महिला पायलटों की सिल्वर जुबली
२२ अगस्त २०१३"इससे पहले कि महिलाएं जर्मन लुफ्थांसा में कैप्टन बनें, वे बॉक्सिंग में विश्व चैंपियन बन जाएंगी." यह वाक्य ब्रह्मवाक्य रहा, दशकों तक. लेकिन लुफ्थांसा के फ्लाइंग स्कूल के पूर्व प्रमुख अलफ्रेड फरमाटेन ने भूल की थी. बॉक्सिंग में जर्मनी की पहली विश्व चैंपियन 1994 में हुई, जबकि लुफ्थांसा में 1988 से ही महिलाएं पायलट बन रही हैं.
शुरुआत निकोला लिजी और एफी हेत्समनजेडर ने की. दो साल की ट्रेनिंग के बाद बस 23 साल की उम्र में वे पहले बोइंग 737 में को-पायलट के रूप में कॉकपिट में बैठीं. एफी उस दिन को याद करते हुए बताती हैं, "स्वाभाविक रूप से बड़े तनाव में, हम नए थे. पहली बार यात्रियों के साथ विमान पर बैठे थे. मेरे घुटने कांप रहे थे." वह साल 2000 में कैप्टन बनीं. लुफ्थांसा ने पहली बार उनके और उनके बाद आने वाली महिला मुख्य पायलटों के लिए महिला कैप्टन यानि कापिटेनिन शब्द शामिल किया.
अभी भी पुरुष बहुलता
25 साल पहले जो क्रांति थी, इस बीच रोजमर्रा है. फिर भी लुफ्थांसा में अभी भी सिर्फ छह फीसदी महिला पायलट हैं. वैसे इसके साथ लुफ्थांसा दूसरी एयरलाइनों से आगे है. सिंगापुर एयरलाइंस में अभी भी कोई महिला पायलट नहीं है, जबकि एयर फ्रांस में 4 फीसदी, ब्रिटिश एयरवेज में 5 और अमेरिका में 6 फीसदी पायलट महिलाएं हैं. भारत में भी इस बीच महिलाएं पायलट बन रही हैं और महिला दिवस के मौके पर एयर इंडिया पूरी तरह महिलाओं द्वारा संचालित विमान उड़ाता है.
इस समय लुफ्थांसा में सिर्फ 300 पायलट काम करते हैं, इसकी वजह पुरुषों की तुलना में महिलाओं में क्षमता का अभाव नहीं है. लुफ्थांसा में भर्ती के लिए टेस्ट देने वाले सफल उम्मीदवारों का अनुपात पुरुषों और महिलाओं में एक जैसा है. लुफ्थांसा के कैप्टन और ट्रेनर रॉल्फ मुलर कहते हैं, "न तो एप्टीट्यूड टेस्ट में और न ही उड़ान संबंधी हुनर के मामले में पुरुषों और महिलाओं के बीच कोई अंतर है." दिक्कत यह है कि अब भी बहुत ही कम महिलाएं फ्लाइंग स्कूल में भर्ती होने के टेस्ट में हिस्सा लेती हैं.
रिकार्डा टामर्ले पिछले 13 साल से लुफ्थांसा में को-पायलट हैं. वे बताती हैं कि बहुत सी महिलाएं इस पेशे के लिए हिम्मत नहीं दिखातीं. हालांकि इसके लिए शारीरिक और मानसिक फिटनेस के साथ गणित और विज्ञान का सिर्फ औसत ज्ञान जरूरी है. पायलट बनने से पहले दो साल तक फ्लाइट एटेंडेंट का काम करने वाली टामर्ले बताती हैं, "पहले मैं सोचती थी कि आपको इलेक्ट्रिकल इंजीनियर होना चाहिए या घर पर खुद इलेक्ट्रिक सर्किट बनाने का तजुर्बा होना चाहिए." लेकिन ऐसा नहीं है. सबसे जरूरी मल्टीटास्किंग और लंबे समय तक एकाग्रता की क्षमता है.
