अमेरिकी सेना ने आतंकी गुट इस्लामिक स्टेट के तथाकथित 'युद्ध मंत्री' के मारे जाने की पुष्टि की है. सुरक्षा विशेषज्ञ बताते हैं कि इससे पूर्व सोवियत गणराज्यों से आईएस में लोगों को भर्ती करने की कोशिशों को भारी धक्का लगेगा.
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इराक के शिरकत जिले में मारा गया आईएस आतंकी अबु ओमर अल-शिशानी इस्लामिक स्टेट लीडर अबु बकर अल-बगदादी का करीबी सैन्य सलाहकार मूलत: चेचन्या का था. मार्च में ही पेंटागन ने पूर्वी सारिया में अपने हवाई हमलों में शिशानी को निशाना बनाने की सूचना दी थी, जिसके मारे जाने की अब पुष्टि हो गई है.
इराकी सेना को आईएस के मुद्दे पर सलाह देने वाले विशेषज्ञ एफएम हिशम अल-हाशिमी ने बताया कि शिशानी मार्च के हमले में घायल हुआ था और तबसे शिरकत के एक अस्पताल में उसका इलाज चल रहा था. यह इलाका राजधानी बगदाद से करीब 250 किलोमीटर दूर उत्तर में स्थित है और आईएस के कब्जे में है. अब माना जा रहा है कि शिशानी की मौत इसी हफ्ते पास के एक गांव में अमेरिकी सेना के हवाई हमले की जद में आने से हुई.
वहीं कुछ विश्लेषक ये मानते हैं कि शिशानी मार्च में ही मारा गया था लेकिन आतंकी संगठन उसकी जगह किसी को लाए जाने तक यह बात छुपाना चाहता था. अब तक इस्लामिक स्टेट की ओर से उसकी जगह लेने वाले के नाम का एलान नहीं हुआ है. शिशानी ने आईएस में कई जिम्मेदारियां संभाली हुई थीं और उत्तरी कौकेशस इलाके और सेंट्रल एशिया से ज्यादातर मुस्लिम युवाओं को आईएस में भर्ती करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा था. हाशिमी कहते हैं, "आईएस का बड़ा नुकसान हुआ है. उसमें चेचन्या, कौकेशस और अजरबेजान जैसे पूर्व सोवियत गणराज्यों से सलाफियों को लुभाकार आईएस में ले आने का करिज्मा था."
देखिए कहां से आते हैं आईएस आतंकी
एशियाई देशों से आईएस में जाते जिहादी
ताजा अनुमानों के अनुसार तथाकथित इस्लामिक स्टेट की ओर से लड़ने वाले उग्रवादियों में से 1,000 के करीब एशियाई मूल के लड़ाके हैं. देखें किन एशियाई देशों से जा रहे हैं सबसे ज्यादा लड़ाके.
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चीन
चीन में सार्वजनिक व्यवस्था के लिए जिम्मेदार मंत्री मेंग होंग्वाई ने बताया है कि कोई 300 के लगभग चीनी लोग आईएस के लिए लड़ने पहुंचे हैं. मुसलमानों, उइघूर समेत कई अल्पसंख्यक समुदायों के लोग मलेशिया के रास्ते सीरिया गए हैं. मेंग ने कहा, "वे मलेशिया को टर्मिनल की तरह इस्तेमाल करते हैं."
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इंडोनेशिया
इंडोनेशिया के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2014 के अंत तक 60 इंडोनेशियाई नागरिक कथित रूप से आईएस में शामिल होने के लिए सीरिया चले गए थे. हाल ही में तुर्की में एक टुअर के दौरान 16 इंडोनेशियाई लोग गायब हो गए. माना जा रहा है कि वे तुर्की के रास्ते सीरिया जाने के लिए खुद ही टुअर समूह से अलग हो गए.
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पाकिस्तान
एशियाई देशों में से आईएस में शामिल होने वाले सबसे ज्यादा लोग पाकिस्तान से हैं. आईएस इन्हें पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बॉर्डर के पास के पिछड़े इलाकों से लाता है. इनमें वे प्रशिक्षित लोग भी शामिल हैं जो पहले तालिबान से जुड़े थे.
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अफगानिस्तान
अमेरिकी सैन्य रिपोर्ट के मुताबिक अबूबकर अल बगदादी के नेतृत्व में आईएस समूह अफगानिस्तान से लड़ाकों को अपने साथ शामिल कर रहा है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2014 के अंत तक अफगानिस्तान से 23 लोग आईएस में शामिल होने के लिए सीरिया गए.
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1986 में तत्कालीन सोवियत संघ के जॉर्जिया में जन्मे शिशानी ने चेचन विद्रोही के रूप में रूसी सेना के खिलाफ भी लड़ाई की थी. और 2006 में स्वतंत्र हो चुके जॉर्जिया की सेना में शामिल हो गया. वह सेना की पृष्ठभूमि से आने वाले कुछेक इस्लामिक आतंकियों में शामिल था. उसके कई सौ लड़ाके पूर्व सोवियत गणराज्यों से आए थे. अब उसकी जगह लेने के लिए आईएस शिशानी के ही जैसी चेचेन एथनिक पृष्ठभूमि वाले लड़ाके की तलाश में हैं.
