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मानसिक अस्पताल में महिलाओं को जोखिम

३ दिसम्बर २०१४

भारत में कम बौद्धिक क्षमता वाली महिलाओं को कई बार मानसिक अस्पताल में धकेल दिया जाता है, जहां उन्हें बेहद खराब हालात में रहना पड़ता है. उनके साथ यौन हिंसा और शारीरिक उत्पीड़न की भी रिपोर्टें आती हैं.

तस्वीर: The Week/Arvind Jain

ह्यूमन राइट्स वॉच संगठन ने दिसंबर 2012 से नवंबर 2014 तक भारत के छह शहरों का सर्वेक्षण करने के बाद अपनी रिपोर्ट जारी की है. इसके लिए ऐसी 200 लड़कियों और महिलाओं से इंटरव्यू किया गया है, जिनकी मनोवैज्ञानिक और बौद्धिक क्षमता औसत से कम है. उनके परिवार वालों, अभिभावक, मानसिक स्वास्थ्य कर्मचारी, पुलिस और सरकारी अधिकारियों से भी बात की गई है.

भारत में शिक्षा और जागरूकता की कमी की वजह से ऐसी महिलाओं के साथ ज्यादा भेदभाव होता है और समाज आम तौर पर खामोश रहता है. आज भी मानसिक अस्पतालों को पागलखाना कहा जाता है. समाज के समर्थन के अभाव में परिवार वाले अवसाद और बाइपोलर डिसॉर्डर के मामलों में इन लोगों को मानसिक अस्पताल भेज देते हैं. महिलाओं और पुरुषों दोनों को ही यातना झेलनी पड़ती है लेकिन महिलाओं की स्थिति खास तौर पर खराब है. ह्यूमन राइट्स वॉच की रिसर्चर कृति शर्मा का कहना है, "कम बौद्धिक क्षमता वाली लड़कियों और महिलाओं को परिवार वाले ऐसी जगहों पर धकेल देते हैं. कई बार पुलिस भी ऐसा करती है क्योंकि सरकार इन्हें संरक्षण और सेवा देने में नाकाम रही है."

पुरुषों की हालत भी बहुत अच्छी नहींतस्वीर: The Week/Gunjan Sharma

शर्मा का कहना है, "और एक बार यहां बंद होने के बाद उनके परिवार वाले उन्हें अलग थलग छोड़ देते हैं. उन्हें डर और शोषण के बीच रहना पड़ता है, जहां कोई उम्मीद नहीं बची होती है."

जानवरों से बुरा बर्ताव

रिपोर्ट का नाम "जानवरों से भी बुरा बर्तावः कम मनोवैज्ञानिक और बौद्धिक क्षमता वाली महिलाओं के साथ भारत के संस्थानों में शोषण" दिया गया है. इसमें बताया गया है कि किस तरह मर्जी के खिलाफ लोगों को वहां भर्ती किया जाता है. रिपोर्ट में संस्थानों की स्थिति की भी समीक्षा है कि किस तरह वहां जरूरत से ज्यादा लोग हैं और उन्हें बुरे स्वास्थ्य हाल में रहना पड़ता है. इसके अलावा जबरदस्ती इलाज और महिलाओं तथा लड़कियों के साथ शोषण का भी जिक्र है.

भारत में इस संबंध में सरकारी आंकड़े पक्के नहीं हैं. हालिया जनगणना यानि 2011 के आंकड़ों के मुताबिक इनमें 15 लाख लोगों की बौद्धिक क्षमता कमजोर है, जबकि सिर्फ सवा सात लाख लोग शिजोफ्रेनिया या बाइपोलर डिसॉर्डर से प्रभावित हैं.

हालांकि अंतरराष्ट्रीय अनुमान इससे कहीं ज्यादा है. विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि दुनिया भर की आबादी का 15 फीसदी ऐसी कमजोरियों से ग्रस्त है. भारत में बजट के एक फीसदी से भी कम हिस्सा मानसिक स्वास्थ्य के लिए रखा गया है.

एजेए/ओएसजे (एपी)

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