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मिस्र की तर्ज पर सड़कों पर अल्जीरियाई

१३ फ़रवरी २०११

प्रदर्शनों पर लगे प्रतिबंध को तोड़ते हुए अल्जीरिया में शनिवार को हजारों लोगों ने मार्च किया. मिस्र की तर्ज पर प्रदर्शनकारी राजधानी अलजीयर्स के मुख्य चौराहे पर जमा हुए और सुधारों की मांग की.

तस्वीर: picture alliance/dpa

ट्यूनिशिया और उसके बाद मिस्र में लोगों के प्रदर्शन की सफल रणनीति को हथियार बनाते हुए अल्जीरिया के लोगों ने भी देश में राजनीतिक सुधारों के लिए प्रदर्शन शुरू कर दिए हैं. शुक्रवार को राजधानी में एक छोटा प्रदर्शन हुआ था जिसे सुरक्षाबलों ने ताकत के बल पर कुचलने की कोशिश की. सुरक्षा बलों के साथ हुई झड़पों में तब 10 प्रदर्शनकारी घायल हो गए थे. इसके बाद सरकार ने देश में प्रदर्शनों पर प्रतिबंध लगा दिया. लेकिन प्रदर्शनकारियों ने इस प्रतिबंध की धज्जियां उड़ाते हुए शनिवार को एक और प्रदर्शन का अह्वान किया. यह आह्वान काफी सफल रहा और हजारों लोग शहर के केंद्र पर प्रदर्शन में हिस्सा लेने पहुंचे.

तस्वीर: AP

मार्च के आयोजकों का कहना है कि लगभग 10 हजार लोगों ने अल्जीरिया की गलियों को भर दिया. पुलिस ने उन्हें भगाने और दबाने के लिए बल प्रयोग किया और करीब 400 लोगों को हिरासत में भी ले लिया.

बुटेफलिका के हटने की मांग

प्रदर्शनकारी पुलिस राज बंद हो और बुटेफलिका गद्दी छोड़ो जैसे नारे लगा रहे थे. बुटेफलिका 1999 से देश पर राज कर रहे हैं और प्रदर्शनकारी उनके पद छोड़ने की मांग कर रहे हैं. देश में आपातकाल लगा हुआ है जो अब तक का सबसे लंबा आपातकाल है. इसी के तहत प्रदर्शनों पर प्रतिबंध लगाया गया और सरकार ने लोगों को सड़कों पर न आने की चेतावनी दी. लेकिन प्रदर्शन से साबित हुआ कि लोगों ने सरकार की चेतावनी को बिल्कुल नहीं सुना.

एक दिन पहले ही लोगों के दबाव के आगे झुकते हुए मिस्र के तीन दशक तक राष्ट्रपति रहे होस्नी मुबारक को पद छोड़कर जाना पड़ा. इससे पहले पड़ोसी देश ट्यूनिशिया में भी लोगों के ऐसे ही प्रदर्शनों ने 14 जनवरी को राष्ट्रपति जिने अल अबिदेन बेन अली की गद्दी छीन ली. ऐसे में अल्जीरिया की सरकार विरोध प्रदर्शनों को काफी गंभीरता से ले रही है.

मिस्र और ट्यूनिशिया की क्रांति अल्जीरिया में बदलाव की मांग के लिए सुलगती आग में घी का काम कर रही है. हालांकि विवादों से जूझते रहे इस देश में बहुत से लोग प्रदर्शनों से डर भी रहे हैं. वे 1990 के दशक में इस्लामिक आतंकवादियों के दौर को याद करते हैं जब अंदाजन दो लाख लोगों की जान चली गई.

लेकिन मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, यूनियन लीडरों, वकीलों और समाज के दूसरे अहम लोगों के नेतृत्व में बने संगठन कोऑर्डिनेशन फॉर डेमोक्रैटिक चेंज इन अल्जीरिया ने अपने विरोध प्रदर्शनों में सिर्फ लोकतांत्रिक सुधारों की मांग की है और राष्ट्रपति बुटेफलिका के पद से हटने की बात नहीं कही है.

रिपोर्टः एजेंसियां/वी कुमार

संपादनः उभ

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