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मांग सही पर अनशन खत्म करें अन्ना हजारे: बीजेपी

८ अप्रैल २०११

भारत की मुख्य विपक्षी पार्टी बीजेपी यूं तो भ्रष्टाचार के विरोध में आमरण अनशन पर बैठे अन्ना हजारे के साथ है लेकिन चाहती है कि अनशन फौरन खत्म हो जाए. पार्टी का कहना है कि अन्ना हजारे की जिंदगी बेशकीमती है.

तस्वीर: picture alliance/dpa

जनलोकपाल बिल को कानून बनवाने के लिए सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे दिल्ली के जंतर मंतर पर भूख हड़ताल पर बैठे हैं. देशभर से उन्हें खासा समर्थन मिल रहा है. विपक्षी दलों ने भी उन्हें समर्थन दिया है. बीजेपी ने गुरुवार को कहा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग में वह उनके साथ है और उनके लड़ाई के गांधीवादी तरीके का भी समर्थन करती है.

जीवन की खातिर

लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराजा ने ट्विटर पर कहा, "अन्ना हजारे एक सम्मानित नेता हैं. हम उनकी लड़ाई में उनके साथ हैं. हम चाहते हैं कि भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए लाया जाने वाला बिल कठोर और प्रभावशाली होना चाहिए. लेकिन उनकी जिंदगी बेशकीमती है. हम उनसे अपील करते हैं कि अपना अनशन खत्म कर दें."

तस्वीर: picture alliance/dpa

स्वराज ने सुझाव दिया है कि इस मामले पर विचार के लिए सरकार को एक सर्वदलीय बैठक बुलानी चाहिए. बीजेपी प्रवक्ता प्रकाश जावड़ेकर ने कहा, "हम पहले ही कह चुके हैं कि हम अन्ना हजारे की मांग से सहमत हैं और उनके विरोध के गांधीवादी तरीके से भी."

सहमति तो नहीं

सूत्रों के मुताबिक बीजेपी भी जन लोकपाल बिल के उस स्वरूप से सहमत नहीं है जिसका मसौदा अन्ना हजारे ने पेश किया है. जब जावड़ेकर से पूछा गया कि क्या उनकी पार्टी जन लोकपाल बिल में अन्ना हजारे के दिए प्रावधानों से सहमत है, तो उन्होंने कहा, "लोकतंत्र में सबको अपनी राय रखने का अधिकार है. हम उनकी मांग की मुख्य भावना का समर्थन करते हैं. लेकिन हम उनके दिए सारे विकल्पों से सहमत नहीं हैं."

वामपंथी दलों ने भी अन्ना हजारे के आंदोलन का समर्थन किया है. उनका कहना है कि सरकार को लोकपाल बिल के नए मसौदे को तैयार करने के लिए सभी राजनीतिक दलों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और संस्थाओं की सलाह लेनी चाहिए.

मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी ने कहा, "यह बहुत जरूरी है कि सरकार फौरन एक प्रक्रिया शुरू करे जिसमें सभी राजनीतिक दलों, सामाजिक संस्थाओं और कार्यकर्ताओं की सलाह ली जाए. सरकार ने जो बिल का मसौदा पेश किया है वह अपर्याप्त है."

रिपोर्टः एजेंसियां/वी कुमार

संपादनः ईशा भाटिया

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