वैज्ञानिकों का कहना है कि पर्यावरण को ज्यादा नुकसान पहुंचाए बिना भी दुनिया की बढ़ती आबादी का पेट भरा जा सकता है. बस इसके लिए मीट की खपत घटानी होगी, खाने की बर्बाद रोकनी होगी और खेती करने के बेहतर तरीके अपनाने होंगे.
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वैज्ञानिक कहते हैं कि अगर ऊपर बताई गई बातों में से किसी एक ही भी अनदेखी की हुई तो उससे जलवायु परिवर्तन की रफ्तार तेज होगी, प्रदूषण बढ़ेगा और प्राकृतिक संसाधन सिमटते चले जाएंगे. इसका मतलब है कि धरती इसानों के लिए असुरक्षित होती जाएगी.
इस बारे में एक ताजा अध्ययन के लेखक मार्को स्प्रिंगमन कहते हैं कि धरती की बिगड़ती हालत को संभालने के लिए कई मोर्चों पर काम करना होगा. उन्होंने अपने इस अध्ययन में समझने की कोशिश की है कि खाद्य उत्पादन का हमारे पर्यावरण पर क्या असर हो रहा है.
वह कहते हैं, "अगर समाधानों को एक साथ लागू किया जाए, तो हमारी रिसर्च दिखाती है कि दुनिया की बढ़ती आबादी का पेट भरना मुमकिन है." संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि 2050 तक दुनिया की आबादी लगभग 10 अरब हो जाएगी, जिसका पेट भरने के लिए 50 प्रतिशत ज्यादा भोजन उत्पादन की जरूरत होगी.
ये हैं सबसे ज्यादा मीट खाने वाले देश
सबसे ज्यादा मीट कहां खाया जाता है? चलिए जानते हैं संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन के आंकड़े क्या कहते हैं. गौर करने वाली बात यह मांस में चिकन और रेड मीट को ही शामिल किया जाता है. मछली या अन्य सीफूड उसमें नहीं आते.
अमेरिका
सालाना प्रति व्यक्ति 120 किलो मांस की खपत
तस्वीर: Colourbox
कुवैत
सालाना प्रति व्यक्ति 119.2 किलो मांस की खपत
तस्वीर: Yasser Al-Zayyat/AFP/Getty Images
ऑस्ट्रेलिया
सालाना प्रति व्यक्ति 111.5 किलो मांस की खपत
तस्वीर: AFP/Getty Images
बाहमास
सालाना प्रति व्यक्ति 109.5 किलो मांस की खपत
तस्वीर: Getty Images/AFP/G. De Cardenas
लग्जमबर्ग
सालाना प्रति व्यक्ति 107.9 किलो मांस की खपत
तस्वीर: Reuters
न्यूजीलैंड
सालाना प्रति व्यक्ति 106.4 किलो मांस की खपत
तस्वीर: Imago
ऑस्ट्रिया
सालाना प्रति व्यक्ति 102 किलो मांस की खपत
तस्वीर: AP
फ्रेंच पॉलिनेसिया
सालाना प्रति व्यक्ति 101.9 किलो मांस की खपत
तस्वीर: picture-alliance
बरमुडा
सालाना प्रति व्यक्ति 101.7 किलो मांस की खपत
तस्वीर: picture alliance/CTK/digifoodstock
अर्जेंटीना
सालाना प्रति व्यक्ति 98.3 किलो मांस की खपत
तस्वीर: Nelson Almeida/AFP/Getty Images
स्पेन
सालाना प्रति व्यक्ति 97 किलो मांस की खपत
तस्वीर: picture-alliance/blickwinkel/T. Llabres
इस्राएल
सालाना प्रति व्यक्ति 96 किलो मांस की खपत
तस्वीर: Reuters/A. Awad
डेनमार्क
सालाना प्रति व्यक्ति 95.2 किलो मांस की खपत
तस्वीर: Nils Meilvang//AFP/Getty Images
कनाडा
सालाना प्रति व्यक्ति 94.4 किलो मांस की खपत
तस्वीर: Reuters/M. Rehle
सेंट लुसिया
सालाना प्रति व्यक्ति 93.6 किलो मांस की खपत
तस्वीर: picture alliance/Food and Drink Photos/C. Bozzard-Hill
