मिस्र में मुर्सी पीछे हटे
९ दिसम्बर २०१२![](https://static.dw.com/image/16438925_800.webp)
मुर्सी ने नवंबर को जारी एक आदेश में खुद को कानून की परिधि से बाहर बताया था और कहा था कि उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई नहीं हो सकती. इसके जबरदस्त विरोध के बाद शनिवार को उन्होंने इसे वापस ले लिया. सरकारी प्रवक्ता सलीम अल आवा ने पत्रकारों को इस बारे में देर रात जानकारी दी.
हालांकि विपक्षी पार्टियों के साथ बैठक में उन्होंने कहा कि 15 दिसंबर को होने वाले जनमत संग्रह को वह कराना चाहते हैं, जिसमें मिस्र के नए संविधान पर वोटिंग होनी है. इससे पहले विपक्षी पार्टियां आपस में मिल कर यह तय करने वाली हैं कि उनका अगला कदम क्या होगा. अप्रैल 6 यूथ मूवमेंट नाम की पार्टी ने मुर्सी के ताजा एलान को "राजनीतिक चाल बताया है, जिससे जनता को चुप कराया जा सके."
अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी आईएईए के पूर्व प्रमुख और मिस्र में विपक्षी नेता मुहम्मद अल बारादेई ने भी इस फैसले के बाद ट्वीट किया, "ऐसा संविधान जो हमारे अधिकारों पर पहरा लगाए, हम वैसे संविधान को उखाड़ फेंकेंगे."
तहरीर पर हिंसक विरोध
बुधवार को इस मुद्दे पर राजधानी काहिरा में जबरदस्त प्रदर्शन हुए, जिसमें सात लोगों की जान चली गई और 600 लोग घायल हो गए. इसके बाद मिस्र की ताकतवर सेना ने राष्ट्रपति महल के चारों ओर सैनिक तैनात कर दिए.
शनिवार को पहली बार इस राजनीतिक संकट में पड़ते हुए सेना ने एलान किया कि सभी पार्टियां मिल कर बातचीत से इस मुद्दे को सुलझा लें ताकि "मिस्र को एक गहरी अंधेरी खाई में जाने से रोका जा सके." सेना ने कहा, "यह ऐसी चीज है, जिसके लिए हम कतई इजाजत नहीं देंगे."
एक कदम पीछे, एक आगे
लेकिन अलावा ने इस बात की भी घोषणा की है कि अगले शनिवार को प्रस्तावित जनमत संग्रह होगा. उन्होंने कहा कि मुर्सी कानूनी तौर पर यह जनमत संग्रह कराने को बाध्य हैं.
विपक्षी नेताओं ने बार बार मांग की है कि विवादित आदेश के अलावा जनमत संग्रह के फैसले को रद्द किया जाए, तभी वे बातचीत के लिए राजी होंगे. पिछले गुरुवार को उनकी बातचीत इस वजह से टल गई थी क्योंकि राष्ट्रपति मुर्सी आदेश वापस नहीं लेना चाहते थे.
विवादित संविधान ड्राफ्ट
विपक्षी पार्टियों का कहना है वे संविधान के ड्राफ्ट को नहीं मानते क्योंकि यह मानवाधिकार और महिलाओं के अधिकार के खिलाफ है. साथ ही अल्पसंख्यकों को भी कम अधिकार दिए गए हैं. इस प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार समिति की प्रमुख नवी पिल्लै भी चिंता जता चुकी हैं, "मुझे लगता है कि जो लोग चिंता में हैं, उनकी चिंता जायज है." पिछले साल मिस्र की क्रांति में हुस्नी मुबारक के हटने के बाद हुए चुनाव में कट्टरपंथी पार्टी मुस्लिम ब्रदरहुड जीत कर सत्ता में आई है.
जानकारों का कहना है कि मुर्सी को जनता का अच्छा समर्थन हासिल है और इसलिए प्रस्तावित संविधान पर उन्हें बहुमत मिल सकता है. लेकिन उनका कहना है कि इसके नतीजे बेहद खराब हो सकते हैं. वाशिंगटन में नियर ईस्ट पॉलिसी के एरिक ट्रेगर का कहना है, "मुस्लिम ब्रदरहुड समझता है कि उसे बहुमत का साथ हासिल है, इसलिए वह संविधान पर आधारित जनमत संग्रह में जीत हासिल कर सकता है." उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि अगर ऐसा होता है, तो देश लंबे संकट में जा सकता है.
खुश नहीं मिस्र वाले
मिस्र की राजधानी काहिरा के ऐतिहासिक तहरीर चौक पर मुर्सी के फैसले पर कोई जश्न नहीं मना. मुर्सी विरोधी प्रदर्शनकारी मुहम्मद शाकिर ने कहा, "इससे कोई बदलाव नहीं होने वाला है. वह हमें शहद भी देंगे, तो भी हम नहीं मानेंगे."
एजेए/एएम (एएफपी, रॉयटर्स)