मिस्र में 'नये तानाशाह' के खिलाफ प्रदर्शन
२४ नवम्बर २०१२राजधानी काहिरा में तहरीर चौक के प्रदर्शनों की वजह से पिछले साल होस्नी मुबारक को तीन दशक बाद मिस्र की सत्ता छोड़नी पड़ी. अरब वंसत की अगुवाई मुस्लिम ब्रदरहुड ने की. इस साल ब्रदरहुड की फ्रीडम एंड जस्टिस पार्टी के मोहम्मद मुर्सी राष्ट्रपति बने. उन्हें करीब 51 फीसदी वोट मिले.
जून 2012 में राष्ट्रपति बनने वाले मुर्सी ने गुरुवार को कुछ नए नियम तय बनाए. नियमों के मुताबिक राष्ट्रपति के फैसले न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र में नहीं आएंगे. साथ ही किसी भी अदालत को नया संविधान बना रही निर्वाचित सभा भंग करने का अधिकार नहीं होगा. मुर्सी ने 2011 के आंदोलनों के दौरान लोगों की हत्या करने के दोषियों के खिलाफ दोबारा सुनवाई की अनुमति भी दी.
राष्ट्रपति के इस फैसले से विपक्षी पार्टियों और आम लोगों में खासी नाराजगी है. आरोप लगाए जा रहे हैं कि न्यायपालिका को कुचलकर मुर्सी लोकतंत्र की हत्या कर रहे हैं. विपक्षी पार्टियों का आरोप है कि मुर्सी धीरे धीरे तानाशाही की तरफ बढ़ रहे हैं. शुक्रवार रात विपक्षी कार्यकर्ता काहिरा के तहरीर चौक पर जमा हुए. दंगा नियंत्रक पुलिस ने आंसू गैस के गोले दाग कर शनिवार सुबह तक उन्हें खदेड़ दिया. स्वेज और सिकंदरिया में राष्ट्रपति चुनावों के दौरान मुर्सी का समर्थन करने वाली पार्टियों के दफ्तरों को आग लगा दी गई.
शनिवार सिंकदरिया और काहिरा में न्यायाधीश बाहर आए और खुलकर मुर्सी की नीति का विरोध करने लगे. मुर्सी का विरोध कर रहे एक कार्यकर्ता मोहम्मद अल गमाल ने समाचार एजेंसी एएफपी से कहा, "मिस्र नई क्रांति की शुरुआत देख रहा है क्योंकि हम कभी यह नहीं चाहते थे कि एक तानाशाह की जगह दूसरा तानाशाह आए." गमाल ने अपना टूटा हुआ चश्मा और हाथ में चढ़ा प्लास्टर दिखाते हुए कहा कि यह पुलिस की कार्रवाई का नतीजा है.
हालांकि मुस्लिम ब्रदरहुड के अलावा कुछ अन्य राजनीतिक कार्यकर्ता मुर्सी का समर्थन कर रहे हैं. शु्क्रवार को कुछ जगहों पर इन लोगों ने रैली निकाली. इनकी दलील है कि मुस्लिम विचारधारा के बहुमत वाली संविधान सभा को भंग करने का अधिकार वाकई अदालत के पास नहीं होना चाहिए. कुछ जगहों पर मुर्सी विरोधियों और समर्थकों की झड़पें भी हुई हैं.
विरोध के बीच शुक्रवार को मुर्सी ने राष्ट्रपति भवन से लोगों को संबोधित किया और कहा कि देश को स्वतंत्रता और लोकतंत्र के रास्ते पर रहना चाहिए. हालांकि उन्होंने यह नहीं बताया कि न्यायपालिका के अधिकारों में कटौती करने का उनका मुख्य मकसद क्या है. वह बस लोकतंत्र की बात करते रहे.
मुर्सी ने कहा, "मैं राजनीतिक स्थिरता, सामाजिक स्थिरता और आर्थिक स्थिरता चाहता हूं और इसी के लिए काम कर रहा है." गुरुवार को फैसलों के जरिए मुर्सी ने खुद को न्यायपालिका के दायरे से बाहर कर लिया है.
मिस्र में फिर से फैलती अशांति ने पश्चिमी देशों को भी चिंता में डाल दिया है. इसी हफ्ते मिस्र के राष्ट्रपति की मदद से अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र ने इस्राएल और हमास के बीच संघर्ष विराम कराया लेकिन मुर्सी के ताजा कदमों ने पश्चिम को नाराज किया है. मुर्सी के फैसलों की आलोचना करते हुए अमेरिकी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता विक्टोरिया नुलैंड ने कहा, "22 नवंबर के फैसलों और एलानों ने कई मिस्रवासियों और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को चिंतित कर दिया है. क्रांति के पीछे एक तमन्ना यह तय करने की थी कि ताकत किसी एक व्यक्ति या संस्थान के हाथ में न रहे."
यूरोपीय संघ ने मुर्सी से लोकतांत्रिक मूल्यों का सम्मान करने को कहा है, यूरोपीय संघ की विदेश नीति प्रमुख कैथरीन एस्टन ने कहा, "यह बहुत जरूरी है कि मिस्र के नेतृत्व को लोकतांत्रिक प्रक्रिया पूरी करने के अपने वचन का पालन करे."
जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी के राजनीतिक विश्लेषक हेशाम सलाम कहते हैं कि ताजा फैसलों के जरिए मुर्सी ने उतनी ही ताकत हासिल कर ली है जितनी होस्नी मुबारक के पास थी. वह कहते हैं, "विधान के तहत राष्ट्रपति के फैसले अंतिम होंगे और न्यायपालिका उनकी समीक्षा नहीं कर सकेगी, इसका मतलब है कि मुबारक स्टाइल के राष्ट्रपति की वापसी." सलाम के मुताबिक मुर्सी न्यायपालिका को दबाने में मुबारक से भी एक कदम आगे चले गए हैं.
1981 से 2011 तक मिस्र पर राज करने वाले होस्नी मुबारक को पिछले साल अरब वसंत की आंधी में सत्ता छोड़नी पड़ी. इसके बाद देश कई महीने सैन्य शासन में रहा. इस साल मई-जून में आम चुनाव हुए और मुर्सी मामूली बढ़त से चुनाव जीत गए.
ओएसजे/एनआर (एएफपी)