कॉकपिट में लचीलेपन और टीम भावना की जरूरत होती है. टामर्ले के अनुसार उड़ान आजकल मैनेजमेंट वाला काम हो गया है, इसलिए वे मांग करती हैं, "कॉकपिट में और ज्यादा महिलाएं आनी चाहिएं." एफी हेत्समनजेडर यह नहीं मानतीं कि पुरुष बहुल उड्डयन उद्योग में महिलाओं का पांव जमाना मुश्किल है. वे कहती हैं, "मान्यता प्रदर्शन से मिलती है." उनके ब्लू जैकेट पर कैप्टन की चार सुनहरी पट्टियां उनके आत्मविश्वास को झलकाती हैं. वे कहती हैं, "महिलाएं रचनात्मक और सामाजिक पेशों को प्रथामिकता देती हैं, इसलिए उन्हें कॉकपिट में लाने के लिए प्रोत्साहन की जरूरत है."
लुफ्थांसा के प्रयास
जर्मनी की सबसे बड़ी विमान सेवा युवा महिलाओं को आकर्षित करने की कोशिश कर रहा है. महिलाओं के लिए पेशे और काम में बेहतर तालमेल के लिए काम के घंटों के कई प्रकार के मॉडल हैं. लुफ्थांसा के प्रवक्ता मिषाएल लाम्बैर्टी कहते हैं कि यह पुरुषों के लिए भी उपलब्ध है. इसके अलावा कंपनी एक जैसे काम के लिए एक जैसी तनख्वाह भी देती है. तनख्वाह अनुभव पर निर्भर करती है. लेकिन इसके बावजूद लुफ्थांसा के फ्लाइंग स्कूल में भर्ती के लिए महिलाओं की लाइन नहीं लगी है.
कैप्टन मुलर एक ऐतिहासिक कारण की ओर इशारा करते हैं. "अमेरिका में बड़ी विमान कंपनियां अपने पायलटों की भर्ती सेना से करती थी." सेना का अलिखित नियम था कि महिलाएं हथियारों के साथ काम नहीं करतीं. "सेना के विमान सिर्फ ट्रांसपोर्ट के लिए ही नहीं बल्कि हथियार तंत्र के लिए भी होते थे." इसलिए महिलाओं ने बहुत देर से पायलट बनना शुरू किया. मुलर कहते हैं, "आज महिलाएं लड़ाकू विमान उड़ाती हैं. यह दिखाता है कि वे पुरुषों की ही तरह अपनी जिम्मेदारी निभा सकती हैं."
इकारस की बेटियां
दिलचस्प तथ्य यह भी है कि लड़ाकू विमान के कॉकपिट में बैठने वाली पहली महिला अमेरिका की नहीं बल्कि तुर्की की थी. सबीहा गोएकचेन आधुनिक तुर्की के पहले राष्ट्रपति मुस्तफा कमाल अतातुर्क की चार गोद ली हुई बेटियों में चौथी थीं. जर्मनी में मार्गा फॉन एत्सडॉर्फ ने 1928 में लुफ्थांसा की पहली महिला पायलट के रूप में काम शुरू किया. लेकिन उसके बाद 60 सालों तक कोई नई भर्ती नहीं हुई. साम्यवादी पूर्वी जर्मनी की विमान सेवा इंटरफ्लूग में भी कोई महिला पायलट नहीं थी.
एफी हेत्समनजेडर खुद को दूसरी महिलाओं के लिए किसी भी तरह का आदर्श नहीं मानतीं, "मेरा इरादा किसी को कुछ साबित करना या कुछ मजेदार दिखाना नहीं था." वे अपने को मार्गदर्शक भी नहीं मानतीं. वे कहती हैं, "मैंने कोई संघर्ष नहीं किया है." लुफ्थांसा में उनकी भर्ती से पहले कोई लंबा झगड़ा भी नहीं हुआ. उनका सपना था कि वे कॉकपिट में बैठें. 1991 तक लुफ्थांसा की महिला पायलट भी पुरुषों की यूनीफॉर्म में जहाज उड़ाती थीं. इस बीच हेयरपिन, हेयर बैंड, फीमेल टाई और हैंड बैग भी पायलटों के यूनीफॉर्म का हिस्सा बन गया है. एफी हेत्समनजेडर को कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे स्कर्ट पहनती हैं या पैंट. उन्हें टाई पहनना पसंद है.
रिपोर्ट: मिषाएल मारेक/एमजे
संपादन: ए जमाल