भारत में सुरक्षा बलों के खिलाफ लड़ रहे माओवादी लड़ाकों में महिलाएं भी बड़ी संख्या शामिल हैं. उनकी तरफ शांति का हाथ बढ़ाने के लिए कुछ लोगों ने एक अनोखी चीज को जरिया बनाया है. सैनिटरी पैड्स को.
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छत्तीसगढ़, ओडिशा और झारखंड जैसे राज्यों में दशकों से माओवादी लड़ाके सक्रिय हैं. उन्हें देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए मौजूद सबसे बड़ी चुनौतियों में गिना जाता है. जंगलों में रहने वाले ये लोग सुरक्षाकर्मियों पर कई बार बड़े हमले कर चुके हैं. उनका कहना है कि वे गरीब किसानों और भूमिहीन श्रमिकों के अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं.
इनकी संख्या दसियों हजार बताई जाती है. लगभग ढाई हजार महिला माओवादी लड़ाकों को शांति कोशिशों में शामिल करने के लिए छत्तीसगढ़ के कुछ कार्यकर्ता उनके बीच रियूजेबल सैनिटरी नेपकिंस और मेंसुरल कप बांट रहे हैं. सामाजिक कार्यकर्ता शुभ्रांशु चौधरी ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "क्या हम हिंसा का चक्र तोड़ कर बातचीत शुरू कर सकते हैं? हम हिंसा और हिंसक राजनीति के खिलाफ माहौल तैयार करना चाहते हैं और शांति कायम करना चाहते हैं."
वह कहते हैं, "कार्यकर्ता मानते हैं कि एक बार महिलाएं अपने पुरूष साथियों को भरोसा दिला पाएं तो फिर उन्हें शांति प्रक्रिया में शामिल करना संभव हो सकता है." चौधरी कहते हैं कि उन्हें यह आइडिया दक्षिण अमेरिकी देश कोलंबिया से मिला, जहां लड़ने वाले विद्रोहियों को क्रिसमस के तोहफे के तौर पर सैनिटरी पैड्स भेजे गए. यही सोचकर उन्होंने दीवाली पर महिला माओवादी लड़ाकों को ऐसे पैड्स भेजे.
अकसर भारतीय सुरक्षा बलों को निशाना बनाने वाले इन माओवादी लड़ाकों को नक्सली भी कहा जाता है. पश्चिम बंगाल के एक गांव नक्सलबाड़ी में इस आंदोलन की शुरुआती हुई. उसी के नाम पर इस आंदोलन का यह नाम पड़ा.
शांति की मुश्किल राह
अधिकारी कहते हैं कि शांति के लिए हिंसा का रास्ता छोड़ना जरूरी है. एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी सुंदरराज पी कहते हैं, "राज्य के नजरिए से देखें, तो हम किसी के साथ तभी बात करेंगे, जब वह पूरी तरह हिंसा को छोड़ दे और राष्ट्रीय मुख्यधारा में शामिल हो. अगर वे जंगलों में रहकर राज्य के खिलाफ लड़ रहे हैं, तो फिर हम कैसे उनकी जिंदगी को आरामदायक बनाने के बारे में सोच सकते हैं."
भारत में बहुत सारी महिलाओं को पीरियड्स के दिनों में सैनिटरी उत्पाद नहीं मिल पाते. कई बार उनके पास इन्हें खरीदने के पैसे नहीं होते तो कई बार उनकी पहुंच ऐसे उत्पादों तक नहीं होती. 2015-16 में किए गए एक सरकारी सर्वे के अनुसार भारत में हर तीन में से सिर्फ एक महिला ही नैपकीन इस्तेमाल करती है. बाकी महिलाएं पुराने कपड़े इस्तेमाल करती हैं.
महिला अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था आइना की सचिव स्नेहा मिश्रा महिला माओवादी लड़ाकों के बीच सैनिटरी पैड्स बांटने की पहल का स्वागत करती हैं. लेकिन वह कहती हैं कि ऐसी पहलों में सरकार को शामिल किया जाना चाहिए. वह कहती हैं, "पहल अच्छी है. उन महिलाओं को ऐसी चीजें नहीं मिलती होंगी. लेकिन सिविल सोसाइटी संस्थाओं को सरकार से बात करनी चाहिए."
