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माहौल में कैसे फैलती हैं जहरीली गैसें

२५ अक्टूबर २०१०

भोपाल गैस कांड यह बताने के लिए काफी है कि कोई जहरीली गैस कितनी विनाशकारी हो सकती है. ऐसे हादसे होने पर कैसे ये गैसें पर्यावरण में फैलती हैं और उनसे कैसा निपटा जाए, इस पर अब जर्मनी में खास अध्ययन हो रहा है.

भोपाल अब तक झेल रहा है गैस त्रासदी की मारतस्वीर: AP

हर रोज सड़कों पर, रेल की पटरियों पर या जहाजों से जहरीले पदार्थों का परिवहन होता है. अगर कोई दुर्घटना हो जाए और जहरीली गैस फैलने लगे तो खासकर शहरों में उसके भयानक नतीजे हो सकते हैं. भोपाल गैस त्रासदी और उससे जुड़े हुए स्कैंडल की याद अभी ताजी ही है. कैसे ऐसी स्थिति से निपटा जाए, इसे जानने के लिए हैम्बर्ग विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने एक अनोखा प्रयोग किया है. उन्होंने देखने की कोशिश की कि हैम्बर्ग शहर में कोई गैस कैसे फैल सकती है और कैसे उस पर काबू पाया जा सकता है. गैस का यह क्षेत्र या धुंए का गुब्बारा 26 मीटर लंबा, चार मीटर चौड़ा और तीन मीटर ऊंचा था. हैम्बर्ग के सिटी सेंटर के इस मॉडल को साढ़े तीन सौवें हिस्से का बनाया गया, जिसमें सारे भवन सही अनुपात में बनाए गए.

तस्वीर: dpa

मौसम विज्ञान के प्रोफेसर बैर्न्ड लाइट्ल बताते हैं, "अगर कुहासा छा जाता है, तो डरने की कोई बात नहीं है. यह नाटक के मंच पर इस्तेमाल किया जाने वाला कुहासा है, कोई नुकसान नहीं होता है. इसे हम एक पाइप के जरिए माडल में छोड़ रहे हैं. बंदरगाह में एक गोदाम में हमने यह पाइप डाला है, वहां से धुंआ अब फैलने लगता है."

वैज्ञानिक को यहां आगजनी करने वाले की भूमिका लेनी पड़ रही है. गोदाम में आग दिख रही है, वहां से धुंआ निकल रहा है, जहरीली गैस ऐसे ही फैलती है. लेकिन प्रोफेसर लाइट्ल के लिए यह काफी नहीं है. वह कहते हैं, "अभी बात नहीं बनी है, क्योंकि हवा नहीं चल रही है."

तो बिजली के एक विशाल पंख के जरिए उन्होंने हवा की भी व्यवस्था कर दी. अब धुंआ शहर के ऊपर फैलने लगता है, बिल्कुल असली दुर्घटना की तरह. वह बताते हैं, "कुहासा अब शहर के ऊपर फैलता जा रहा है. लेकिन वह इतना हल्का होने लगता है कि खाली आंखों से दिखाई ही नहीं देता." इसलिए प्रोफेसर लाइट्ल एक चाल चलते हैं. वह बत्ती बुझा देते हैं और एक लेजर बीम चालू कर देते हैं. अब यह मॉडल एक डिस्कोथेक की तरह दिखता है. लेजर की रोशनी में चारों ओर फैलते कुहासे को पूरी बारीकी के साथ देखा जा सकता है.

बड़े भवनों से टकराकर कुहासा इधर उधर फैलने लगता है, जहरीली गैस साफ हवा के साथ मिलकर पतली होने लगती है. शहर के मॉडल में देखा जा सकता है कि किस तरह कुहासे के बादल की गति बढ़ जाती है, ऊपर के स्तरों के मुकाबले वे कहीं तेजी से इधर उधर फैलने लगती हैं.

हैम्बर्ग के इस मॉडल के जरिए इन वैज्ञानिकों ने पता लगाने की कोशिश की कि किस तरह किसी शहर में जहरीली गैस के बादल फैल सकते हैं, मिसाल के तौर पर अगर किसी रासायनिक उद्यम में रिसाव हो, पेट्रोल के टैंक में या किसी गोदाम में आग लग जाए. इन प्रयोगों के आधार पर एक सॉफ्टवेयर बनाया जाएगा, जो दुर्घटना की हालत में राहतकर्मियों को जानकारी दे सकेगा कि जहरीली गैस किधर और कितनी मात्रा में फैल रही है.

तस्वीर: dpa

ऐसी विपदा की स्थिति में क्या होगा, नागरिक सुरक्षा के लिए संघीय दफ्तर के बैर्नहार्ड प्रॉयस इसके बारे में कहते हैं, "हम चाहते हैं कि दमकल कर्मी के पास एक लैपटॉप हो, जिसमें इलाके की तस्वीर हो, और वह तुरंत पता लगा सके गैस किधर फैल रही है और अपने कदम तय कर सके. यह खुद उसके लिए भी महत्वपूर्ण होगा, ताकि वह जहरीली गैस में न फंस जाए. साथ ही उसे पता चलेगा कि कहां से लोगों को बचाकर निकालना पड़ेगा और कौन से दूसरे कदम उठाने होंगे."

हैम्बर्ग के इस मॉडल के आधार पर कंप्यूटर पर और प्रयोग किए जाएंगे और उनकी विश्वसनीयता परखी जाएगी. अगर सब कुछ योजना के अनुसार चलता रहे तो अगले साल के अंत तक दमकल कर्मियों के लिए ऐसा सॉफ्टवेयर मुहैया कराया जा सकेगा.

रिपोर्टः उज्ज्वल भट्टाचार्य

संपादनः ए कुमार

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