राष्ट्रीय स्वास्थ्य सर्वेक्षण की ताजा रिपोर्ट में महिलाओं को लेकर कुछ चमकदार आंकड़े दिख रहे हैं. भारत में महिलाओं के स्वास्थ्य और उनकी शिक्षा, वित्तीय स्थिति और निर्णय लेने की क्षमता में सुधार का दावा किया गया है.
विज्ञापन
विपरीत हालात के बावजूद महिलाएं निजी और सार्वजनिक जीवन में लगातार आगे बढ़ रही हैं. सर्वेक्षण के अनुसार 15 से 49 वर्ष की महिलाओं की साक्षरता दर बढ़ी है. गोवा में 89 फीसदी, सिक्किम में 86, हरियाणा में 75.4, और मध्यप्रदेश में 59.4 फीसदी महिला साक्षरता दर रेकॉर्ड की गई. वहीं प्रजनन दर यानि प्रति महिला संतानोत्पत्ति में कमी देखी गई है. ये इस बात का संकेत है कि महिलाएं अपने स्वास्थ्य और परिवार के आकार और गर्भ निरोधक प्रयासों को लेकर सचेत हैं जो कि भारत की विशाल आबादी को देखते हुए एक उत्साहजनक बात है.
वित्तीय अधिकार के लिहाज से देखा जाए तो अब प्राय: महिलाओं के खुद के नाम पर उनका बैंक खाता होता है यानि महिलाओं की वित्तीय आत्मनिर्भरता बढ़ी है. इसमें गोवा और तमिलनाडु का प्रदर्शन सर्वश्रेष्ठ रहा है. इस सर्वेक्षण में एक सूचकांक ये भी रखा गया था कि कितनी महिलाओं के नाम पर अचल संपत्ति है. दिलचस्प है कि बिहार में ऐसी महिलाओं का प्रतिशत सबसे ज्यादा था जिनके नाम पर संपत्ति थी. इसके बाद त्रिपुरा का नंबर था और पश्चिम बंगाल इसमें आखिरी पायदान पर था जहां महिला मुख्यमंत्री के हाथों में शासन की बागडोर है.
इस सर्वेक्षण के नतीजों से ये मिथक भी टूटा है कि भारत में पितृसत्तात्मक परिवार होने के कारण पारिवारिक निर्णयों में महिलाओं की भूमिका न के बराबर होती है. सिक्किम और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में 70 से 90 फीसदी महिलाएं परिवार में निर्णायक भूमिका निभाती हैं. हालांकि तमिलनाडु और हरियाणा में महिलाओं की इस भूमिका में गिरावट आई है.
भारत में महिलाओं के कानूनी अधिकार
भारत में महिलाओं के लिए ऐसे कई कानून हैं जो उन्हें सामाजिक सुरक्षा और सम्मान से जीने के लिए सुविधा देते हैं. देखें ऐसे कुछ महत्वपूर्ण कानूनी अधिकार...
तस्वीर: picture alliance/AP Photo
पिता की संपत्ति का अधिकार
भारत का कानून किसी महिला को अपने पिता की पुश्तैनी संपति में पूरा अधिकार देता है. अगर पिता ने खुद जमा की संपति की कोई वसीयत नहीं की है, तब उनकी मृत्यु के बाद संपत्ति में लड़की को भी उसके भाईयों और मां जितना ही हिस्सा मिलेगा. यहां तक कि शादी के बाद भी यह अधिकार बरकरार रहेगा.
तस्वीर: Fotolia/Ramona Heim
पति की संपत्ति से जुड़े हक
शादी के बाद पति की संपत्ति में तो महिला का मालिकाना हक नहीं होता लेकिन वैवाहिक विवादों की स्थिति में पति की हैसियत के हिसाब से महिला को गुजारा भत्ता मिलना चाहिए. पति की मौत के बाद या तो उसकी वसीयत के मुताबिक या फिर वसीयत ना होने की स्थिति में भी पत्नी को संपत्ति में हिस्सा मिलता है. शर्त यह है कि पति केवल अपनी खुद की अर्जित की हुई संपत्ति की ही वसीयत कर सकता है, पुश्तैनी जायदाद की नहीं.
