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मार्टिन लूथर किंग और अमेरिका के लिए उनका ख्वाब

१ अक्टूबर २०११

कई बार किसी को अमर बनाने के लिए एक पल काफी होता है. वह पल दूरदर्शी को नायक बना देता है. मार्टिन लूथर किंग के लिए वह पल 1963 में वॉशिंगटन में दिए महान भाषण के जरिए आया जिसमें उन्होंने अमेरिका के लिए अपने सपने की बात की.

तस्वीर: AP

"मेरा एक सपना है कि एक दिन यह देश खड़ा होगा और अपने सिद्धांत के सच्चे मायनों को जिएगा. मेरा एक सपना है कि मेरे चार बच्चे एक दिन ऐसे देश में रहेंगे जहां उनके बारे में कोई फैसला उनकी त्वचा के रंग के आधार पर नहीं बल्कि उनके चरित्र के आधार पर होगा. आज मैं यह स्वप्न देखता हूं."

अमेरिकी मानवाधिकार कार्यकर्ता और इतिहास के सबसे अच्छे वक्ताओं में शामिल मार्टिन लूथर किंग की ये पंक्तियां पूरी दुनिया में हजारों बार दोहराई जा चुकी हैं. इसके बावजूद इन पंक्तियों की ताकत कम नहीं हुई है. ये पंक्तियां आज भी जनमानस के मन में आग भर सकती हैं.

जिस अमेरिका का ख्वाब मार्टिन लूथर किंग ने देखा, उसमें श्वेत और अश्वेत दोनों को बराबर मौके मिलने चाहिए. उस अमेरिका में अन्याय के लिए कोई जगह नहीं होगी. वह अमेरिका पूरी दुनिया के लिए एक आदर्श होगा. और यह ख्वाब देखने की प्रेरणा किंग को गांधी से मिली.

किंग और गांधी

करिश्माई व्यक्तित्व वाले मार्टिन लूथर किंग ने अपना मशहूर भाषण 34 साल की उम्र में दिया. लेकिन उससे कुछ साल पहले ही वह भारत की यात्रा कर चुके थे. 1959 में अपनी इस भारत यात्रा को उन्होंने तीर्थयात्रा सरीखा बताया था. उन्होंने बार बार कहा कि महात्मा गांधी के अहिंसा के सिद्धांत को वह आंखें खोल देने वाली अवधारणा मानते हैं. किंग के मार्गदर्शक हॉवर्ड ट्रूमैन के महात्मा गांधी से नजदीकी संबंध थे. ट्रूमैन ने गांधी को अमेरिका आने का न्योता भी दिया था. गांधी पर कई किताबें लिखने वाले अमेरिका के प्रोफेसर माइकल नागलर बताते हैं, "1930 के दशक में ट्रूमैन ने जब गांधी से अमेरिका आने को कहा तो गांधी जी ने जवाब दिया - अगर मैं यहां रहता हूं तो मैं कुछ ऐसा करके दिखा सकता हूं जिससे दूसरे भी सीख सकेंगे. और इसकी पूरी संभावना है कि अमेरिका के अश्वेत मेरे अहिंसा के रास्ते को अपनाने वाला अगला समुदाय बनें."

तस्वीर: AP

कुछ खास पल

महात्मा गांधी और मार्टिन लूथर किंग दोनों को अपनी त्वचा के रंग की वजह से अपमान झेलना पड़ा. माना जाता है कि एक ट्रेन यात्रा ने नस्ली शोषण के खिलाफ उनकी लड़ाई की चिंगारी भड़काई थी. 1893 से 1914 तक गांधी दक्षिण अफ्रीका में रहे और वकालत की. एक यात्रा के दौरान उन्होंने फर्स्ट क्लास का टिकट खरीदा. लेकिन जब उन्हें तीसरे दर्जे में बैठने को मजबूर किया गया तो उन्होंने साफ इनकार कर दिया. इस पर उन्हें ट्रेन से बाहर फेंक दिया गया.

