यूरोपीय संघ के विदेश और रक्षा मंत्रियों ने भूमध्य सागर में शरणार्थियों की मानव तस्करी के नेटवर्क को नष्ट करने के लिए एक नौसैनिक मिशन बनाने का निर्णय लिया है. इस मिशन को अब यूएन सुरक्षा परिषद के समर्थन की दरकार है.
विज्ञापन
भूमध्य सागर में मानव तस्करों पर अब ईयू सैनिक कार्यवाही करने की सोच रहा है. समुद्र में खोती हजारों जानों को बचाने के लिए यूरोपीय संघ के देशों ने एक नौसैनिक मिशन स्थापित करने का फैसला किया है. इस बारे में मंत्रियों ने एक बयान जारी कर बताया कि इस मिशन का कोड नाम होगा यूनावफोरमेड, जिसका लक्ष्य होगा "भूमध्य सागर में मानव तस्करों और अपहरणकर्ताओं का बिजनेस मॉडल तबाह करना." मिशन का मुख्यालय रोम में बनाया जाएगा, जिसका नियंत्रण रियर एडमिरल एनरिको क्रिडेनडिनो के हाथ में होगा. इसे स्थापित करने में लगने वाले 2 महीने और फिर पहले 12 महीनों तक इसे चलाने के पूरे ऑपरेशन का खर्च 1.18 करोड़ यूरो होने का अनुमान है.
इटली की रक्षा मंत्री रॉबर्टा पिनोटी ने इस मिशन का स्वागत करते हुए कहा कि इस ऑपरेशन में हम इस बात को मान कर चल रहे हैं कि "भूमध्य सागर केवल इटली ही नहीं पूरे यूरोप की सरहद है." कई चरणों में लागू किए जाने वाले इस मिशन की शुरुआत तस्करों की कार्यप्रणाली के बारे में जानकारियां इकट्ठी करना होगा. इसके बाद उन्हें रोकने और शरणार्थियों की तस्करी के प्रयास विफल करने के लिए कदम उठाए जाएंगे. जर्मनी की रक्षा मंत्री उर्सुला फॉन डेयर लाएन ने चेताया है कि "ऐसे कई खुले प्रश्न हैं, कई कानूनी प्रश्न हैं, कई व्यावहारिक और तकनीकी प्रश्न हैं, जिनका उत्तर पहले ढूंढना होगा."
ईयू की विदेश नीति प्रमुख फेडेरिका मोगेरिनी ने उम्मीद जताई है कि 22 जून को मिलकर ब्लॉक में शामिल वरिष्ठ उच्चायुक्त इस नेवल मिशन को लॉन्च कर पाएंगे. हालांकि अब यह लॉन्च इस बात पर निर्भर करता है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से तब तक इस पर समर्थन मिल पाता है या नहीं. मोगेरिनी ने कहा, "साफ है कि इसे लेकर काफी जल्दी है," उन्होंने आगे बताया, "जून गर्मी की शुरुआत का महीना है...और गर्मियां आते ही और ज्यादा लोग सफर करने लगते हैं."
ईयू यह भी चाहता है कि इस मिशन को लीबिया का समर्थन प्राप्त हो. इस उत्तर अफ्रीकी देश में सत्ता के लिए दो पक्षों के बीच राजनैतिक और हिंसक संघर्ष चल रहा है. इसी कारण कई लोग यहां से पलायन कर किसी दूसरे देश में शरण लेने की कोशिश कर रहे हैं, और तस्करों के हाथ पड़ जा रहे हैं. लीबिया की अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त सरकार के प्रवक्ता ने बताया, "सरकार ऐसे किसी भी निर्णय को नहीं मानती और लीबिया की सीमाओं या उसकी स्वायत्तता के किसी भी तरह के उल्लंघन को अस्वीकार करती है."
इस बीच ईयू के सम्मेलन में शामिल होने वाले नाटो महासचिव येंस स्टोल्टेनबर्ग ने कहा कि सैनिक सहबंध "अनुरोध पर मदद के लिए तैयार रहेगा." सैनिक हस्तक्षेप को लेकर कुछ आशंकाएं बनी हुई हैं. नाटो ने 2011 लीबिया में विवादित बमबारी अभियान चलाया था जिसमें वहां लंबे समय से शासन कर रहे मुअम्मर गद्दाफी को सत्ता से हटा दिया गया था.