तस्वीर: Fotolia/davidevison
पति-पत्नी में ना बने तो
अगर पति-पत्नी साथ ना रहना चाहें तो पत्नी सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अपने और बच्चों के लिए गुजारा भत्ता मांग सकती है. घरेलू हिंसा कानून के तहत भी गुजारा भत्ता की मांग की जा सकती है. अगर नौबत तलाक तक पहुंच जाए तब हिंदू मैरिज ऐक्ट की धारा 24 के तहत मुआवजा राशि तय होती है, जो कि पति के वेतन और उसकी अर्जित संपत्ति के आधार पर तय की जाती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/CTK/Josef Horazny
अपनी संपत्ति से जुड़े निर्णय
कोई भी महिला अपने हिस्से में आई पैतृक संपत्ति और खुद अर्जित की गई संपत्ति का जो चाहे कर सकती है. अगर महिला उसे बेचना चाहे या उसे किसी और के नाम करना चाहे तो इसमें कोई और दखल नहीं दे सकता. महिला चाहे तो उस संपत्ति से अपने बच्चो को बेदखल भी कर सकती है.
तस्वीर: Fotolia/drubig-photo
घरेलू हिंसा से सुरक्षा
महिलाओं को अपने पिता या फिर पति के घर सुरक्षित रखने के लिए घरेलू हिंसा कानून है. आम तौर पर केवल पति के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले इस कानून के दायरे में महिला का कोई भी घरेलू संबंधी आ सकता है. घरेलू हिंसा का मतलब है महिला के साथ किसी भी तरह की हिंसा या प्रताड़ना.
तस्वीर: picture-alliance/PIXSELL/Puklavec
क्या है घरेलू हिंसा
केवल मारपीट ही नहीं फिर मानसिक या आर्थिक प्रताड़ना भी घरेलू हिंसा के बराबर है. ताने मारना, गाली-गलौज करना या फिर किसी और तरह से महिला को भावनात्मक ठेस पहुंचाना अपराध है. किसी महिला को घर से निकाला जाना, उसका वेतन छीन लेना या फिर नौकरी से संबंधित दस्तावेज अपने कब्जे में ले लेना भी प्रताड़ना है, जिसके खिलाफ घरेलू हिंसा का मामला बनता है. लिव इन संबंधों में भी यह लागू होता है.
तस्वीर: picture alliance/abaca
पुलिस से जुड़े अधिकार
एक महिला की तलाशी केवल महिला पुलिसकर्मी ही ले सकती है. महिला को सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले पुलिस हिरासत में नहीं ले सकती. बिना वारंट के गिरफ्तार की जा रही महिला को तुरंत गिरफ्तारी का कारण बताना जरूरी होता है और उसे जमानत संबंधी उसके अधिकारों के बारे में भी जानकारी दी जानी चाहिए. साथ ही गिरफ्तार महिला के निकट संबंधी को तुरंत सूचित करना पुलिस की ही जिम्मेदारी है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Sharma
मुफ्त कानूनी मदद लेने का हक
अगर कोई महिला किसी केस में आरोपी है तो महिलाओं के लिए कानूनी मदद निःशुल्क है. वह अदालत से सरकारी खर्चे पर वकील करने का अनुरोध कर सकती है. यह केवल गरीब ही नहीं बल्कि किसी भी आर्थिक स्थिति की महिला के लिए है. पुलिस महिला की गिरफ्तारी के बाद कानूनी सहायता समिति से संपर्क करती है, जो कि महिला को मुफ्त कानूनी सलाह देने की व्यवस्था करती है.
