लाहौर हाईकोर्ट ने कहा है कि देश के संविधान और कानून के तहत “औरत मार्च” को रोका नहीं जा सकता है. 8 मार्च को महिला दिवस पर देशभर में महिलाएं सड़क पर उतरेंगी.
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पाकिस्तान की अदालत ने साथ ही कहा है कि मार्च में शामिल होने वाली महिलाएं "शालीनता और नैतिक मूल्यों का पालन करें.” साथ ही अदालत ने पुलिस से मार्च को पूरी सुरक्षा देने को कहा है. पाकिस्तान में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर पूरे देश में "औरत मार्च” का आयोजन हो रहा है. पिछले दो साल से जारी इस आयोजन में पाकिस्तान की हजारों महिलाएं शामिल हो चुकी हैं. पिछले महीने औरत मार्च के खिलाफ लाहौर हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी जिसमें कहा गया था कि इस तरह के आयोजन में अनैतिकता की बातें होती हैं. याचिका में कहा गया था कि इस तरह के आयोजन का एजेंडा इस्लाम के खिलाफ "निंदा और नफरत" फैलाना होता है.
अदालत ने प्रशासन को आदेश दिया कि वह मार्च के स्थान को लेकर आयोजकों से मिलकर फैसला लें. महिला संगठनों और अधिकार समूहों के अलावा इस मार्च में एलजीबीटी समुदाय के सदस्य भी शामिल होते हैं, जो अपने अधिकार की मांग करते आए हैं. अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थाएं हाल के सालों में पाकिस्तान में अधिकार कार्यकर्ताओं पर हो रही कार्रवाई को लेकर चिंता जताते रहे हैं. आंदोलन के वकील साकिब जिलानी ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा, "अदालत ने अपनी टिप्पणी में कहा कि मार्च में शामिल होने वाली औरतों को नारेबाजी के दौरान शालीनता और नैतिक मूल्यों की अनदेखी नहीं करनी चाहिए.” साथ ही उन्होंने बताया कि कोर्ट ने एक कोड ऑफ कंडक्ट तैयार करने को कहा है. हालांकि उनके मुताबिक यह पहले से ही मौजूद है.
स्थानीय पुलिस को भी कहा गया है कि महिलाओं के मार्च को पूरी सुरक्षा मुहैया कराई जाए. पुलिस ने अदालत को सौंपी रिपोर्ट में कहा है कि मार्च को पाकिस्तान तालिबान जैसे कट्टरपंथी समूहों के आतंकियों से खतरा है. पुलिस ने अदालत से कहा है कि वह मार्च को सुरक्षा देने को तैयार है लेकिन आयोजकों के लिए जरूरी है कि वे मार्च में "विवादास्पद कृत्य" में शामिल होने से बचें.
पिछले साल रूढ़िवादी संगठनों ने मार्च के दौरान लगाए गए नारों को लेकर आपत्ति दर्ज की थी. पिछले साल महिलाओं ने "मेरा शरीर, मेरी पसंद!" , "मेरा शरीर, आपके लिए युद्ध का मैदान नहीं है!" और "मासिक धर्म को लेकर डरना बंद करो!" जैसे नारों का इस्तेमाल किया था. पिछले साल के आयोजन के बाद मार्च के आयोजनकर्ताओं को धमकियों का सामना करना पड़ा था, जिसमें हत्या और बलात्कार की धमकियां शामिल थीं. इस साल के आयोजन से पहले वॉलंटियर और आयोजकों का कहना है कि इस्लामाबाद और लाहौर में पोस्टर नष्ट कर दिए गए हैं.
सरकार विरोधी प्रदर्शनों की लहर भारत समेत ईरान, अफगानिस्तान और पाकिस्तान में चली हुई है. इनमें से कइयों का मोर्चा देश की महिलाओं ने संभाला है, जो बड़े जोखिम उठा कर व्यवस्था को चुनौती दे रही हैं.