इस्लामिक स्टेट के कब्जे में आ चुके कई इलाकों में कई बार रोड साइन तीन भाषाओं में लिखे दिखते हैं- अरबी, अंग्रेजी और रूसी. इससे भी आईएस में शामिल रूसी भाषी लड़ाकों के महत्व का अंदाजा लगाया जा सकता है. रूस के सरकारी आंकड़ों के मुताबित मध्य पूर्व में करीब 10,000 पूर्व सोवियत देशों के लड़ाके आईएस की ओर से लड़ रहे हैं.
उधर पाकिस्तान के पेशावर में दिसंबर 2014 में एक स्कूल को निशाना बनाने वाले तालिबानी आतंकी के अफगानिस्तान में हुए अमेरिकी ड्रोन हमले में मारे जाने की भी खबर है. पेंटागन के प्रेस सचिव पीटर कुक ने एक बयान जारी कर बताया कि आतंकी उमर नराई उर्फ उमर खलीफा उर्फ खालिद खुरासानी को नंगरहार प्रांत में संयुक्त सेना हमले में मार गिराया गया. पाकिस्तानी सेना ने भी नराई के मारे जाने की पुष्टि की है. पेशावर हमले में 150 लोग मारे गए थे, जिनमें से ज्यादातर बच्चे थे.
पेशावर का सिसकता स्कूल
पाकिस्तान के पेशावर शहर में जिस स्कूल पर मंगलवार को तालिबान ने आतंकवादी हमला किया था, बुधवार को उसकी शक्ल किसी भूतहे घर की तरह लग रही थी. रिपोर्टरों ने स्कूल जाकर वहां का जायजा लिया.
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प्रवेश पर सुरक्षा
पाकिस्तानी सेना का एक जवान स्कूल के मुख्य द्वार पर पहरा देता हुआ. आलीशान दरवाजे से उस खतरनाक चेहरे का अंदाजा भी नहीं लग पा रहा है, जो आने वाली तस्वीरों में दिखने वाला है. कैसे बच्चों के एक स्कूल को तालिबान ने श्मशान में बदल दिया.
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चारों तरफ तहस नहस
नोटिस बोर्ड के आस पास दहशत के निशान मौजूद हैं. सेना के जवान उन जगहों को देख रहे हैं, जहां तालिबान के हमले से भारी नुकसान हुआ है. दीवार की ईंटें निकल चुकी हैं. गमले उलटे पड़े हैं. यह तस्वीर किसी स्कूल की तो नहीं लगती.
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ब्लैकबोर्ड की दीवार
स्कूल की इस दीवार पर कभी ब्लैकबोर्ड लगा होता होगा. लेकिन अब यह गोलियों से छलनी है. एक स्थानीय रिपोर्टर जब इस दीवार के पास से गुजरी, तो कुछ ऐसी तस्वीर बनी. मालूम पड़ता है कि मानो कोई जलजला आया हो.
तस्वीर: Reuters/F. Aziz
ये कैसा क्लासरूम
किताबें बिखरी पड़ी हैं, छात्रों का कोई नामोनिशान नहीं. गोलियां और बम खाकर पीछे की जख्मी दीवार काली पड़ चुकी है. इस सैनिक को बिखरी हुई किताबों के बीच रास्ता निकालना मुश्किल हो रहा है. सिर्फ 24 घंटे पहले यहां बच्चों से रौनक थी.
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आतंक की निशानी
पीछे की दीवार पर शायद स्कूल के प्रिंसिपलों की लिस्ट लगी है. लेकिन नजर उसके चारों ओर ज्यादा जा रही है, जो गोलियों से भुन चुका है. बोर्ड के चारों ओर के सुर्ख लाल धब्बे वो सब कुछ कह रहे हैं, जो मंगलवार को इस स्कूल में हुआ.
तस्वीर: Reuters/F. Aziz
अपनों की याद
कराची के एक स्कूल में दुआओं में खड़ा यह छात्र शायद अपने उन साथियों के अहसास को महसूस करने की कोशिश कर रहा है, जो तालिबान के कायराना हमले में मारे गए. पूरे पाकिस्तान के स्कूलों में मासूम बच्चों को श्रद्धांजलि दी गई.
तस्वीर: Reuters/A. Soomro
महिलाओं की श्रद्धांजलि
मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट की महिला सदस्यों ने भी मंगलवार की रात मारे गए बच्चों को श्रद्धांजलि दी और उनकी याद में मोमबत्तियां जलाईं. हमले में कम से कम 140 लोगों की मौत हो गई और तालिबान ने कई महिला टीचरों को जिंदा जला दिया.
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अपनों का गम
हमले की जगह पहुंचते हुए एक महिला अपनी सिसकियों को नहीं रोक पाई. हमले के वक्त स्कूल में कम से कम 500 बच्चे थे. इनमें से लगभग 125 बच्चे मारे गए, जबकि इतने ही और घायल हो गए. पाकिस्तान के इतिहास में यह सबसे क्रूर हमलों में गिना जा रहा है.
तस्वीर: AFP/Getty Images/A. Majeed
एहतेजाज की याद
पेशावर की इस घटना ने हंगू के युवा छात्र एहतेजाज की भी याद ताजा कर दी, जिसने जनवरी में अपने स्कूल में घुस रहे एक आत्मघाती हमलावर को गेट के बाहर दबोच लिया था. हमलावर ने विस्फोटक को उड़ा दिया, जिससे उसकी और एहतेजाज की मौत हो गई. लेकिन स्कूल में मौजूद सैकड़ों बच्चे बच गए.