तस्वीर: UNI
8 तस्वीरें1 | 8
हर 20 मिनट में एक बलात्कार
इन आंकड़ों की रोशनी में महिला सशक्तिकरण की कमोबेश उत्साहजनक तस्वीर बनती दिखती है लेकिन इसके स्याह पहलू को भी रेखांकित करना जरूरी है. वास्तविकता देखें तो महिलाओं के लिए अब भी भारतीय समाज में चुनौतियां बनी हुई है. भारत में महिलाएं कुल जनसंख्या का करीब 48 फीसदी हैं लेकिन रोजगार में उनकी हिस्सेदारी सिर्फ 26 फीसदी की है. राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के रेकॉर्ड के अनुसार महिलाओं पर होने वाले अपराधों जैसे बलात्कार, घरेलू हिंसा और दहेज हत्या में 11 फीसदी की दर से सालाना वृद्धि दर्ज की गई. ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार हर 20 मिनट में एक महिला भारत में बलात्कार का शिकार होती है.
न्यायपालिका और केंद्र और राज्य सरकारों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व काफी कम है और 2013 के आंकड़ों के अनुसार सुप्रीम कोर्ट में सिर्फ दो महिला जज थीं. संसद में महिला आरक्षण विधेयक अभी भी लंबित है. पंचायतों में जहां महिलाओं के लिए आरक्षण किया गया वहां महिलाओं के नाम पर उनके पति और बेटे निर्वाचन से मिली ताकत का उपयोग कर रहे हैं. और इन सब चिंताओं के बीच यूएनडीपी की वह रिपोर्ट भी है जिसके मुताबिक महिलाओं के सशक्तिकरण में अफगानिस्तान को छोड़कर सभी दक्षिण एशियाई देश भारत से बेहतर हैं.
भारत की कुछ सफल महिला उद्यमी
भारत की कुछ सफल महिला उद्यमी दुनिया भर में महिलाओं और पुरुषों की समानता का संघर्ष खत्म नहीं हुआ है. फिर भी बहुत सी महिला उद्यमियों ने अपनी हिम्मत और मेहनत से साबित किया है कि नेतृत्व क्षमता में वे पीछे नहीं हैं.
तस्वीर: Prabhakar Mani Tewari
इंदिरा नूयी
56 वर्षीया इंदिरा नूयी इस समय दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी खाद्य कंपनी पेप्सीको की अध्यक्ष हैं. चेन्नई में जन्मी इंदिरा नूयी ने मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से साइंस में डिग्री की और आईआईएम कलकत्ता से एमबीए किया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
किरण मजुमदार शॉ
बंगलोर में पैदा हुई 59 वर्षीया किरण मजुमदार शॉ शहर के माउंट कार्मेल कॉलेज से प्राणी विज्ञान की स्नातक हैं. किरण मजुमदार शॉ ने 1978 में बायोकॉन कंपनी शुरू की और उसे बायोमेडिसिन रिसर्च का अगुआ बना दिया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
नैना लाल किदवई
55 वर्षीया नैना लाल किदवई एचएसबीसी बैंक की भारत शाखा की कंट्री हेड और ग्रुप जनरल मैनेजर हैं. उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में डिग्री ली है और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से एमबीए करने वाली पहली भारतीय महिला हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/Raveendran
चंदा कोचर
51 वर्षीया चंदा कोचर भारत के सबसे बड़े गैरसरकारी बैंक आईसीआईसीआई बैंक की प्रमुख हैं. राजस्थान में पैदा हुई चंदा कोचर ने मुंबई के जमनालाल बजाज इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज से एमबीए किया है.
तस्वीर: Getty Images/AFP//T. Clary
सिमोन टाटा
जन्म से फ्रांसीसी सिमोन टाटा रतन टाटा की सौतेली मां हैं. लक्मे कंपनी की पूर्व अध्यक्ष को भारत का कॉस्मेटिक जार कहा जाता है. उन्होंने बेचे जाने से पहले टाटा की इस छोटी कंपनी को भारत का सबसे बड़ा कॉस्मेटिक ब्रांड बना दिया.
तस्वीर: Getty Images/AFP//I. Mukherjee
नीलम धवन
भारतीय आईटी उद्योग की प्रतिष्ठित हस्ती नीलम धवन इस समय ह्यूलेट पैकर्ड की भारत शाखा की प्रमुख हैं. 80 के दशक में एशियन पेंट्स और हिंदुस्तान लीवर जैसी कंपनियों द्वारा ठुकराए जाने के बाद उन्होंने आईटी उद्योग को चुना और अपनी जगह बनाई.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/G. Singh
सुलज्जा मोटवानी
सुलज्जा मोटवानी काइनेटिक मोटर्स की संयुक्त मैनेजिंग डाइरेक्टर हैं. कैलिफोर्निया में इंवेस्टमेंट कंपनी में काम करने बाद उन्होंने अपने दादा की कंपनी ज्वाइन की और अपनी मार्केटिंग रणनीति से कंपनी के विकास में योगदान दिया.
