राजस्थान के अस्पतालों में जारी है नवजातों की मौत का सिलसिला
क्रिस्टीने लेनन
१ जनवरी २०२०
भारत में हर साल हजारों बच्चे अस्पताल पहुंचने के पहले ही दम तोड़ देते हैं, लेकिन हर साल सैकड़ों बच्चे ऐसे भी होते हैं जिनकी मौत अस्पताल में होती है. कोटा के एक अस्पताल में पिछले एक महीने में 91 बच्चों की जान जा चुकी है.
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एक अनुमान के मुताबिक 2020 के पहले दिन यानी 1 जनवरी को देश में 67 हजार से अधिक बच्चों का जन्म हुआ है. इसमें से सैकड़ों बच्चे अपना पांचवां जन्मदिन मनाने के पहले ही दम तोड़ देंगे. एक दिन में सबसे ज्यादा बच्चे पैदा होने के मामले में भारत दुनिया में सबसे आगे है. वैसे, मरने वाला हर छठा बच्चा भी भारत का होता है. यूनिसेफ के अनुसार हर 53 सेकेंड में एक नवजात बच्चे की मौत हो जाती है. इसकी एक बानगी राजस्थान के कोटा में देखने को मिली हैं जहां पिछले एक महीने में 91 बच्चों की मौत अस्पताल में हुई है. इतना बड़ा आंकड़ा होने के बावजूद यह सच है कि राज्य में ऐसी मौतें कोई नई बात नहीं है.
अस्पताल खुद ही बीमार
अस्पताल में शिशुओं की मौत की मुख्य वजह सुविधाओं का अभाव है. कोटा का जेके लोन अस्पताल इससे अलग नहीं है. आसपास के क्षेत्र का प्रमुख अस्पताल होने के बावजूद वैसी सुविधाएं नहीं है जो भर्ती होने वाले सभी शिशुओं को दी जा सके. इसी के चलते यहां पिछले कई साल से इस अस्पताल में शिशुओं की मौत का सिलसिला जारी है. पिछले 3 साल में ही इस अस्पताल में 2,300 से अधिक नवजात शिशु मौत का शिकार हो गए. प्रशासन अपने बचाव में इन मौतों को सामान्य बताता है. अस्पताल प्रशासन का कहना है कि अस्पताल में हर साल 15 हजार डिलीवरी होती है, ऐसे में इतने बच्चों की मौत अधिक नहीं मानी जा सकती.
अस्पताल के शिशु रोग विभाग से जुड़े डॉ. अमृत लाल बैरवा कहते हैं कि इस अस्पताल में न केवल पूरे संभाग बल्कि मध्यप्रदेश के बच्चे भी आते हैं. अधिकतर गंभीर शिशुओं को यहीं लाया जाता है, इसके बाद भी उनमें से अधिकतर को बचा लिया जाता है. उन्होंने बताया कि अस्पताल का सेंट्रलाइज्ड ऑक्सीजन सिस्टम काम नहीं कर रहा है.जिससे इलाज में दिक्कतें आती हैं. राज्य के स्वास्थ्य मंत्री रघु शर्मा का कहना है कि इसकी व्यवस्था के लिए काम जारी है. अस्पताल में क्षमता से अधिक बच्चों के भर्ती होने से भी परेशानी होती है. एक बेड पर दो-तीन बच्चों को रखे जाने से संक्रमण फैलने का खतरा रहता है. हालांकि रघु शर्मा इसके बचाव में तर्क देते हुए कहते हैं कि कोई बच्चा गंभीर स्थिति में अस्पताल में आ जाता है तो उसे लौटाया नहीं जा सकता और उपलब्ध संसाधनों में ही उसका इलाज करना पड़ता है.
बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं की कमी
संयुक्त राष्ट्र के शिशु मृत्युदर आंकलन के लिए बाल मृत्युदर अनुमान एजेंसी यानी यूएनआईजीएमई की एक रिपोर्ट बताती है कि भारत में औसतन हर दो मिनट में तीन नवजातों की मौत हो जाती है. इसका कारण पानी, स्वच्छता, उचित पोषाहार या बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं की कमी है. युनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार अगर बच्चा पैदा होने के बाद एक महीने तक जीवित रहता है तो 5 साल की आयु तक पहुंचने से पहले निमोनिया और डायरिया उसके जीवन पर खतरा पैदा करते हैं. डॉ रमा सक्सेना का कहना है कि छोटे बच्चों में निमोनिया की वजहें कुपोषण, जन्म के समय कम वजन, उचित स्तनपान न मिलना है. निमोनिया के कारण होने वाली मौत और गरीबी के बीच भी मजबूत संबंध है. स्वच्छ पेयजल का अभाव, पर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल की कमी और पोषण की कमी व भीतरी वायु प्रदूषण निमोनिया के खतरे को बढ़ा देता है.
हालात तो सुधरे लेकिन नाकाफी हैं
शिशु स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भारत प्रगति कर रहा है लेकिन यह प्रगति इतनी नहीं कि हजारों बच्चों को मौत से बचाया जा सके. उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार देश भर में 2016 में साढ़े आठ लाख से अधिक नवजात बच्चों की मौत हो गयी थी, जो 2017 में घटकर लगभग आठ लाख रह गयी. यह आंकड़ा पिछले पांच वर्ष में सबसे कम है. लेकिन दुनिया के किसी भी देश से अधिक है.
यूएनआईजीएमई रिपोर्ट के अनुसार, पिछले पांच वर्षों में भारत में शिशु जन्मदर और मृत्युदर के बीच अंतर लगभग खत्म हो गया है. 1990 में भारत की शिशु मृत्यु दर प्रति 1000 पर 129 थी. 2005 में यह घटकर 58 रह गयी. 2016 में 44 और 2017 में थोड़ा और घटकर 39 ही रह गयी है. अगर इसमें उल्लेखनीय सुधार करना है तो डॉक्टरों की कमी को दूर करने साथ ही मातृत्व स्वास्थ्य पर भी ध्यान देना होगा.
जीवन का पहला साल बच्चे के विकास के लिए बेहद अहम होता है. बच्चे अपने आस पास की चीजों को समझना और पहले शब्द बोलना सीखते हैं. इस दौरान माता पिता कई सवालों से गुजरते हैं. यदि आप भी उनमें से हैं, तो इन टिप्स का फायदा उठाएं.
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मालिश करें
भारत में बच्चों की मालिश का चलन नया नहीं है. लेकिन माता पिता अक्सर इस परेशानी से गुजरते हैं कि बच्चे की मालिश कब और कैसे की जाए. शिशु को दूध पिलाने के बाद या उससे पहले मालिश ना करें. घी या बादाम तेल को हल्के हाथ से बच्चे के पूरे शरीर पर मलें. नहलाने से पहले मालिश करना अच्छा होता है.
ध्यान से नहलाएं
नवजात शिशुओं की त्वचा बेहद नाजुक होती है. बहुत ज्यादा देर तक पानी में रहने से वह सूख सकती है. ध्यान रखें कि पानी ज्यादा गर्म ना हो. शुरुआती तीन हफ्ते में गीले कपड़े से बदन पोंछना काफी है. अगर आप बेबी शैंपू का इस्तेमाल कर रहे हैं, तो एक हाथ से बच्चे की आंखों को ढक लें. नहाने के बाद बच्चे बेहतर नींद सो पाते हैं.
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आराम से सुलाएं
ब्रिटेन की शिशु रोग विशेषज्ञ डॉन केली बताती हैं कि माता पिता बच्चों को सुलाने से पहले उन्हें कपड़ों की कई परतें पहना देते हैं, "खास कर रात को, वे उन्हें बेबी बैग में भी डाल देते हैं और उसके ऊपर से कंबल भी ओढ़ा देते हैं." केली बताती हैं कि इस सब की कोई जरूरत नहीं. बहुत ज्यादा गर्मी बच्चे के लिए नुकसानदेह साबित हो सकती है.