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कहां कहां हैं बच्चों के हाथों में बंदूकें
दुनिया के अलग अलग हिस्सों में जारी संघर्षों में बच्चे न सिर्फ पिस रहे हैं, बल्कि उनके हाथों में बंदूकें भी थमाई जा रही हैं. एक नजर उन देशों पर जहां बच्चों को लड़ाई में झोंका जा रहा है.
तस्वीर: Guillaume Briquet/AFP/Getty Images
अफगानिस्तान
तालिबान और अन्य कई आतंकवादी गुट बच्चों को भर्ती करते रहे हैं और उनके सहारे कई आत्मघाती हमलों को अंजाम भी दे चुके हैं. कई बार अफगान पुलिस पर भी बच्चों को भर्ती करने के आरोप लगते हैं.
तस्वीर: picture alliance/Tone Koene
बर्मा
बर्मा में बरसों से हजारों बच्चों को जबरदस्ती फौज में भर्ती लड़ाई के मोर्चे पर भेजने का चलन रहा है. इनमें 11 साल तक के बच्चे भी शामिल होते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/P.Kittiwongsakul
सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक
इस मध्य अफ्रीकी देश में 12-12 साल के बच्चे विभिन्न विद्रोही गुटों का हिस्सा रहे हैं. लॉर्ड रजिस्टेंस ग्रुप पर बच्चों को इसी मकसद से अगवा करने के आरोप लगते हैं.
तस्वीर: UNICEF/NYHQ2012-0881/Sokol
चाड
यहां विद्रोही ही नहीं बल्कि सरकारों बलों में भी बच्चों को भर्ती किया जाता रहा है. 2011 में सरकार ने सेना में बच्चों को भर्ती न करने का एक समझौता किया था.
तस्वीर: UNICEF/NYHQ2010-1152/Asselin
कोलंबिया
इस दक्षिण अमेरिकी देश में पिछले दिनों गृहयुद्ध खत्म हो गया. लेकिन उससे पहले फार्क विद्रोही गुट में बड़े पैमाने पर बच्चों को भर्ती किया गया था.
तस्वीर: AP
डेमोक्रेटिक रिपब्लिकन ऑफ कांगो
संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि एक समय तो इस देश में तीस हजार लड़के लड़कियां विभिन्न गुटों की तरफ से लड़ रहे थे. कई बार तो लड़कियों को यौन गुलाम की तरह इस्तेमाल किया जाता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Gambarini
भारत
छत्तीसगढ़ जैसे नक्सल प्रभावित इलाकों में कई बच्चों के हाथों में बंदूक थमा दी जाती है. कई बार सुरक्षा बलों से मुठभेड़ों मे बच्चे भी मारे जाते हैं.
तस्वीर: AP
इराक
अल कायदा बच्चों को लड़ाके ही नहीं, बल्कि जासूसों के तौर पर भी भर्ती करता रहा है. कई बार सुरक्षा बलों पर होने वाले आत्मघाती हमलों को बच्चों ने अंजाम दिया है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo
सोमालिया
कट्टरपंथी गुट अल शबाब 10 साल तक के बच्चों को जबरदस्ती भर्ती करता रहा है. उन्हें अकसर घरों और स्कूलों से अगवा कर लिया जाता है. कुछ सोमाली सुरक्षा बलों में भी बच्चों को भर्ती किए जाने के मामले सामने आए हैं.
तस्वीर: picture alliance/AP Photo/Abdi Warsameh
दक्षिणी सूडान
2011 में दक्षिणी सूडान के अलग देश बनने के बाद वहां की सरकार ने कहा था कि अब बच्चों को सैनिक के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जाएगा, लेकिन कई विद्रोही गुटों में अब भी बच्चे हैं.
तस्वीर: DW/A. Stahl
सूडान
सूडान के दारफूर में दर्जनों हथियारबंद गुटों पर बच्चों को भर्ती करने के आरोप लगते हैं. इनमें सरकार समर्थक और विरोधी, दोनों ही तरह के मिलिशिया गुट शामिल है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/S.Bor
यमन
यमन में अरब क्रांति से पहले 14 साल तक के बच्चों को सरकारी बलों में भर्ती किया गया था. हूथी विद्रोहियों के लड़ाकों में भी ऐसे बच्चे शामिल हैं जिनके हाथों में बंदूक हैं.