तस्वीर: Getty Images/AFP/Raveendran
प्रिया पॉल
22 साल की आयु में पारिवारिक बिजनेस में शामिल होने वाली प्रिया पॉल इस समय एपीजे पार्क होटल्स कंपनी की अध्यक्ष हैं. उद्योग जगत के अलावा सरकार ने भी हॉस्पिटेलिटी उद्योग को उनके योगदान की सराहना की है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/I. Mukherjee
एकता कपूर
फिल्म स्टार जीतेंद्र की बेटी एकता कपूर बालाजी टेलीफिल्म्स कंपनी की संयुक्त मैनेजिंग डाइरेक्टर है. उन्होंने टीवी धारावाहिकों और फिल्म निर्माण के क्षेत्र में अपनी खास जगह बनाई है. सबसे सफल महिला प्रोड्यूसर्स में एकता का नाम आता है.
तस्वीर: Prabhakar Mani Tewari
9 तस्वीरें1 | 9
ताकत और दबंगई का बोलबाला
अब एक तरफ ये आकर्षक आंकड़े हैं और दूसरी तरफ इन आंकड़ों के समांतर फैला यथार्थ. यह यथार्थ बना है महिला विरोधी मानसिकता और पुरुषवादी वर्चस्व से. बेशक स्त्रियां उठ रही हैं, लड़ रही हैं, आगे आई हैं लेकिन जितना ज्यादा उनकी आवाज और उनकी शख्सियत का दायरा बढ़ता जाता है, उतना ही ज्यादा उस दायरे को सिकोड़ने की कोशिशें की जाती रही हैं. इस तरह समाज में यह वर्गीय टकराव जारी है और अब इस टकराव के हम कुछ भयावह पहलू भी देख रहे हैं, जहां ताकत और दबंगई का बोलबाला है. एक ताकतवर पुरुष ही नहीं एक ताकतवर महिला भी अपने से कमजोर और असहाय महिला पर हिंसा आजमाती दिख जाती है और इस तरह समाज का यह विद्रूप बजाय मिटने के और सघन हो रहा है.
ऐसे विरोधाभासी और प्रतिकूल हालात से निपटने का सबसे पहला रास्ता घर से ही खुलता है. जहां परिवारों को बेटियों के प्रति अधिक समानुभूति और समझदारी के साथ पेश आना होगा. उन्हें इस किस्म का आधुनिक बनना होगा कि वे बेटियों और अपने घर की महिलाओं को बराबर की जगह दें और उनका सम्मान कर सकें. उन्हें धार्मिक और सामाजिक वितंडाओं से बाज आना होगा. अगर पुरुष ऐसा नहीं करते हैं तो महिलाओं को ही यह काम अपने हाथ में लेना होगा. उन्हें 'सेकंड सेक्स' की मान्यता को हर हाल में तोड़ना ही होगा. इस काम में स्वयंसेवी संगठन, मीडिया, अदालतों, मानवाधिकार संगठन और महिला अधिकारों के लिए लड़ने वाले व्यक्ति, राजनैतिक दल और समूहों को भी अपनी प्रोएक्टिव भूमिका निभानी होगी.
जुलूस, मोमबत्ती मार्च, नारे, धरनों से आगे परिवार और समाज में मौजूद उन जटिल संरचनाओं को तोड़ना होगा जो एक कदम आगे बढ़ती स्त्री को दो कदम पीछे खींचने पर विवश करती हैं. यही वजह है कि महिला सशक्तिकरण का एक आंकड़ा राहत पहुंचाता है तो महिला पर अपराध का दूसरा आंकड़ा उसी दौरान गहरी निराशा और अफसोस में डाल देता है.