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मिस्र: क्रांति के दस साल बाद भी अधूरा आजादी का सपना

२२ जनवरी २०२१

मिस्र में दस साल पहले लोग सड़कों पर उतरे थे और उन्होंने दशकों से राज कर रहे एक तानाशाह को उखाड़ दिया था. आज फिर वहां राष्ट्रपति की गद्दी पर ऐसा व्यक्ति बैठा है जिसने पूरे विपक्ष का सफाया कर दिया है.

मिस्र में दस साल बाद कितने बदले हालात
मिस्र की सरकार सारी अंतरराष्ट्रीय आलोचनाओं को खारिज करती हैतस्वीर: Andre Pain/dpa/picture alliance

मिस्र की राजधानी काहिरा के ऐतिहासिक तहरीक चौक पर 25 जनवरी 2011 को सरकार विरोधी प्रदर्शन शुरू हुए. इसके कुछ दिनों के भीतर तानाशाह होस्नी मुबारक को सत्ता छोड़नी पड़ी. यह अरब दुनिया में फैली क्रांति के लिए बहुत बड़ा पल था.

मिस्र एक ऐसे दौर में दाखिल हुआ जहां लोगों ने पहली बार महसूस किया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रा और निष्पक्ष चुनाव क्या होते हैं. इस्लामी कट्टरपंथी नेता मोहम्मद मुर्सी लोकतांत्रिक रूप से चुने गए देश के पहले राष्ट्रपति बने. लेकिन सिर्फ ढाई साल के भीतर उन्हें भी सत्ता से हटा दिया गया.

मिस्र में 2013 में फिर सत्ता परिवर्तन हुआ और देश के पूर्व सेना प्रमुख अब्देल फतह अल-सिसी राष्ट्रपति बने. और फिर मिस्र में कट्टरपंथी इस्लामी कार्यकर्ताओं, धर्मनिरपेक्ष विरोधियों, पत्रकारों, वकीलों, कलाकारों और बुद्धिजीवियों को प्रताड़ित करने का सिलसिला भी शुरू हो गया. गैर न्यायिक हत्याओं से जुड़े मामले पर संयुक्त राष्ट्र की विशेष प्रतिनिधि आगनेस कालामर्द कहती हैं, "मिस्र में अरब क्रांति बस थोड़े से समय के लिए थी." उनकी राय में, "वहां की सरकार ने क्रांति से एक बदतर सबक सीखा है- आजादी की कोई कली फूटने का संकेत भी मिले तो उसे मसल दो."

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"बाहरी हस्तक्षेप"

दिसंबर की शुरुआत में मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी इंटरनेशन ने अरब दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाले देश मिस्र में लोगों को मौत की सजा दिए जाने के बढ़ते मामलों की निंदा की थी. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होने वाली आलोचना की मिस्र के अधिकारियों को परवाह नहीं है. हर आलोचना पर उनका यही जबाव होता है कि किसी भी तरह के "बाहरी हस्तक्षेप" को स्वीकार नहीं करेंगे.

हाल में मिस्र के विदेश मंत्री सामेह शौकरी ने एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा था कि देश में "मानवाधिकारों से जुड़े सवाल वहां के समाज की जिम्मेदारी हैं ना किसी बाहरी पक्ष की". उनके मंत्रालय की तरफ से समाचार एजेंसी एएफपी को दिए गए वकत्व में मिस्र में मनमाने तरीके से होने वाली गिरफ्तारियों और दमन के मामलों से इनकार किया गया था. बयान के मुताबिक, "मिस्र में कोई राजनीतिक कैदी नहीं हैं". साथ ही यह भी कहा गया कि "मिस्र की सरकार अभिव्यक्ति की आजादी को बहुत महत्व देती है".

मिस्र में 2013 की गर्मियों में दमन की शुरुआत हुई, जब मोहम्मद मुर्सी को हटाए जाने के खिलाफ सड़कों पर उतरे सैकड़ों प्रदर्शकारी सुरक्षा बलों की कार्रवाई में मारे गए. मुस्लिम ब्रदरहुड के कार्यकर्ताओं को बड़ी संख्या में हिरासत में लिया गया, उन पर मुकदमे चले और सजाएं सुनाई गईं. सिसी की सत्ता लगातार मजबूत होती गई. वह मोर्सी को हटाए जाने के बाद देश के राष्ट्रपति चुने गए. 2018 में 97 प्रतिशत वोटों के साथ फिर राष्ट्रपति चुने गए.

अप्रैल 2019 में एक संवैधानिक संशोधन के जरिए बतौर राष्ट्रपति उनके कार्यकाल को बढ़ाया गया और इससे देश की न्यायपालिका पर भी उनका नियंत्रण मजबूत हुआ. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि मिस्र में इस समय 60 हजार से ज्यादा राजनीतिक विरोधियों को सलाखों के पीछे रखा गया है, सरकार भले ही इससे इनकार करे.

सत्ता पर सिसी की पकड़ लगातार मजबूत हो रही हैतस्वीर: Mohamed Abd El Ghany/AFP/Getty Images

अभी समय लगेगा

सितंबर 2019 में सैकड़ों लोग सिसी के इस्तीफे की मांग के साथ फिर तहरीर चौक पर प्रदर्शन करने पहुंचे और सरकार को भी गिरफ्तारियों का नया दौर शुरू करने की वजह मिल गई. अधिकारियों पर जब भी मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोप लगते हैं तो वे आतंकवाद के खतरों का हवाला देने लगते हैं. मिस्र के उत्तरी सिनाई इलाके में 2013 से जिहादी तत्व मजबूत हो रहे हैं. बेरुत के कारनेगी मध्य पूर्व सेंटर में मिस्र और उत्तर अफ्रीका पर विशेषज्ञ शेरीफ मोहिलेदीन कहते हैं, "कथित दमन और मानवाधिकारों के उल्लंघन से संस्थागत हिंसा और कुछ हद तक चरमपंथ को भी बढ़ावा मिलता है."

मिस्र में इंटरनेट पर भी सख्त पहरा है. 2017 से सैकड़ों वेबसाइटों को बंद किया गया है. रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स संस्था का कहना है कि 28 पत्रकार अभी मिस्र की जेलों में बंद हैं. सरकार महिलाओं को भी निशाना बना रही है. हाल के महीनों में दर्जनों सोशल मीडिया इंफ्लुएंसरों को गिरफ्तार किया गया है. उन पर टिकटॉक पर ऐसे वीडियो पोस्ट करने का आरोप है जो देश की रूढ़िववादी सामाजिक मान्यताओं के हिसाब से अनैतिक हैं. मिस्र की राष्ट्रीय मानवाधिकार परिषद के महासचिव मोखलेस कोत्ब का कहना है, "मिस्र में कानून का राज स्थापित होने में अभी समय लगेगा."

एके/आईबी (एएफपी)

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