मांओं पर कहर ढाती तंजानिया की नर्सें
४ अगस्त २०१७तंजानिया की राहेल गुंज कहती हैं, "मैं वो दिन याद नहीं करना चाहती हूं. सिर्फ भगवान ही जानता है कि मैं और मेरा बच्चा कैसे बचे.” वो उस दिन को याद करती हैं जब उन्होंने अस्पताल के ठंडे फर्श पर अपने बच्चे को जन्म दिया था. राहेल कहती हैं कि बात दो साल पुरानी है लेकिन वह स्मृति आज भी उनके भीतर वैसे ही जिंदा है और उनके जीवन का वह सबसे भयानक अनुभव था.
उन्होंने बताया, "मैं बहुत नाजुक हालत में थी. मुझे तुरंत मदद की जरूरत थी पर मुझे नहीं मिली.” राहेल आधी रात को जब अस्पताल पहुंची, तब वे प्रसव पीड़ा से जूझ रही थीं. राहेल ने बताया कि बच्चा जन्म लेने को था और उनके पति हैरान होकर सारे अस्पताल में किसी दाई को खोज रहे थे. लेकिन उनके पति ने देखा कि अस्पताल का स्टाफ पास के एक कैफे में बैठा एक दूसरे के चुटकुलों पर ठहाके लगा रहा था.
राहेल के पति और एक दाई भागते हुए अस्पताल पहुंचे. उन्होंने देखा कि राहेल पहले से ही बच्चे को जन्म देने की स्थिति में हैं. वो बैठी हुई थी और अगले ही पल उनका नवजात शिशु बहुत सारे खून के साथ अस्पताल के फर्श पर सामने आ गया है. राहेल के पति ने देखा कि दाई ने बच्चे को बचाने के लिए दस्ताने पहने, जो टूटी हुई गर्भनाल के खून में लतपथ पड़ा था.
मां और बच्चे को तीन दिन बाद अस्पताल से छुट्टी मिली. नर्सें अपने मरीजों के साथ कैसा बर्ताव करती हैं, यह देखने के लिए तीन दिन का वक्त पर्याप्त लंबा समय था. उन्होंने देखा कि एक नर्स गर्भवती महिला को थप्पड़ मार रही थी क्योंकि वह उसकी बात नहीं मान रही थी.
वो याद करती हैं कि उन्होंने एक महिला को बिस्तर के बंधा देखा था. उसके हाथ कपड़े से बंधे हुए थे ताकि उसकी जांच ठीक से की जा सके और वो बच्चे को जन्म दे सके. हालांकि, अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने आरोपों से इनकार किया.
जख्मों पर नमक
पूरी दुनिया में सबसे अधिक मातृ मृत्यु दर तंजानिया में है. सरकार द्वारा 2016 में कराये गये जनसांख्यिकीय स्वास्थ्य सर्वेक्षण के मुताबिक हर 100,000 गर्भवती महिलाओँ में से 556 महिलाओं की मौत प्रसव के दौरान हो जाती है.
ऐसे हालात के लिए अस्पताल और मरीजों के बीच के खराब संबंध भी बहुत हद तक जिम्मेदार हैं. हालांकि कई अस्पतालों का दावा है कि अगर किसी मरीज को दिक्कत हुई तो वे "आधिकारिक माध्यमों" के जरिए शिकायत दर्ज कर सकते हैं.
एक सरकारी स्वास्थ्य विशेषज्ञ करीम मिजुनगुमुति का कहना है कि इसके लिए संवाद के खराब माध्यम जिम्मेदार हैं. उन्होंने कहा, "जब एक नर्स मरीजों के साथ खराब भाषा का इस्तेमाल करती है तो इससे मरीज के साथ संबंधों पर और नमक छिड़क जाता है."
क्या है नर्सों की समस्या
सरकारी अस्पतालों में काम कर रही नर्सें इस बात को कबूलती हैं कि उनके साथ काम करने वाले कुछ सदस्य बहुत लापरवाह या बहुत बुरे हैं. लेकिन इसके लिए वे उन्हें मिलने वाली कम तनख्वाह, काम करने का खराब माहौल को भी वजह मानती हैं.
कई सरकारी अस्पतालों में नर्सों की कमी है. ज्यादातर नर्सें लंबे घंटों की शिफ्ट करती हैं और उन्हें लगता है कि लोग उन्हें पर्याप्त सम्मान नहीं देते. ज्यादातर नर्सों को न कोई प्रमोशन मिलता है न ही कोई बोनस, जबकि कुछ नर्सें अपना काम बहुत ध्यान से और मेहनत से करती हैं.
एक और पीड़िता मागडलेना कालेवा कहती हैं कि रोज के चेकअप के दौरान एक नर्स ने उनसे कहा कि उन पर दया नहीं दिखायी जानी चाहिए क्योंकि वे अपनी दवाएं नहीं ले रही हैं. और उन जैसे लोगों को मरने के लिए छोड़ दिया जाना चाहिए. उन्होंने यह भी सुना कि कुछ महिलाएं जिन्हें जांच में यौन संबंधी बीमारियां निकलीं उन्हें नर्सिंग स्टाफ ने वैश्या कहा.
रुकना चाहिए दुर्व्यवहार
सरकारी अस्पताल में काम कर रही एक नर्स रेबेका न्योनी इन सारे आरोपों को नकारती हैं. वे कहती हैं कि "नर्सें भी इंसान हैं, उनमें भी भावनाएं हैं. हो सकता है कि नर्सों ने कभी सख्त रवैया अपनाया हो क्योंकि इलाज पूरा करने के लिए कई बार कठिन रवैया अपनाना होता है."
नर्सिंग सेवाओं की निदेशक एग्नेस मत्वा कहती हैं कि जरूरी है कि ऐसे मामलों में कार्रवाई हो लेकिन किसी भी नर्स को नौकरी से बाहर निकालने या उसे सजा देने से पहले उस मामले की सुनवाई किया जाना जरूरी है.
एसएस/आरपी (रॉयटर्स)