भारत में मां बाप बीमारी के समय लड़कों की तुलना में लड़कियों के इलाज की चिंता कम करते हैं. इसीलिए जन्म के बाद पहले महीने में मरने वाले शिशुओं में लड़कियों की तादाद ज्यादा है. यूएन की एक रिपोर्ट में यह बात कही गई है.
विज्ञापन
भारत की मुश्किल बनता बिगड़ता लिंगानुपात
लिंग परीक्षण पर सख्ती के बावजूद भारत में बच्चों में लड़कियों की संख्या घटती जा रही है. एक नजर बच्चों में लिंगानुपात से आधार पर सबसे पिछड़े राज्यों पर.
तस्वीर: AP
1. हरियाणा
वयस्कों में: 1,000 पुरुषों पर 879 महिलाएं, बच्चों में: 1,000 लड़कों पर 834 लड़कियां
तस्वीर: DW/J. Sehgal
2. पंजाब
वयस्कों में: 1,000 पुरुषों पर 895 महिलाएं, बच्चों में: 1,000 लड़कों पर 846 लड़कियां
तस्वीर: Getty Images/AFP/N. Nanu
3. जम्मू कश्मीर
वयस्कों में: 1,000 पुरुषों पर 889 महिलाएं, बच्चों में: 1,000 लड़कों पर 862 लड़कियां
तस्वीर: picture-alliance/dpa/PPI
4. दिल्ली
वयस्कों में: 1,000 पुरुषों पर 868 महिलाएं, बच्चों में: 1,000 लड़कों पर 871 लड़कियां
तस्वीर: M. Krishnan
5. चंडीगढ़
वयस्कों में: 1,000 पुरुषों पर 818 महिलाएं, बच्चों में: 1,000 लड़कों पर 880 लड़कियां
तस्वीर: Reuters
6. राजस्थान
वयस्कों में: 1,000 पुरुषों पर 928 महिलाएं, बच्चों में: 1,000 लड़कों पर 888 लड़कियां
तस्वीर: DW/J. Singh
7. गुजरात
वयस्कों में: 1,000 पुरुषों पर 919 महिलाएं, बच्चों में: 1,000 लड़कों पर 890 लड़कियां
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Panthaky
8. उत्तराखंड
वयस्कों में: 1,000 पुरुषों पर 963 महिलाएं, बच्चों में: 1,000 लड़कों पर 890 लड़कियां
तस्वीर: DW/Murali Krishnan
9. महाराष्ट्र
वयस्कों में: 1,000 पुरुषों पर 929 महिलाएं, बच्चों में: 1,000 लड़कों पर 894 लड़कियां
तस्वीर: picture-alliance/dpa/D. Solanki
10. उत्तर प्रदेश
वयस्कों में: 1,000 पुरुषों पर 912 महिलाएं, बच्चों में: 1,000 लड़कों पर 902 लड़कियां
तस्वीर: DW/S. Waheed
10 तस्वीरें1 | 10
दुनिया के किसी अन्य देश की तुलना करें तो भारत में सबसे ज्यादा नवजात बच्चों की मौत होती है. हर साल यहां 6 लाख से ज्यादा नवजात मर जाते हैं और पूरी दुनिया में मरने वाले शिशुओं का यह करीब एक चौथाई है. संयुक्त राष्ट्र की बाल संस्था यूनिसेफ की एक ताजा रिपोर्ट में यह बात सामने आई है.
यूनीसेफ का कहना है कि नवजात शिशुओं की मृत्यु दर लड़कों की तुलना में लड़कियों के लिए ज्यादा है. यहां तक कि पांच साल से कम उम्र में होने वाली बच्चों की मौत में भी लड़कियां ज्यादा है. हालांकि 1990 से 2015 के बीच इस उम्र के बच्चों की मौत की संख्या में 65 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है.
यूनीसेफ की भारत प्रतिनिधि यास्मीन अली हक ने ईमेल के जरिए भेजे एक बयान में कहा, "लड़कियों के पास जैविक रूप से मजबूत होने की श्रेष्ठता है लेकिन यह दुखद है कि वे सामाजिक रूप से बेहद असुरक्षित हैं. उनके साथ यह भेदभाव उनके पैदा होने से पहले ही शुरू हो जाता है."
लड़कियों के लिए सबसे अच्छे देश
'सेव द चिल्ड्रन' ने बाल विवाह, कम उम्र में मातृत्व, मां बनने के दौरान मृत्यु, महिला सांसदों और सेकंड्री स्कूल पास करने वाली लड़कियों कि संख्या के आधार पर देखा कि लड़कियों की जिंदगी सबसे अच्छी कहां है. ये हैं बेस्ट देश...
