माली में सामाजिक बदलाव लाने की कोशिश
२६ फ़रवरी २०१०सरकारी कार्यक्रम के मुताबिक़ महिलाओं को विवाह और विरासत से जुडे मामलों में पुरुषों जैसे अधिकार दिए जाएंगे. समस्या यह है कि कई महिलाएं ऐसा खुद नहीं चाहतीं और देश इस प्रश्न पर विभाजित है. उलेमातू देमबेले सो महिला कार्यकर्ता हैं. वे महीनों से अलग अलग गावों में जा कर लोगों को समझाने की कोशिश कर रहीं हैं कि सरकार नए कानूनों के साथ क्या पाना चाहती है.
''नए पारिवारिक कानून के मुताबिक महिलाएं 15 साल की उम्र में नहीं बल्कि 18 की उम्र के बाद ही शादी कर सकती हैं. यही नियम पुरुषों के लिए भी होगा. इस समय यदि कोई महिला छोटी उम्र में ही शादी कर लेती है तब वह पढ़ाई ख़त्म नहीं कर पाती. उसके जल्द ही बच्चे हो जाते हैं और इसकी वजह से उसे शारीरिक कमज़ोरी और बीमारियां भी होने लगती हैं. अगर ऐसी महिलाओं को यह मौका दिया जाता है कि अपनी ज़िंदगी के बारे में वे खुद अपने फैसले करें, तो इसका असर पूरे देश के विकास पर पड़ेगा.''
लेकिन इस तरह के ख़्यालों का समर्थन माली के सभी नागरिक नहीं करते. इसकी वजह यह है कि आबादी का बहुमत बहुत ही धार्मिक विचारों का है. गावों में क़ानून पर उतना ज़ोर नहीं दिया जाता, जितनी धार्मिक नेताओं और बुज़ुर्गों की बातें सुनी जाती हैं. शादी के लिए सही आयु क्या है, विवाह किसके साथ होता है, विरासत में घऱ के किस पुरुष सदस्य को क्या मिलता है, यह सब पंचायती नेता और इमाम ही तय करते हैं. इसलिए कई महिलाओं को भी लगता है कि सरकार के नए क़ानून परंपराओं के खिलाफ हैं.
कईयों को यह भी लगता है कि यह ख़्याल माली की सरकार के अपने ख़्याल नहीं हैं. उन्हे शक़ है कि फ्रांस के दबाव पर नए क़ानून बनाए जा रहे हैं. माली 1950 तक फ्रांस का उपनिवेश था.
मामादू कोनाते वकील है. वह कहते हैं, "अगर हम इस देश में मूल्यों की बात करते हैं तब हमें याद रखना होगा कि यह देश फ्रांसीसी संस्कृति से काफी प्रभावित रहा है. जो भी हम कानूनों में बदल रहे हैं वह हम फ्रांस के कानूनों को आदर्श बनाकर कर रहे हैं. यानी यह ख़्याल हमने आयात किए हैं. लेकिन चाहे आबादी मुस्लिम हो, ईसाई या कुछ और, हमे सभी के मूल्यों और लोगों के लिए महत्वपूर्ण बातों को कानून में शामिल करना चाहिए."
माली में सबसे बडी समस्या यह है कि देश में 80 प्रतिशत लोग अनपढ़ हैं या उन्होने बहुत ही कम शिक्षा पाई है. इसलिए खासकर महिलाओं को कानून के कई हिस्से समझ में नहीं आते. इसके अलावा विशेषज्ञ सरकार पर यह भी आरोप लगा रहे हैं कि उसने सारे नए क़ानून गुपचुप बनाए और लोगों को इस प्रक्रिया में शामिल नहीं किया. इसलिए काफी अफ़वाहें फैली हुई हैं.
नए कानून के तहत हर शादी को कोर्ट में रजिस्टर कराना पडेगा, लेकिन यह सिर्फ इसलिए ताकि महिलाओं को विरासत के मामलों में और दूसरे मामलों में भी पुरूषों के समान अधिकार मिलें. वकील मामादू कोनाते कहते हैं कि नए कानून को लेकर सबसे बडी समस्या यह है कि सरकार और नागरिकों के बीच संवाद नहीं संभव था. ऐसे में समाधान ढूंढना मुश्किल बन गया है. फिलहाल सरकार ने अगस्त 2009 में नए कानूनों को पेश किया. लेकिन उन्हे अमल में लाना सरकार को अनिश्चित समय के लिए स्थगित करना पड़ा.
"इस कानून को लेकर खींचतान माली के लोकतंत्र की बेइज़्जती है. खासकर यह ध्यान में रखते हुए कि हमारे लोकतंत्र को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी मज़बूत माना जाता रहा है. मुझे ऐसा लगता है कि राष्ट्रपति ने शुरू में लोगों की बात नहीं सुनी. नागरिक खुद फैसला करना चाहते हैं कि उनकी परंपराएं क्या हैं. जब उनपर बाहर के कानून थोपे जाते हैं तो उन्हें लगता है कि उन का मज़ाक उड़ाया जा रहा है. वैसे हम 20 साल से नए पारिवारिक कानून की बात कर रहे हैं. लोग यह भी सोचते हैं, कि अब उन पर हड़बड़ी में बदलाव के लिए इतना दबाव क्यों डाला जा रहा है."
माली दुनिया के सबसे गरीब देशों में गिना जाता है. देश में राजधानी बामाको ही इकलौता ऐसा शहर है, जिसमें दस लाख से भी ज़्यादा लोग रहते हैं. ज़्यादातर लोग गांवों में रहते हैं या खानाबदोश हैं.
रिपोर्ट: प्रिया एसेलबोर्न
संपादन: एस गौड़