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जर्मन लेखिका की नजर में "भारत की नारी"

ऋतिका राय२७ जून २०१५

जर्मन सामाजिक कार्यकर्ता और लेखिका डॉक्टर कातारीना पोगेनडॉर्फ-ककड़ ने भारतीय नारियों के दमन और प्रतिरोध की सच्ची कहानियों पर एक किताब लिखी है 'फ्राउएन इन इंडियन'. डीडब्ल्यू की ऋतिका राय ने की लेखिका से खास बातचीत.

तस्वीर: Reuters

विकास और बराबरी के तमाम वादों के बावजूद भारत में महिलाओं की स्थिति ज्यादा नहीं सुधरी है. वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के वार्षिक जेंडर गैप इंडेक्स को देखें तो पता चलता है कि लैंगिक विषमता सूची में भारत स्वास्थ्य सुविधाओं और जीवन दर के मामले में सबसे नीचे के देशों में है. महिलाओं के खिलाफ शारीरिक शोषण, बलात्कार, कन्याभ्रूण हत्या, बाल विवाह और एसिड हमलों जैसे कई जघन्य अपराध देश में आम हैं.

जर्मन लेखिका डॉक्टर कातारीना पोगेनडॉर्फ-ककड़ ने पिछले 12 सालों से भारत को अपना घर बनाया हुआ है. अक्टूबर 2015 में प्रकाशित होने वाली उनकी अगली किताब भारत की महिलाओं की स्थिति पर आधारित है. जर्मनी के कोलोन शहर में 7वें क्योल्नर इंडियनवोखे में उन्होंने अपनी किताब के अंश पाठकों और भारत प्रेमियों के साथ बांटे. डॉक्टर कातारीना पोगेनडॉर्फ-ककड़ से डीडब्ल्यू से खास बातचीत के कुछ अंश.

जर्मन लेखिका डॉक्टर कातारीना पोगेनडॉर्फ-ककड़ ने भारत में महिलाओं की स्थिति का अध्ययन किया है.तस्वीर: DW/R. Rai

डीडब्ल्यू: महिलाओं के प्रति भेदभाव और हिंसा पूरे विश्व में व्याप्त समस्या है. भारत की महिलाओं के विरुद्ध होने वाली हिंसा किस लिहाज से अलग है?

डॉक्टर कातारीना पोगेनडॉर्फ-ककड़: यह सही है कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा और अपराध किसी खास देश का मामला नहीं है. मेरी किताब का मकसद भी यही है कि मैं उसके अलग अलग पहलुओं को दिखा सकूं. इन्हें एक संदर्भ में रख सकूं और दिखा सकूं कि कहां हिंसा विशिष्ट रूप से भारतीय जामा पहन लेती है. उदाहरण के तौर पर, दुल्हनों को जलाए जाने के और दूसरे कई मामले...”

आपके हिसाब से भारत में महिलाओं पर होने वाले हर तरह के अत्याचारों की वजह क्या है?

किसी सामूहिक बलात्कार का ही मामला लीजिए. बलात्कार ही नहीं वहां आपको अपार हिंसा के साफ सबूत दिखेंगे. यह इतनी सारी हिंसा कहां से आ रही है? मैं इसे समझने के लिए ही अलग अलग जातियों, सामाजिक रूतबे और ऐसे ही कई दूसरे सांस्कृतिक संदर्भ को समझने की कोशिश कर रही हूं. आप ध्यान दीजिए कि यह हमेशा लिंग आधारित मामला नहीं होता. एक उच्च जाति की महिला एक निम्न जाति के पुरुष से ज्यादा ताकतवर होती है. यह एक बेहद जटिल समीकरण है और मेरी दिलचस्पी इसी जटिलता को उजागर करने में है. इसकी मदद से इन सब घटनाओं को अलग कर के देखा जा सकेगा.

क्या सदियों से चली आ रही जाति और वर्ण की मान्यता को मिटा देने से स्थिति सुधरेगी?

संस्कृति का हमारे पूरे अस्तित्व पर गहरा होता असर है. मुझे लगता है कि अगर जाति प्रथा से छुटकारा पाया जा सके तो दमन के एक बड़े कारण को खत्म किया जा सकेगा, लेकिन इसमें शायद कई पीढ़ियां लग जाएं. वैसे तो इस कारण दमन केवल महिलाओं का नहीं बल्कि पुरुषों का भी होता है, लेकिन इसकी सबसे ज्यादा शिकार गरीब महिलाएं होती हैं. जिस पल से इस बात का महत्व खत्म हो जाएगा कि आप किस जाति के हैं और किससे शादी करते हैं, उसी से पूरे भारतीय समाज में एक बड़ा बदलाव आ जाएगा, खासकर निचली जाति और तबके की महिलाओं के लिए.

महिलाओं के आर्थिक स्वावलंबन की आप इसमें कितनी भूमिका देखती हैं?

शिक्षा और उसके जरिए पैसे कमाने की संभावना खुलना ही किसी महिला को अपनी शर्तो पर व्यक्तिगत चुनावों वाला जीवन जीने का बड़ा कारक है. यह पूरी दुनिया में लागू होता है. महिलाओं को अर्थवयवस्था ही नहीं, राजनीति और दूसरे निर्णायक संरचनाओं में शामिल किया जाना चाहिए, जिससे उनके निर्णयों का असर पूरे समुदाय पर हो. इन सबके अलावा भारतीय समाज में जाति की महत्वपूर्ण भूमिका है.

भारत में एक सर्वव्याप्त हंसी खेल या विनोद की भावना दिखती है. बुनियादी ढांचे से लेकर, भ्रष्टाचार और समाज में स्थापित कई सोपानों तक तमाम परेशानियां हैं, जिनका कोई आसान उपाय नहीं हो सकता. फिर भी भारतीय नए नए समाधान सोचते हैं. यहां हर किसी को अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए आविष्कारशील होना बहुत जरूरी है.

जर्मन लेखिका डॉक्टर कातारीना पोगेनडॉर्फ-ककड़ ने पिछले 12 सालों से भारत को अपना घर बनाया हुआ है. अक्टूबर 2015 में प्रकाशित होने वाली उनकी अगली किताब 'फ्राउएन इन इंडियन' भारत में महिलाओं की स्थिति पर आधारित है.

इंटरव्यू: ऋतिका राय

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