तस्वीर: Colourbox
नंबर 1, स्वीडन
तस्वीर: Getty Images/D. Ramos
नंबर 2, फिनलैंड
तस्वीर: picture alliance/dpa
नंबर 3, नॉर्वे
तस्वीर: Getty Images/AFP/F. Fife
नंबर 4, नीदरलैंड्स
तस्वीर: Getty Images/Afp/Jeroen Jumelet
नंबर 5, बेल्जियम
तस्वीर: AP
नंबर 6, डेनमार्क
तस्वीर: AP
नंबर 7, स्लोवेनिया
तस्वीर: Reuters/L. Foeger
नंबर 8, पुर्तगाल
तस्वीर: Reuters/M. Dalder
नंबर 9, स्विट्जरलैंड
तस्वीर: AP
नंबर 10, इटली
तस्वीर: Getty Images/L. Preiss
नंबर 12, जर्मनी
तस्वीर: Reuters/M. Dalder
नंबर 12, ब्रिटेन
तस्वीर: picture alliance / empics
नंबर 32, अमेरिका
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Rain
नंबर 88, पाकिस्तान
तस्वीर: Mirza Tours
नंबर 90, भारत
तस्वीर: Getty Images/AFP/N. Seelam
15 तस्वीरें1 | 15
भारत में नवजात बच्चों को मुफ्त इलाज दिया जाता है और इसके लिए देश भर में 700 से ज्यादा सरकारी अस्पताल हैं. इनमें सिर्फ बच्चों का ही इलाज होता है. हालांकि 2017 में यूनिसेफ के जुटाए आंकड़ों के मुताबिक यहां भर्ती कराए जाने वाले 60 फीसदी से ज्यादा नवजात लड़के होते हैं. यूनिसेफ के स्वास्थ्य विशेषज्ञ गगन गुप्ता ने कहा, "इससे पता चलता है कि लड़कियां किन सामाजिक बेड़ियों का सामना कर रही हैं. समाज में उनकी कम अहमियत है." गगन गुप्ता ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से बातचीत में कहा कि मां बाप अपनी बेटियों को इलाज के लिए नहीं ले जाते क्योंकि वे अपना काम नहीं छोड़ना चाहते या फिर अस्पताल तक जाने के लिए यात्रा पर खर्च नहीं करना चाहते. हालांकि इस तरह का भेदभाव गैरकानूनी है.
भारत में बहुत से लोग लड़कियों को एक बोझ के रूप में भी देखते हैं क्योंकि परिवारों को उनकी शादी के लिए दहेज जुटाना पड़ता है.
भारत की मुश्किल बनता बिगड़ता लिंगानुपात
लिंग परीक्षण पर सख्ती के बावजूद भारत में बच्चों में लड़कियों की संख्या घटती जा रही है. एक नजर बच्चों में लिंगानुपात से आधार पर सबसे पिछड़े राज्यों पर.
तस्वीर: AP
1. हरियाणा
वयस्कों में: 1,000 पुरुषों पर 879 महिलाएं, बच्चों में: 1,000 लड़कों पर 834 लड़कियां
तस्वीर: DW/J. Sehgal
2. पंजाब
वयस्कों में: 1,000 पुरुषों पर 895 महिलाएं, बच्चों में: 1,000 लड़कों पर 846 लड़कियां
तस्वीर: Getty Images/AFP/N. Nanu
3. जम्मू कश्मीर
वयस्कों में: 1,000 पुरुषों पर 889 महिलाएं, बच्चों में: 1,000 लड़कों पर 862 लड़कियां
तस्वीर: picture-alliance/dpa/PPI
4. दिल्ली
वयस्कों में: 1,000 पुरुषों पर 868 महिलाएं, बच्चों में: 1,000 लड़कों पर 871 लड़कियां
तस्वीर: M. Krishnan
5. चंडीगढ़
वयस्कों में: 1,000 पुरुषों पर 818 महिलाएं, बच्चों में: 1,000 लड़कों पर 880 लड़कियां
तस्वीर: Reuters
6. राजस्थान
वयस्कों में: 1,000 पुरुषों पर 928 महिलाएं, बच्चों में: 1,000 लड़कों पर 888 लड़कियां
तस्वीर: DW/J. Singh
7. गुजरात
वयस्कों में: 1,000 पुरुषों पर 919 महिलाएं, बच्चों में: 1,000 लड़कों पर 890 लड़कियां
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Panthaky
8. उत्तराखंड
वयस्कों में: 1,000 पुरुषों पर 963 महिलाएं, बच्चों में: 1,000 लड़कों पर 890 लड़कियां
तस्वीर: DW/Murali Krishnan
9. महाराष्ट्र
वयस्कों में: 1,000 पुरुषों पर 929 महिलाएं, बच्चों में: 1,000 लड़कों पर 894 लड़कियां
तस्वीर: picture-alliance/dpa/D. Solanki
10. उत्तर प्रदेश
वयस्कों में: 1,000 पुरुषों पर 912 महिलाएं, बच्चों में: 1,000 लड़कों पर 902 लड़कियां
तस्वीर: DW/S. Waheed
10 तस्वीरें1 | 10
लड़कों की चाहत में लिंग निर्धारण के बाद गर्भपात की संख्या भी बहुत है जिसकी वजह से देश में लिंगानुपात बिगड़ गया है. भारत सरकार ने लड़कियों की सुरक्षा और उन्हें पढ़ाने के लिए अभियान चलाया है और उनके कल्याण के लिए लड़कियों के मां बाप को आर्थिक मदद भी दी जा रही है. बावजूद इसके स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि स्थिति में ज्यादा सुधार नहीं है. नवजात लड़कियों की मौत सबसे ज्यादा राजस्थान में होती है. राज्य में सार्वजनिक स्वास्थ्य के विशेषज्ञ नरेंद्र गुप्ता कहते हैं, "हमने कुपोषण केंद्रों में भी देखा है कि लड़कियों की तुलना में लड़के ही ज्यादा लाए जाते हैं."