पुर्तगाल
सालाना प्रति व्यक्ति 93.4 किलो मांस की खपत
तस्वीर: Imago/Peter Widmann
सेंट विंसेंट एंड द ग्रेनाडिनेंस
सालाना प्रति व्यक्ति 91.4 किलो मांस की खपत
तस्वीर: Jenifoto - Fotolia
नीदरलैंड्स एनटाइल्स
सालाना प्रति व्यक्ति 91 किलो मांस की खपत
तस्वीर: Fotolia/anna liebiedieva
इटली
सालाना प्रति व्यक्ति 90.7 किलो मांस की खपत
स्लोवेनिया
सालाना प्रति व्यक्ति 88.3 किलो मांस की खपत
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अध्ययन बताता है कि अगर मौजूदा तौर तरीकों में बदलाव नहीं किया गया तो ज्यादा खाद्य उत्पादन का पर्यावरण पर बड़ा दुष्प्रभाव होगा. अभी की तुलना में यह दुष्प्रभाव 2050 में 90 फीसदी तक बढ़ सकता है जिससे पृथ्वी इंसानों के रहने के लिए सुरक्षित नहीं होगी.
स्कैंडेनेवियन थिंक टैंक ईएटी की यह रिसर्च कहती है कि हालात बेहतर हों, इसके लिए सबको ऐसी डाइट की तरफ लौटना होगा, जिसमें सब्जियां, फल और मेवे ज्यादा हों और मीट के साथ साथ दूध से बने उत्पाद कम रहें.
श्प्रिंगमन कहते हैं कि हफ्ते में रेड मीट एक बार या उससे भी कम खाया जाए. संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन का कहना है कि मवेशी 14.5 प्रतिशत ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं.
शोधकर्ता कहते हैं कि इस वक्त एक तिहाई खाना कूड़ेदानों में जा रहा है. इस बर्बादी में कम से कम 50 फीसदी की कटौती करनी होगी. इसके अलावा धरती की उपजाऊ शक्ति बढ़ाने, रिसाइकल हो सकने वाली खाद अपनाने और जल प्रबंधन को बेहतर करने की भी जरूरत है.
स्प्रिंगमन कहते हैं, "आम उपभोक्ता के लिए संदेश यही है कि वह अपने खान पान के तरीके बदले और अपने राजनेताओं से कहे कि वे बेहतर कानून बनाएं."
एके/ओएसजे (रॉयटर्स)
जर्मनी के खाने पर संकट
कीटनाशकों से प्रभावित जहरीले अंडे लाखों की तादाद में जर्मन बाजार में पहुंच गये. अंडो से लेकर घोड़ों के मांस और स्ट्रॉबेरी से लेकर अंकुरित अनाज तक आइये एक नजर खाने के उन मामलों पर डालते हैं जिनका देश पर बड़ा असर हुआ.
तस्वीर: Getty Images/AFP/V. Jannink
जहरीले अंडे
बेल्जियम, नीदरलैंड्स और जर्मनी से लाखों की तादाद में अंडे फेंके जा हैं. पता चला है कि इन अंडों में फिप्रोनिल कीटनाशक है. यह बेहद जहरीला कीटनाशक है जो ज्यादा मात्रा में लेने पर लीवर, थायरॉयड ग्रंथी और किडनी को प्रभावित कर सकता है. नीदरलैंड्स की 150 से ज्यादा पॉल्ट्री फॉर्म बंद कर दिए गए हैं और कई जर्मन सुपरमार्केट से अंडे गायब हो गये हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/V. Jannink
ब्राजील का बीफ
मार्च 2017 में कई देशों ने ब्राजील से मांस के आयात पर रोक लगा दी. एक पुलिस छानबीन में मता चला कि मीट पैक करने वाले खराब मीट बेच रहे थे. कुछ मामलों में तो खराब मीट की गंध छुपाने के लिए कैंसर पैदा करने वाले रसायनों का इस्तेमाल हो रहा था. जर्मनी ने 2016 में ब्राजील से 114,000 टन मीट और मीट से बनी दूसरी चीजों का आयात किया था. हालांकि जर्मन प्रशासन का कहना है कि देश में खराब मीट नहीं बेचा गया.
