मिस्र में 683 लोगों को सजाए मौत
२८ अप्रैल २०१४जैसे ही मिस्र की एक अदालत में चल रहे सबसे बड़े मुकदमे में फैसला सुनाया गया, कुछ बुजुर्ग महिलाएं सुबकती हुई सड़कों पर निकल आईं. पारंपरिक पोशाक और सफेद साफा बांधे एक आदमी अपनी आंखें पोंछता दिखा. और मीनिया शहर में अदालत के सामने जमा भीड़ से एक व्यक्ति चिल्लाया, "सरकार इस देश में गरीबों को सजा दे रही है." मीनिया की अदालत ने पिछले कुछ महीनों में दूसरी बार इस तरह का चिंताजनक फैसला सुनाया है, 683 लोगों को फांसी की सजा. उन पर हिंसक विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लेने और एक पुलिसकर्मी की हत्या का आरोप है.
एक महीने पहले जज सईद यूसुफ ने 529 कट्टरपंथियों को इन्हीं आरोपों के तहत मौत की सजा दी थी. इस बीच 37 लोगों की मौत की सजा की पुष्टि की गई है और दूसरों की सजाए मौत को उम्र कैद में बदल दिया गया है. हालांकि अभी उनके पास अपील का मौका है. लेकिन फिर भी उनके परिजन चिंतित हैं. एक महिला कहती है, "मेरे छह बच्चे हैं. वे मुझे फांसी पर लटका दें, लेकिन मेरे बच्चों को पालने वाले को नहीं."
सिर्फ दो दिनों की सुनवाई के बाद इतने लोगों को मौत की सजा दिए जाने पर पूरे मिस्र में आक्रोश है. बहुत से लोगों का कहना है कि खराब जांच के कारण बहुत से निर्दोष लोगों को सजा मिली है. बचाव पक्ष के एक वकील का कहना है कि यह राजनीतिक फैसला है. मुहम्मद सलाह कहते हैं, "अदालत का फैसला सबूतों के आधार पर होता है, लेकिन यदि जज अपने राजनीतिक विचारों के आधार पर फैसला सुनाएगा तो न्याय कैसे होगा?"
मुस्लिम ब्रदरहुड पार्टी के निर्वाचित राष्ट्रपति मुहम्मद मुर्सी को 2013 की गर्मियों में सेना द्वारा उनके पद से हटाए जाने के बाद मिस्र की सरकार इस्लामी कट्टरपंथियों के खिलाफ काफी सख्ती बरत रही है. तख्तापलट के खिलाफ जब मुर्सी के समर्थकों ने देश भर में प्रदर्शन शुरू किया तो सेना ने उसे दबा दिया. काहिरा और सिकंदरिया में धरना और प्रदर्शनों पर पुलिस कार्रवाई में 100 से ज्यादा लोग मारे गए. इस बीच मुस्लिम ब्रदरहुड पर प्रतिबंध लगा दिया गया है और शासन सेना के हाथों में है.
एक महीने में चुनाव हैं, जिसमें पूर्व सेना प्रमुख जनरल अब्दुल फतह अल सिसी के जीतने की पूरी संभावना है. जिन लोगों को मीनिया की अदालत ने फांसी की सजा सुनाई है उनमें मुस्लिम ब्रदरहुड के प्रमुख मुहम्मद बादी भी शामिल हैं. सरकार इस संगठन पर पिछले महीनों में हुए आतंकवादी हमलों का भी आरोप लगा रही है. इस्लामी संगठन इन आरोपों से इनकार कर रहा है. मुर्सी के खिलाफ भी जासूसी और आतंकवाद के आरोप हैं. उन्हें भी फांसी की सजा हो सकती है.
मिस्र में इस समय सिर्फ इस्लामी कट्टरपंथियों को ही कानूनी दमन का निशाना नहीं बनाया जा रहा है. लोकतंत्र के लिए संघर्ष करने वाले कार्यकर्ता भी मिस्र की जेलों में बंद हैं. मीनिया की अदालत के फैसले के कुछ ही समय बाद राजधानी काहिरा में एक छात्र संगठन के खिलाफ फैसले की खबर आई है. इस संगठन ने 2011 में जन प्रदर्शनों में सक्रिय भूमिका निभाई थी जिसका अंत राष्ट्रपति होसनी मुबारक के पतन के साथ हुआ. अब जासूसी और राज्य को बदनाम करने के आरोपों के साथ संगठन की गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है.
एमजे/एजेए (डीपीए)