मालदीव में भारत दखल देगा?
७ फ़रवरी २०१८![Malediven, Demonstranten der maledivischen Opposition rufen Parolen, die während eines Protestes die Freilassung politischer Gefangener fordern](https://static.dw.com/image/42418371_800.webp)
मालदीव में राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने इमरजेंसी लगा दी है और सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश अब्दुल्ला सईद और पूर्व राष्ट्रपति मॉमून अब्दुल गयूम को जेल में डाल दिया है. सुप्रीम कोर्ट के तीन अन्य न्यायाधीशों ने डर कर यामीन के फैसलों पर स्वीकृति की मुहर लगा दी है.
भारत से मालदीव में सैन्य दखल की मांग
उधर कोलंबो और लंदन में निर्वासन का जीवन बिता रहे पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नाशीद ने भारत के प्रमुख अंग्रेजी दैनिक 'इंडियन एक्सप्रेस' में एक लेख लिखकर भारत सरकार से अनुरोध किया है कि वह राष्ट्रपति यामीन को पिछले सप्ताह के सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का पालन करने को मजबूर करने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय का नेतृत्व करे जिसमें अदालत ने नाशीद समेत सभी राजनीतिक कैदियों की रिहाई का आदेश दिया था. इसके पहले एक ट्वीट करके नाशीद ने भारत से अनुरोध किया था कि वह अपना एक विशेष दूत मालदीव भेजे और न्यायाधीशों और राजनीतिक बंदियों को छुड़ाने के लिए सैन्य कार्रवाई करे.
लेकिन भारत इस मामले में जल्दबाजी करने के मूड में नहीं है. श्रीलंका के अनुभव से वह सीख चुका है कि दूसरे देशों के राजनीतिक मामलों में सैन्य हस्तक्षेप करने का क्या परिणाम निकल सकता है. मालदीव के संविधान के अनुसार इमरजेंसी की घोषणा को संसद की स्वीकृति मिलनी चाहिए. यदि संसद का सत्र चल रहा हो तो 48 घंटे में और यदि न चल रहा हो तो 15 दिन में यह स्वीकृति मिल जानी चाहिए. संसद का सत्र 5 फरवरी को शुरू होने वाला था था लेकिन उसे भी टाल दिया गया है.
भारत धैर्य के साथ देखना चाहता है कि यामीन इस संबंध में क्या करते हैं. जहाँ तक अभी तक मिल रहे संकेतों का सवाल है, भारत विशेष दूत भेजने के नाशीद के अनुरोध तक को स्वीकार नहीं करना चाहता. नाशीद जब स्वयं राष्ट्रपति थे, तब उन्होंने भारत की नाराजगी की परवाह न करते हुए चीन के साथ दोस्ती बढ़ाने की कुछ ज्यादा ही कोशिश की थी, भले ही आज वे यामीन पर चीन को मालदीव की भूमि बेचने का आरोप लगा रहे हों.
फिलहाल भारत अमेरिका, सऊदी अरब और संयुक्त राष्ट्र के माध्यम से मालदीव पर दबाव डालने का प्रयास कर रहा है. मालदीव की अर्थव्यवस्था पर्यटन पर टिकी है. इसलिए भारत समेत अनेक यूरोपीय देशों ने अपने-अपने नागरिकों को मालदीव से दूर रहने की सलाह दी है. दिलचस्प बात यह है कि यात्रा संबंधी ऐसा सुझाव जारी करने वालों में चीन भी शामिल है. भारत की यह भी कोशिश है कि यामीन सरकार के सदस्यों और अधिकारियों की यात्राओं पर भी प्रतिबंध लगा दिए जाएं ताकि वे भारत या अन्य देशों की यात्रा पर न जा पाएं. अभी यही कोशिश की जा रही है कि सैनिक हस्तक्षेप के अलावा अन्य सभी विकल्पों को आजमा लिया जाए.
इस क्षेत्र की महत्वपूर्ण शक्ति होने के कारण भारत बहुत दिनों तक अपनी अपेक्षित भूमिका निभाने से बच नहीं सकेगा. देर-सबेर उसे कड़े फैसले लेने ही होंगे. लेकिन उनका दूरगामी लाभ तभी होगा जब वह मालदीव सरकार के साथ इस बारे में दीर्घकालिक समझ बनाए कि उसके हितों की अनदेखी नहीं की जाएगी और चीन या अन्य किसी देश के साथ अत्यधिक घनिष्ठ संबंध नहीं कायम किये जाएंगे.
नेपाल और श्रीलंका की तरह ही मालदीव भी भारत और चीन के बीच की प्रतिस्पर्धा का लाभ उठाने की कोशिश करता रहता है और भारत पर दबाव बनाने के लिए चीन की और झुकाव दिखाता है. लेकिन भविष्य में उसे ऐसी हरकतों से बाज आना पड़ेगा. इसके अलावा वहां के अभिजात वर्ग को यह भी तय करना होगा कि उसे लोकतंत्र अधिक पसंद है या तानाशाही. भारत का समर्थन काफी कुछ इस बात पर भी निर्भर करेगा कि मालदीव की आतंरिक राजनीतिक व्यवस्था सुधरती है या नहीं.
कुलदीप कुमार