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मिस्र का शिकार न हो जाए मध्य पूर्व की शांति

९ फ़रवरी २०११

रूस ने सुरक्षा परिषद से अपील की है कि मध्य पूर्व में शांति वार्ता की राह में पड़े रोड़े हटाने के लिए एक मिशन शुरू करे. अरब देशों में हो रही उथल पुथल का असर मध्य पूर्व शांति वार्ता पर होने के खतरे पर ब्रिटेन भी फिक्रमंद.

तस्वीर: AP

सुरक्षा परिषद ने पिछले तीन दशक में एक बार भी विवादग्रस्त इलाके का दौरा नहीं किया है. यूएन में रूस के राजदूत विताली चरकिन ने कहा कि परिषद के दूत को इस्राएल और फलीस्तीन के अलावा सीरिया, मिस्र और लेबनान की यात्रा करनी चाहिए. चरकिन ने कहा, "हम यह प्रस्ताव पेश कर रहे हैं क्योंकि हम मध्यपूर्व की स्थिति को लेकर फिक्रमंद हैं. जैसा कि हम सभी जानते हैं कि इस्राएल और फलीस्तीन के बीच बातचीत अधर में लटकी पड़ी है और इलाके में हालात काफी नाजुक हैं. आगे जटिलताएं बढ़ने से ये और खराब हो सकते हैं."

तस्वीर: AP

चरकिन ने कहा कि सुरक्षा परिषद का मिशन इलाके में हालात को स्थिर करने में मदद कर सकता और इस्राएल फलीस्तीन बातचीत फिर से शुरू हो सकती है. उन्होंने कहा कि 1979 के बाद से मध्य पूर्व में परिषद का कोई मिशन नहीं गया है. जो कि सही नहीं है.

रूस सुरक्षा परिषद के पांच स्थाई सदस्यों में से एक है. एक अन्य स्थाई सदस्य ब्रिटेन ने भी मध्य पूर्व की शांति वार्ता के खतरे में पड़ने का खतरा जाहिर किया है. मध्य पूर्व की यात्रा पर गए ब्रिटिश विदेश मंत्री विलियम हेग ने कहा है कि मध्य पूर्व शांति प्रक्रिया अरब जगत में मची हलचल का शिकार हो सकती है. उन्होंने कहा कि अगर अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान मिस्र और ट्यूनिशिया की ओर बंट गया तो शांति प्रक्रिया पटरी से उतर सकती है. उन्होंने इस्राएल से उत्तेजक भाषा का इस्तेमाल न करने की अपील की है.

हेग ने अमेरिका से भी कहा है कि साहसी नेतृत्व के जरिए शांति प्रक्रिया को संभाले

रिपोर्टः एजेंसियां/वी कुमार

संपादनः एन रंजन

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