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मिस्र में इस्लामी पार्टियों को बढ़त, चिंता में इस्रायल

४ दिसम्बर २०११

मुबारक बाद के दौर में हुए मिस्र के पहले चुनाव के प्राथमिक नतीजों ने देश में इस्लामी पार्टियों को शानदार बढ़त दिलाई है. कट्टरपंथी इस्लामी गुट जो मिस्र को मुस्लिम राष्ट्र बनाना चाहता है उसे जनता का समर्थन हासिल हुआ है.

मिस्र के चुनावों में इस्लामी पार्टियां आगेतस्वीर: dapd

रविवार को जारी हुए नतीजों के मुताबिक मिस्र में पहले दौर के चुनावों ने उदारवादी पार्टियों को पीछे धकेल दिया है. हालांकि देश के 27 प्रांतों में से 18 में चुनाव के अभी दो दौर बाकी हैं जो आने वाले महीनों में होंगे. अब तक जो नतीजे आए हैं उससे भविष्य में संसद की तस्वीर उभरने लगी है. सोमवार और मंगलवार को हुए चुनावों के नतीजे बता रहे हैं कि पहले दौर में ज्यादातर सीटों पर स्वतंत्र उम्मीदवार विजयी रहे हैं लेकिन इस्लामी ताकतों की भविष्य के संसद पर पकड़ साफ महसूस होने लगी है. इसकी एक वजह यह भी है कि अगले दौर में जिन इलाकों में वोटिंग होनी है वहां मुसलमानों की आबादी बहुमत में है.

क्या असर होंगे चुनावी नतीजों के?तस्वीर: dapd

चुनाव आयोग का कहना है कि इस्लामी कट्टरपंथियों की मुस्लिम ब्रदरहुड्स फ्रीडम और जास्टिस पार्टी के खाते में कुल 97 लाख वोटों में से 36.6 फीसदी वोट मिले हैं. मुस्लिमों की एक और ज्यादा कट्टरपंथी नूर पार्टी ने 24.4 फीसदी वोटों पर कब्जा जमाया है. इस्लामी पार्टियों की ताकत ने उदारवादी पार्टियों को चिंता में डाल दिया है. उदारवादी पार्टियों को डर है कि ये दोनों गुट मिल कर देश में धार्मिक एजेंडा लागू करेंग. इसके साथ ही युवाओं के बहुत सारे गुट जिन्होंने मुबारक के खिलाफ आंदोलन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया उन्हें महसूस हो रहा है कि उनकी क्रांति का अपहरण हो गया है.

मुबारक के जाने के बाद क्रांति का नेतृत्व करने वाले गुट और इस्लामी ताकतें देश के नए संविधान के मसले पर एक दूसरे के सामने आ गई हैं. नई संसद को सैद्धांतिक रूप से 100 सदस्यों का एक पैनल चुनना है जो नए संविधान का मसौदा तैयार करेगी. इसमें तनाव बढ़ाने वाली एक बात यह भी है कि मुबारक के बाद सत्ता संभालने वाली सैन्य परिषद ने एलान किया है कि इनमें से 80 सदस्यों का चुनाव वह खुद करेगी. साथ ही यह भी कहा है कि संसद की नए सरकार के गठन में कोई भूमिका नहीं होगी.

इन चुनावों में मुस्लिम ब्रदरहुड एक बेहद संगठित और सम्मिलित राजनीतिक ताकत के रूप में उभरा है. हालांकि शासन के उनके पिछले रिकॉर्ड से यह साफ नहीं है कि उनका रवैया कैसा रहेगा. पार्टी ने खुद को मध्यमार्गी इस्लामी ताकत के रूप में पेश किया है जो लोगों की आजादी को बिना नुकसान पहुंचाए इस्लामी कानून को लागू करना चाहती है. इसने यह भी कहा है कि वह ज्यादा कट्टरपंथी माने जाने वाली नूर पार्टी के साथ गठबंधन नहीं करेगी.

नूर पार्टी में अत्यंतरूढ़िवादी सलाफी समुदाय का दबदबा है और राजनीतिक परिदृश्य में वो पहली बार इतनी मजबूती से उभरे हैं. इससे पहले वो राजनीति में आने से कतराते रहे हैं और चुनावों में हिस्सा नहीं लिया. यह सउदी अरब की तर्ज पर कठोर इस्लामी कानून को लागू करना चाहती है. जहां पुरुषों और महिलाओं में अंतर होगा, महिलाओं को पर्दे में रहना होगा, उन्हें कार चलाने की इजाजत नहीं होगी. इसके सदस्यों का यह भी कहना है कि धर्म के आड़े आने वाला कोई भी कानून देश में लागू नहीं होगा.

तहरीर चौक पर हो रही रैलीतस्वीर: dapd

चिंता में इस्रायल

मिस्र में इस्लामी ताकतों के उभार से सिर्फ देश के भीतर ही नहीं बाहर भी लोगों में हैरानी है. इस्राएल ने रविवार को चुनाव के नतीजों पर चिंता जताई है. उसने कहा है कि मिस्र के साथ अपने भविष्य के संबंधों को लेकर उसे चिंता हो रही है. इस्राएल के वित्त मंत्री युवाल स्टाइनित्ज ने वहां के सरकारी रेडियो पर कहा, "हम चिंतित हैं, हम उम्मीद करते हैं कि मिस्र में लोकतंत्र रहेगा और देश चरमपंथी मुस्लिम राष्ट्र नहीं बनेगा क्योंकि ऐसा हुआ तो पूरा क्षेत्र खतरे की जद में होगा." इस्राएल की मीडिया में भी इन नतीजों पर इसी तरह की प्रतिक्रिया आई है. इस्राएल की एक सुरक्षा अधिकारी ने सबसे ज्यादा बिकने वाले अखबार येडियोट आहारोनोत से कहा, "यह उम्मीद से कहीं ज्यादा बुरा है." अखबार ने अपनी तरफ प्रतिक्रिया दी है, "जो पहले खतरा था अब चेतावनी बन गया है."

रिपोर्टः एएफपी/एन रंजन

संपादनः एमजी

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