आरआर/एमजे (डीपीए)
रोहिंग्या: समुद्र पार मायूस उड़ान
घरबार छोड़कर भाग रहे म्यांमार के रोहिंग्या और बांग्लादेशियों का दक्षिणपूर्वी देशों के तटीय क्षेत्र में डूबना जारी है. इन्हें समुद्री थपेड़ों में छोड़ने वाले मानव तस्करों से बचाने की अंतरराष्ट्रीय समुदाय कर रहा है अपील.
तस्वीर: Reuters/R: Bintang
आचेह में फंसे
ये बच्चे किसी तरह जिंदा बचाए गए. कई दिनों तक बिना भोजन के समुद्र में फंसे रहने के बाद 10 मई को करीब 600 लोगों को चार नावों पर सवार कर इंडोनेशियाई प्रांत आचेह पहुंचाया गया. लगभग इसी समय 1,000 से भी ज्यादा लोगों वाली तीन नावें उत्तरी मलेशिया के लंकावी रिजॉर्ट द्वीप पर पहुंची.
तस्वीर: Reuters/R. Bintang
थकान से टूटे
भूख, भीड़ और बीमारी से पीड़ित शरणार्थी अपनी लंबी कठोर यात्रा से थकने के बाद आराम कर रहे हैं. मानव तस्करी करने वाले इन यात्रियों के जहाज पर छोड़कर भाग गए. संयुक्त राष्ट्र एजेंसी का मानना है कि राज्यविहीन रोहिंग्या लोग दुनिया मे सबसे ज्यादा सताए गए अल्पसंख्यकों में से एक हैं.
तस्वीर: Reuters/R: Bintang
कहीं के नहीं
म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों की करीब 800,000 की आबादी को बांग्लादेश से आए अवैध प्रवासी माना जाता है. कई पीढ़ियों से वहां रहने के बावजूद उन्हें अब भी इस बौद्ध-प्रधान देश में भेदभाव और अत्याचार झेलने पड़ते हैं. यही कारण है कि म्यांमार के रोहिंग्या किसी भी तरह मलेशिया या इंडोनेशिया जैसे मुस्लिम-प्रधान देश पहुंचना चाहते हैं.
तस्वीर: Reuters/R: Bintang
खतरनाक यात्रा
हर साल हजारों रोहिंग्या समुद्र के रास्ते बेहद कठिन परिस्थितियों में इस लंबी यात्रा की शुरुआत करते हैं. मानव तस्करी करने वाले इन्हें बेहद खराब नावों में ठूस ठूस कर मलेशिया और इंडोनेशिया जैसे देशों में ले जाने की फीस लेते हैं. यूएन का अनुमान है कि इस साल पहली तिमाही में ही ऐसे करीब 25,000 लोगों ने मानव तस्करों की नावों से सफर किया.
तस्वीर: Asiapics
आधुनिक गुलामों का व्यापार
म्यांमार में भेदभाव से बचकर निकलने के लिए रोहिंग्या लोग आमतौर पर किसी एजेंट से संपर्क करते हैं. वह उन्हें बताता है कि लगभर 200 डॉलर की कीमत चुकाने पर उन्हें सीधे मलेशिया ले जाया जाएगा. पूरी यात्रा में उन्हें खाने, पानी, विश्राम की कोई जगह नहीं मिलती बल्कि कई बार तो पिटाई की जा जाती है हत्या भी.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/S. Yulinnas
थाईलैंड का डर
कई रोहिंग्या लोग थाईलैंड पार करने के लिए तस्करों की सवारी लेने को मजबूर होते हैं. कई बार स्मगलर इन्हें बंदी बना लेते हैं और जंगल कैंपों में तब तक बंधक रखते हैं जब तक उनके घर वालों से फिरौती ना वसूल लें. थाई सरकार को हाल में ऐसी कई सामूहिक कब्रें मिलीं (तस्वीर) जिसके बाद से सरकार ने मानव तस्करों पर और कड़ा रवैया अपनाया है.
तस्वीर: Reuters/D. Sagolj
प्रवासियों की बाढ़
पूरा दक्षिणपूर्व एशियाई क्षेत्र प्रवासियों की बड़ी तादाद झेल रहा है. लाखों लोग कई तरह की समस्याओं के शिकार होकर दूसरी जगहों का रुख कर रहे है. हाल के आंकड़े दिखाते हैं कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र में तस्करी के शिकार हुए लोगों की संख्या सवा करोड़ के पास पहुंच गई है.