रोजा पार्क्स का मामला

मंटमरी में करीब 60 साल बाद ठीक ऐसा ही वाकया रोजा पार्क्स के साथ हुआ जिसने अमेरिका में किंग के संघर्ष को चिंगारी दी. 1955 में अलाबामा में 42 साल की रोजा पार्क्स को इसलिए गिरफ्तार कर लिया गया क्योंकि उन्होंने बस में एक गोरे यात्री के लिए सीट खाली करने से इनकार कर दिया. मार्टिन लूथर किंग जूनियर तब सिर्फ 26 साल के थे. उन्हें यह फैसला नागवार गुजरा और उन्होंने इसके खिलाफ तूफान खड़ा कर दिया. इसका नतीजा यह हुआ कि अगले 383 दिन तक मंटमरी के अश्वेतों ने स्थानीय बसों का बहिष्कार किया. आखिरकार सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा और रंग के आधार पर बंटवारे को असंवैधानिक करार दे दिया गया. किंग का निडर और धैर्यपूर्वक संघर्ष जीत गया. एक नए नायक का जन्म हुआ.

तस्वीर: Harly Hall

अच्छे वक्ता और आकर्षक व्यक्तित्व के किंग किसी को भी आकर्षित कर सकते थे. अश्वेत युवकों और महिलाओं के लिए तो वह जल्दी ही एक प्रतीक और बेहतर भविष्य की उम्मीद बन गए. नागलर इस बात पर अफसोस जताते हैं कि किंग को अपने संघर्ष के लिए उतना वक्त नहीं मिला जितना गांधी को मिला. वह कहते हैं, "गांधी को उतनी जल्दी कत्ल नहीं किया गया जितना जल्दी पश्चिम में मार्टिन लूथर किंग को कर दिया गया. इसलिए कहा जा सकता है कि गांधी को पूरा एक जीवन मिला. जीवन के हर क्षेत्र में अहिंसा पर प्रयोग करने के लिए 50 साल मिले. इसलिए वह हर तरह से विशाल हैं."

किंग की लोकप्रियता

1958 में किंग पर हमला हुआ लेकिन वह बच गए. लेकिन इसका असर उनके समर्थकों पर हुआ. उनका किंग में विश्वास और गहरा हो गया. इसके बाद किंग मीडिया के भी चहेते हो गए. गांधी की तरह किंग ने भी अपने विश्वास और सहानुभूति, सत्य और दूसरों के लिए जीने के अपने नियमों से ही ताकत जुटाई. कई बार जब उन्हें जेल जाना पड़ा तब ईश्वर में उनके विश्वास से उनको ताकत मिली.

1963 में उन्होंने वॉशिंगटन के अपने मार्च को अंजाम दिया जो लिंकन मेमोरियल में भाषण के साथ पूरा हुआ. किंग ने फिर महात्मा गांधी को मिसाल माना. 1930 में गांधी जी और उनके समर्थकों ने नमक सत्याग्रह में ऐसा ही दांडी मार्च किया था. गांधी और किंग दोनों के ही साथ चलते हजारों लोगों ने राजनेताओं को दिखा दिया कि उनकी ताकत क्या है.

गांधी और किंग की प्रासंगिकता

1964 में सिर्फ 35 साल की उम्र में किंग को शांति का नोबेल पुरस्कार दिया गया. यह पुरस्कार पाने वाले वह इतिहास के सबसे कम उम्र के इंसान बन गए. सिर्फ चार साल बाद 1968 में किंग की हत्या कर दी गई, ठीक गांधी की तरह. दो नेता, जिन्होंने अपना पूरा जीवन अहिंसक संघर्ष में लगा दिया, हिंसा से खत्म कर दिए गए.

लेकिन अमेरिका में गांधी और किंग दोनों जिंदा हैं. देश के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बराक ओबामा इसकी मिसाल हैं. ओबामा भी नोबल पा चुके हैं. यह अलग बात है कि अमेरिका अफगानिस्तान और इराक के युद्धों में शामिल है. ओबामा ने नोबल पाने के बाद अपने भाषण में कहा, "मैं जानता हूं कि गांधी और किंग दोनों के जीवन और सिद्धांत में कुछ भी कमजोर, नकारात्मक या बेहद आसान नहीं है. लेकिन अपने देश के प्रमुख के तौर पर मैंने रक्षा की जो शपथ उठाई है, उसमें मैं सिर्फ उन्हीं की मिसालों से मार्गदर्शन नहीं ले सकता. जैसी दुनिया है, मुझे वैसे ही उसका सामना करना है. और जब अमेरिका के लोगों को लिए कोई खतरा है तब मैं खाली हाथ नहीं बैठा रह सकता."

मार्टिन लूथर किंग की लोकप्रियता के बिना ओबामा की सफलता और लोकप्रियता संभव नहीं थी. और महात्मा गांधी की प्रेरणा के बिना किंग कुछ न होते. लेकिन हर दौर अपना नायक खुद बनाता है.

रिपोर्टः अनवर जे अशरफ

संपादनः ए कुमार

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