तस्वीर: Picture alliance/NurPhoto/C. Faga
बावेरियाई बेकरियों में चूहा
इसी साल की शुरुआत में जर्मन उपभोक्ता संरक्षण समूह फूडवॉच ने खबर दी कि बावेरिया की कई बड़ी बेकरियों में चूहे और फफूंद मिले हैं. संगठन ने 2013 से 2016 के बीच हुई 69 खोजबीन का हवाला दिया. एक बेकरी के सामान में चूहों के बाल और कुतरने के निशान भी मिले. जबकि एक दूसरी बेकरी में आटे के ढेर में घूमते कॉकरोच और बड़ी तादाद में चूहे का मल मिला.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/P. Knecht
घोड़े का मांस!
2013 में यूरोप के लाखों लोगों को पता चला कि बीफ और पोर्क वाले जिन चीजों को वो बड़े चाव से खा रहे थे उनमें दरअसल घोड़े का मांस था. यह सिलसिला तब शुरु हुआ जब आयरिश भोजन सुरक्षा निरीक्षकों को बीफ बर्गर में घोड़े का फ्रोजेन मांस मिला. बाद की जांच में पता चला कि जर्मनी समेत यूरोपीय संघ के कई देशों में खाने के लिए तैयार भोजन के रूप में बेचे जा रहे मांसाहारी पकवानों में घोड़े का मांस था.
तस्वीर: Reuters
स्ट्रॉबेरी ने चौंकाया
2013 में 11 हजार से ज्यादा स्कूली बच्चे अचानक बीमार हो गये उन्हें उल्टी हो रही थी और डायरिया हो गया था. इन सब ने एक ही बैच की डीप फ्रोजेन स्ट्रॉबेरी खाई थी. भारी तादाद में जहरीली स्ट्रॉबेरी ने पूर्वी जर्मनी के 500 स्कूलों और शिशु केंद्रों को प्रभावित किया था. बच्चे भाग्यशाली रहे कि ज्यादातर को जल्दी ही राहत मिल गयी और केवल 32 बच्चों को अस्पताल ले जाना पड़ा.
तस्वीर: Mehr
डायोक्सिन का दंश
2012 में हजारों जर्मन फार्मों को अस्थायी रूप से बंद करना पड़ा. इनमें से ज्यादातर लोअर सैक्सनी के फार्म थे. वजह ये थी कि उन्हें मिले दाने में डायोक्सीन था. जर्मन अधिकारियों का कनहा था कि इस खराब दाने को मुर्गियों और सूअरों को खिलाया गया. इसका असर मुर्गियों के अंडों पर हुआ. मांस भी दूषित हुआ. खराब अंडे और मांस ब्रिटेन, चेक गणराज्य, नीदरलैंड्स और पोलैंड तक गये थे.
तस्वीर: picture alliance / ZB
ई कोलाइ का कहर
2011 में ई कोलाई वायरस सब्जियो में मिला और नतीजे में उत्तरी जर्मनी के 4000 से ज्यादा लोग घातक डायरिया और एक दूसरी बीमारी के मरीज बन गये जो उनकी किडनी बेकार कर सकती थी. 50 से ज्यादा लोगों की मौत हुई. इसके पीछे लोअर सैक्सनी से आए अंकुरित अनाजों को जिम्मेदार माना गया.