवी बनाया. 1994 के बाद से अब तक पीएसएलवी भारत का सबसे भरोसेमंद रॉकेट बना रहा. इसने दर्जनों सैटेलाइटें और चंद्रयान व मंगलयान जैसे ऐतिहासिक मिशनों को अंजाम दिया.
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1999
पीएसएलवी लॉन्च व्हीकल की मदद से भारत ने विदेशी सैटेलाइटों को भी अंतरिक्ष में स्थापित करना शुरू किया. भारत अब तक 33 देशों की 200 से ज्यादा सैटेलाइट्स अंतरिक्ष में पहुंचा चुका है.
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2008
इस मोड़ तक आते आते भारत अंतरिक्ष के मामले में बड़ी शक्ति बन गया. देश ने संचार, प्रसारण, शोध और सामरिक उद्देश्यों के लिए सैटेलाइटों का बड़ा नेटवर्क खड़ा किया. 2008 में चांद को छूने की ख्वाहिश में भारत ने भरोसेमंद पीएसएलवी से चंद्रयान-1 भेजा. यह भी ऐतिहासिक सफलता थी.
तस्वीर: picture alliance/Indian Space Research Organisati/ISRO
2014
जनवरी 2014 में भारत ने पहले अंतरग्रहीय मिशन का आगाज करते हुए मंगलयान भेजा. सितंबर में मंगल की कक्षा में पहुंचे मंगलयान ने अंतरिक्ष में भारत की कामयाबी का एक और झंडा गाड़ा.
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2017
एक ही रॉकेट से 104 सैटेलाइटों की उनकी कक्षा में स्थापित कर भारत ने सबको चौंका दिया.
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2018
15 जुलाई को भारत ने चंद्रमा के लिए अपना दूसरा मानवरहित मिशन चंद्रयान-2 भेजा. चंद्रयान-1 के जरिए दुनिया को चांद पर पानी होने के ठोस सबूत मिले. चंद्रयान-2 अब रिसर्च को और गहराई में ले जाएगा.