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मारीबोर और गिमाराह बने सांस्कृतिक राजधानी

१ जनवरी २०१२

साल 2012 के लिए पुर्तगाल के गिमाराह और स्लोवेनिया के मारीबोर को यूरोप की सांस्कृतिक राजधानी चुना गया है. दोनों शहरों में जनवरी से शुरू हो रहे कार्यक्रमों की तैयारियां पूरे जोर शोर से चल रही हैं.

तस्वीर: Maribor 2012

गिमाराह पुर्तगाल का एक छोटा सा शहर है जहां यूरोप के लोग छुट्टियां बिताना पसंद करते हैं. लेकिन अंतरराष्ट्रीय पर्यटन के लिहाज से यह जगह कभी इतनी लोकप्रिय नहीं रही. अब सांस्कृतिक राजधानी का नाम मिल जाने पर शहर को उम्मीद है कि पूरी दुनिया की नजरें इस पर पड़ेंगी. इसीलिए 21 जनवरी को शहर में खास कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है. गिमाराह संस्थान के अध्यक्ष जोआओ सेरा का कहना है, "अकेले इस कार्यक्रम के चलते ही हम पंद्रह लाख लोगों के आने की उम्मीद कर रहे हैं." हालांकि कार्यक्रम की पूरी जानकारी अब तक नहीं दी गई है, लेकिन इसमें करीब 500 अलग अलग तरह के इवेंट्स आयोजित किए जाएंगे. इनमें कई तरह के कंसर्ट, लेक्चर, प्रदर्शनियां, फिल्म और नाटकों का दिखाया जाना शामिल है.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

गिमाराह को पुर्तगाल का सबसे पुराना शहर माना जाता है. पुर्तगाल के राजा अलफोंसो का जन्म यहीं हुआ. 12वीं शताब्दी में उन्होंने ही 'पोर्तुकेल' देश को स्पेन से आजादी दिलाई और गिमाराह को राजधानी घोषित किया. शहर की दीवारों पर बड़ा बड़ा लिखा गया है, "पुर्तगाल का जन्म यहीं हुआ." गिमाराह 2001 से यूनेस्को की सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में भी शामिल है. 52,000 की आबादी वाले इस शहर को अवांत गार्ड या न्यू आर्ट के लिए जाना जाता है.

आर्थिक तंगी से मुश्किलें

पुर्तगाल पश्चिम यूरोप का सबस गरीब देश है. देश की खस्ता आर्थिक स्थिति के चलते इस बात पर सवाल उठ रहे हैं कि क्या वह एक भव्य कार्यक्रम करने की स्थिति में है. इन अटकलों को खारिज करते हुए जोआओ सेरा ने कहा, "साल 2012 हमारे लिए एक मौका है. सांस्कृतिक कार्यक्रम में निवेश करने से हम सामाजिक और आर्थिक स्थिति के बेहतर होने की उम्मीद कर सकते है."

तस्वीर: picture-alliance/dpa

ऐसे ही सवाल मारीबोर पर भी उठाए जा रहे हैं. शहर को नया रूप देने के लिए पांच करोड़ यूरो का बजट निर्धारित किया गया था, लेकिन अंत में 85 लाख यूरो से ही काम चलाना पड़ा. आयोजन कमिटी के अध्यक्ष मित्या सैंडर का कहना है की यह दुख की बात है कि शहर के औद्योगिक इलाके का नवनिर्माण नहीं हो पाया. सैंडर का मानना है कि यदि ऐसा होता तो इन जगहों को भविष्य के लिए सांस्कृतिक धरोहरों के तौर पर याद रखा जा सकता था. यूरोप के अन्य शहरों में भी ऐसा होता आया है. पर्यटन के लिहाज से यूरोप के शहरों को इसका काफी फायदा मिलता रहा है.

साढ़े पांच करोड़ का मंच

मारीबोर में 14 जनवरी को खास कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं. इस अवसर पर जापान और रूस से कलाकार बुलाए गए हैं. आठ लाख यूरो यानी 5.5 करोड़ रुपये के स्टेज पर सर्कस के करतब भी देखे जाएंगे और रॉक कंसर्ट भी होंगे. साथ ही कई नाटक भी दिखाए जाएंगे, जिन में से एक हिटलर पर आधारित होगा. सैंडर का कहना है की इस कार्यक्रम में कल्पना की बहुत बड़ी भूमिका है, जो मारीबोर का चेहरा बदलने की एक कोशिश भी है, "आप कल्पना के बिना इस मुश्किल दौर से नहीं निकल सकते."

गिमाराह जहां एक छोटा सा शहर है, वहीं मारीबोर स्लोवेनिया का दूसरा सबसे बड़ा शहर है. एक लाख से अधिक आबादी वाले इस शहर की ऐतिहासिक पहचान है. स्लोवेनिया हाब्सबर्ग राजशाही का हिस्सा हुआ करता था. 19वीं शताब्दी की शुरुआत में मारबुर्ग नाम के शहर को मारीबोर के नाम से नई पहचान मिली. आल्प्स पहाड़ों में बसा स्लोवेनिया एक छोटा सा देश है जो सात दशकों तक युगोस्लाविया का हिस्सा रहा. मारीबोर पूर्वी युगोस्लाविया से निकला पहला ऐसा शहर है जिसे यूरोप की सांस्कृतिक राजधानी चुना गया है.

यूरोप में सांस्कृतिक राजधानी चुने जाने की शुरुआत 27 साल पहले हुई. यह यूरोपीय संघ की एक पहल थी जिसका लक्ष्य यूरोप के शहरों की पहचान बनाना और सभी देशों को आपस में बेहतर रूप से जोड़ना था. ग्रीस की राजधानी एथेंस को सबसे पहली सांस्कृतिक राजधानी चुना गया था. उस समय शहर में प्रदर्शनियां आयोजित की जाती थी ताकि लोगों को शहर की संस्कृति और इतिहास के बारे में जानकारी दी जा सके. बाद में इसने बड़े कार्यक्रम का रूप ले लिया. सांस्कृतिक राजधानी चुने जाने के कारण इन शहरों को काफी फायदा मिलने लगा. ये शहर लोगों की नजर में आए और यहां बेहतर रूप से निवेश किया जाने लगा.

रिपोर्ट: डीपीए, एएफपी/ईशा भाटिया

संपादन: महेश झा

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