कोविड-19 से लड़ाई में यूरोप भारत के साथ साझेदारी बढ़ाना चाह रहा है. भारत वैक्सीन बनाने के लिए यूरोप से बौद्धिक संपदा के मोर्चे पर रियायत चाह रहा है.
विज्ञापन
यूरोपीय परिषद के अध्यक्ष चार्ल्स मिशेल ने बुधवार 15 अप्रैल को एक वर्चुअल सम्मेलन के दौरान कोविड-19 से लड़ाई में भारत के साथ सहयोग का वादा किया. इस साल वर्चुअल रूप से हो रहे बहुराष्ट्रीय सम्मलेन रायसीना डॉयलोग में हिस्सा लेते हुए मिशेल ने कहा, "भारत और यूरोप दोनों टीकों के बड़े उत्पादक हैं. हम सभी जानते हैं कि टीकों के उत्पादन को बढ़ाना एक बहुत बड़ी चुनौती है. हम सबको एक दूसरे की जरूरत है: उदाहरण के तौर पर घटकों या कॉम्पोनेन्ट, उपकरणों और शीशियों के लिए."
विज्ञापन
भारत का क्या प्रस्ताव है?
भारत ने कोविड से जुड़े उत्पादों को हासिल करने के लिए बौद्धिक संपदा पर एक समझौते को कुछ समय के लिए रोक देने की मांग की है और इसमें उसने यूरोपीय संघ से समर्थन मांगा है. विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) ने कोविड संबंधित सामग्री के लाइसेंस देने की प्रक्रिया पर नियंत्रण रखने के लिए बौद्धिक संपदा के व्यापार से संबंधित आयामों समझौते (टीआरआईपीएस) को तैयार किया था.
वायरस की नई किस्मों के दुनिया भर में फैलने के बीच भारत और दक्षिण अफ्रीका ने इस समझौते से छूट मांगी है, लेकिन अमीर देशों ने इस प्रस्ताव को समर्थन नहीं दिया है. छूट की मांग करने वाले दोनों देशों का कहना है कि इससे विकासशील देशों में दवाएं बनाने वालों को जल्द असरदार टीके बनाने का मौका मिलेगा.
कोवैक्स पहल से 100 देशों को टीके उपलब्ध कराए गए हैं.तस्वीर: Ayman Nobani/Xinhua/picture alliance
यूरोपीय संघ का वैक्सीन बराबरी पर क्या रुख है?
इस समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले देश यह मानते हैं कि टीकों का बराबरी से वितरण बेहद आवश्यक है, लेकिन इस तरह की छूट से इस समस्या का समाधान मिलेगा या नहीं, इस पर सहमति नहीं बन पाई है. छूट देने के विरोधियों का कहना है कि वैक्सीन बनाने की प्रक्रिया इतनी जटिल है कि कम समय के लिए भी इससे समस्या हल नहीं होगी.
अभी तक यूरोप ने विश्व स्वास्थ्य संगठन समर्थित कोविड-19 वैक्सीन ग्लोबल एक्सेस (कोवैक्स) को समर्थन देने को वरीयता दी है और टीकों के पेटेंट अपने पास रखे हैं ताकि कंपनियां वैज्ञानिक शोध में निवेश करें. मिशेल ने कहा, "भारत और यूरोप दोनों टीकों के बड़े उत्पादक हैं.
कोवैक्स के जरिये दोनों कम आय और मध्यम आय वाले देशों को उनके टीकाकरण की कोशिशों में समर्थन दे रहे हैं. हम दोनों की मिली जुली कोशिशों की वजह से कोवैक्स ने पूरी दुनिया के 100 देशों में 3.8 करोड़ खुराकें पहुंचाई हैं."
इंडो-पैसिफिक प्रांत की सुरक्षा में यूरोपीय संघ की रुचि है.तस्वीर: U.S. Navy/abaca/picture alliance
और किन क्षेत्रों में ईयू को भारत से सहयोग चाहिए?
मिशेल ने कहा कि ईयू और भारत के रहते यूरोप की भूराजनीतिक रणनीति के केंद्र में हैं. उन्होंने इंडो-पैसिफिक प्रांत की सुरक्षा में ईयू की रुचि भी व्यक्त की और कहा, "यह हमारे साझा हित में है कि हम दिखाएं कि लोकतांत्रिक और खुली व्यवस्था की दुनिया की चुनौतियों का मुकाबले करने के लिए सबसे शक्तिशाली व्यवस्था है."
संघ "ग्रीन ग्रोथ, सर्कुलर इकॉनमी और क्लीन एनर्जी" के जरिये जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए भारत के साथ एक संयुक्त प्रयास भी चाह रहा है. भारतीय अधिकारियों ने भी एक बयान जारी कर ईयू के साथ और ज्यादा व्यापार के अवसरों की अपील की.