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भेदभावपूर्ण कानून के खिलाफ
भारत के आम नागरिकों के समूहों ने देश में लागू हुए नए नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ कई हफ्तों से प्रदर्शन किया. प्रदर्शनकारी सत्ताधारी बीजेपी पर मुसलमानों के प्रति इस तथाकथित भेदभावपूर्ण कानून को वापस लेने का दबाव बना रहे थे.
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फासीवाद के खिलाफ संघर्ष
भारत के कई विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाली छात्राओं ने देश के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप को ठेस पहुंचाने की कोशिशों का विरोध किया. विवादास्पद कानून के अलावा युवा स्टूडेंट ने फासीवादी सोच, स्त्री जाति से द्वेष, धार्मिक कट्टरवाद और पुलिस की बर्बरता के खिलाफ भी आवाज उठाई.
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जब निकाल फेंका हिजाब
ईरान में महिला आंदोलनकारियों ने देश की ताकतवर शिया सत्ता को चुनौती देते हुए अपना हिजाब निकाल फेंका था. पिछले कुछ सालों से ईरानी महिलाएं तमाम अहम मुद्दों को लेकर पितृसत्तात्मक रवैये और महिलाओं की आजादी पर पाबंदी लगाने वाली चीजों का विरोध करती आई हैं.
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दमनकारी सत्ता के खिलाफ
ईरानी महिलाओं ने 1979 की इस्लामी क्रांति के समय से ही सख्त पितृसत्तावादी दबाव झेले हैं. बराबरी के अधिकारों और बोलने की आजादी जैसी मांगों पर सत्ताधारियों ने हमेशा ही महिलाओं को डरा धमका कर पीछे रखा है.फिर भी महिलाएं हिम्मत के साथ तमाम राजनैतिक एवं नागरिक प्रदर्शनों में हिस्सा ले रही हैं.
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पाकिस्तानी महिलाएं बोल उठीं बस बहुत हुआ
भारत के पड़ोसी पाकिस्तान में भी बराबर का हक मांगने वाली महिलाओं के प्रति बुरा रवैया रहता है. इन्हें कभी "पश्चिम की एजेंट" तो कभी "एनजीओ माफिया" जैसे विशेषणों के साथ जोड़ा जाता है. महिला अधिकारों की बात करने वाली फेमिनिस्ट महिलाओं को अकसर समाज से अवहेलना झेलनी पड़ती है. फिर भी रैली, प्रदर्शन कर समाज में बदलाव लाने की महिलाओं की कोशिशें जारी हैं.
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लोकतंत्र को लेकर बड़े सामाजिक आंदोलन
पाकिस्तान में हुए अब तक के ज्यादातर महिला अधिकार आंदोलन कुछ ही मुद्दों पर केंद्रित रहे हैं, जैसे लैंगिक हिंसा, बाल विवाह और इज्जत के नाम पर हत्या. लेकिन अब महिलाएं लोकतंत्र-समर्थक प्रदर्शनों में भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लेने लगी हैं. पिछले साल पाकिस्तान की यूनिवर्सिटी छात्राओं ने राष्ट्रीय स्तर पर आंदोलन का नेतृत्व किया जिसकी मांग छात्र संघों की बहाली थी. दबाव का असर दिखा और संसद में इस पर बहस कराई गई.
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इंसाफ के लिए लड़तीं अफगानी महिलाएं
अमेरिका और तालिबान का समझौता हो गया तो अफगानिस्तान में एक ओर युद्धकाल का औपचारिक रूप से खात्मा हो जाएगा. लेकिन साथ ही बीते 20 सालों में अफगानी महिलाओं को जो कुछ भी अधिकार और आजादी हासिल हुई है वो खतरे में पड़ सकती है. 2015 में कुरान की प्रति जलाने के आरोप में भीड़ द्वारा पीट पीट कर मार डाली गई फरखुंदा मलिकजादा के लिए इंसाफ की मांग लेकर भी महिला अधिकार कार्यकर्ता सड़क पर उतरीं. (शामिल शम्स/आरपी)