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रोने से घबराएं नहीं
बच्चे रोते हैं और इसमें परेशान होने वाली कोई बात नहीं है. जच्चा बच्चा सेहत पर किताब लिख चुकी अमेरिका की जेनिफर वॉकर कहती हैं, "बच्चे रोने के लिए प्रोग्राम्ड होते हैं. उनके रोने का मतलब यह नहीं कि आप कुछ गलत कर रहे हैं, बल्कि यह उनका आपसे बात करने का तरीका है." मुंह में पैसिफायर लगा हो, तो बच्चे कम रोते हैं.
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दांतों की देखभाल
न्यूयॉर्क स्थित डेंटिस्ट सॉल प्रेसनर कहती हैं कि कई बार मां बाप बहुत देर में बच्चों के हाथ में ब्रश थमाते हैं. दूध के दांत बहुत नाजुक होते हैं और इन्हें बहुत ज्यादा देखभाल की जरूरत होती है. प्रेसनर का कहना है कि जब दांत आने लगें, तो बच्चे को ठीक सोने से पहले दूध पिलाना बंद कर दें. अगर ब्रश कराना शुरू नहीं किया है, तो दूध पिलाने के बाद गीले कपड़े से दांत साफ करें.
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कुदरत के साथ
बच्चों को जितना हो सके कुदरत के साथ जोड़ें. आज के हाई टेक जमाने में माता पिता बच्चों को मोबाइल, टेबलेट और टीवी के साथ ही बढ़ा करने लगे हैं. अमेरिका की अकेडमी ऑफ पीडिएट्रिक्स का कहना है कि कम से कम दो साल की उम्र तक बच्चों को स्क्रीन से दूर रखना चाहिए.
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रंगों के बीच
बच्चों के आसपास रंग होना अच्छा है. आठ से नौ महीने के होने पर बच्चे अलग अलग तरह के रंग, सुगंध, शोर और स्पर्श को पहचानने लगते हैं. यही उन्हें सिखाने का सही समय भी है.
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खेल खेल में
बच्चे खेल खेल में नई चीजें सीखते हैं. सिर्फ वस्तुओं को पहचानना ही नहीं, बल्कि खुशी और गुस्से जैसे भावों को भी समझने लगते हैं. बच्चों से बात करते हुए मुस्कुराएं और उनकी आंखों से संपर्क बना कर रखें. याद रखें कि बच्चे बोल नहीं सकते, इसलिए आंखों के जरिए संवाद करते हैं.
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मम्मी के साथ पढ़ाई
बच्चे के साथ बातें करें. जब वह कोई आवाजें निकाले, तो उन्हें दोहराएं और उसके साथ कुछ शब्द जोड़ दें. इस तरह बच्चे का जल्द ही भाषा के साथ जुड़ाव बन सकेगा. किताबों से पढ़ कर कहानियां सुनाने के लिए बच्चे के स्कूल पहुंचने का इंतजार ना करें. छोटे बच्चे इन कहानियों के जरिए नई आवाजें और शब्द सीखते हैं.
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पापा के साथ ब्रश
बच्चों को नई नई चीजें सिखाने का सबसे अच्छा तरीका है उनके साथ वही चीज करना. बच्चे देख कर वही चीज दोहराते हैं. इसी तरह से आप उन्हें कसरत करना भी सिखा सकते हैं. शुरुआत में ध्यान लगने में वक्त लग सकता है लेकिन बाद में बच्चे नई चीजें करने में आनंद लेने लगते हैं.
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पहले कदम
जब तक बच्चे चलना नहीं सीख लेते उन्हें जूतों की जरूरत नहीं होती. इन दिनों फैशन के चलते माता पिता नवजात शिशुओं के लिए भी जूते खरीदने लगे हैं. शिशुओं के लिए मोजे ही काफी हैं. ये उनके लिए आरामदेह भी होते हैं.
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पहला जन्मदिन
बच्चे वयस्कों की तरह पार्टी नहीं कर सकते. वे जल्दी थक जाते हैं और भीड़ से ऊब भी जाते हैं. इसे ध्यान में रखते हुए अपने बच्चे की पहली बर्थडे पार्टी को एक से दो घंटे तक ही सीमित रखें ताकि पार्टी बच्चे की मुस्कराहट का कारण बने, आंसुओं का नहीं.