फराह अहमद
LINK: http://www.dw.com/a-57197087
यूरोपीय देशों में ऐसे फैली है असमानता
यूरोप के देशों की भारत के राज्यों से तुलना की जा सकती है. इन देशों का आकर लगभग भारत के राज्यों जैसा ही है. हर देश की अलग भाषा, अलग खानपान और यहां तक कि अलग जीवन स्तर भी.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/D. Kalker
बुल्गारिया
यूरोपीय संघ के सदस्य देशों में बुल्गारिया सबसे गरीब देश है. यहां भ्रष्टाचार भी सबसे व्यापक है. जर्मनी ट्रेड एंड इनवेस्ट (GTAI) के अनुसार, 2018 में यहां औसत आय केवल 580 यूरो प्रति माह थी. यूरोपीय संघ में शामिल होने के बाद से कई युवा लोगों ने देश छोड़ दिया. इनमें बहुत से पढ़े-लिखे लोग भी शामिल थे.
तस्वीर: BGNES
रोमानिया
यूरोपीय संघ की आर्थिक रैंकिंग में नीचे से दूसरे स्थान पर है रोमानिया. यूरोपीय परिषद के अनुसार 2019 में यहां औसत आमदनी 1050 यूरो थी, जबकि उसी दौरान जर्मनी में यह 3994 यूरो थी.
तस्वीर: Imago Images/Design Pics/R. Maschmeyer
ग्रीस
आसमान से गिरे खजूर पर अटके, यह कहावत ग्रीस के लिए सही बैठती है. यह देश कर्ज संकट से अभी पूरी तरह उबरा भी नहीं था कि कोरोना की मार पड़ गई. ग्रीस मुख्य रूप से पर्यटन पर निर्भर है, जो इस दौरान ना के बराबर रहा है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/VisualEyze
फ्रांस
2018 के आंकड़ों के अनुसार यहां औसत रूप से हर व्यक्ति के पास 26,500 यूरो की संपत्ति है. जर्मन लोगों की तुलना में यह 10,000 यूरो ज्यादा है. वजह यह है कि फ्रांस में बहुत से लोग दो-दो घरों के मालिक हैं.
तस्वीर: picture alliance/prisma/K. Katja
इटली
ना कोई विकास, ना ही कोई सुधार. पिछले कुछ सालों में इटली की स्थिति को इन शब्दों में बयान किया जा सकता है. कोरोना की मार सबसे ज्यादा इटली को ही पड़ी. वह ईयू के राहत पैकेज के एक बड़े हिस्से की उम्मीद कर रहा है.
तस्वीर: AFP/P. Cruciatti
स्पेन
सकल घरेलू उत्पाद में यहां लगभग 15 प्रतिशत योगदान पर्यटन का है. इस उद्योग को कोरोना के कारण भारी नुकसान हुआ. और अब जब लोगों ने एक बार फिर स्पेन जाना शुरू कर दिया है, तो कोरोना की दूसरी लहर का खतरा बन गया है.
तस्वीर: Reuters/N. Doce
स्वीडन
यहां के लोग जितने संपन्न हैं, उतना ही ज्यादा इन्हें टैक्स भी चुकाना पड़ता है. जब कोरोना स्वीडन तक पहुंचा, तो सरकार ने लॉकडाउन ना करने का फैसला किया. नतीजतन काफी मौतें भी हुईं. टैक्स दरों के बावजूद स्वीडन में लोगों के पास औसत 27,511 यूरो है, यानी फ्रांस से भी ज्यादा.
तस्वीर: imago images/TT/J. Nilsson
नीदरलैंड्स
स्वीडन, डेनमार्क ऑस्ट्रिया और नीदरलैंड्स - इन चार देशों के समूह को यूरोप में "किफायती चार" के नाम से जाना जाता है. इन्होंने पहले इटली की आर्थिक मदद करने से इनकार किया, फिर ईयू के कोरोना राहत पैकेज के मामले में भी ये चारों जरूरतमंद देशों की मदद करने से बचते दिखे. नीदरलैंड्स के लोगों के पास औसतन 60,000 यूरो की संपत्ति है.
तस्वीर: picture-alliance/robertharding/F. Hall
जर्मनी
जर्मनी के बारे में कहा जा सकता है कि जर्मनी की सरकार अमीर है, लोग नहीं. आर्थिक प्रदर्शन के लिहाज से यह ईयू का बेहतरीन देश है लेकिन यहां के लोगों के पास औसत रूप से महज 16,800 यूरो की ही संपत्ति है. आर्थिक रूप से कमजोर इटली के लोगों की संपत्ति भी इससे दोगुना है.