मीडिया पर पाबंदी के विरोध में कश्मीरी पत्रकारों का प्रदर्शन
४ अक्टूबर २०१९भारत सरकार ने मुस्लिम बहुल जम्मू कश्मीर प्रांत से 5 अगस्त को विशेष दर्जा छीन लिया था. संविधान की धारा 370 में संशोधन के साथ ही लोगों की आवाजाही और संचार के साधनों पर रोक लगा दी गई. हजारों की संख्या में सशस्त्र बलों की तैनाती हुई और सैकड़ों राजनैतिक कार्यकर्ताओं को हिरासत में ले लिया गया. लेकिन अब दो महीने बीतने का बाद भी सामान्य स्थिति पूरी तरह बहाल नहीं हुई है.
कश्मीर के तमाम हिस्सों से कई तरह की पाबंदियां हटाई गई हैं लेकिन इसके कई हिस्सों में अभी भी मोबाइल सेवाएं और इंटरनेट ठप्प हैं. गुरुवार शाम कश्मीर प्रेस क्लब के बाहर बैठ कर कश्मीर घाटी के दर्जनों पत्रकारों ने एक मूक विरोध प्रदर्शन किया. उन्होंने बांह पर काली पट्टी बांध रखी थी और कई संदेश लिखे प्लेकार्ड उठाए थे. इन पर "संचार नाकाबंदी: 60 दिन और अब भी जारी" और "नाकाबंदी खत्म करो" जैसे नारे लिखे थे.
पत्रकारों के 11 एसोसिएशनों और कई पत्रकार संघों के पत्रकारों, संपादकों और फोटोग्राफरों ने मिल कर एक बयान जारी किया. उसमें सरकार से पूछा गया कि "और कब तक घाटी के पत्रकारों को केवल आधिकारिक विज्ञप्तियों और प्रेस ब्रीफिंग पर निर्भर करना पड़ेगा जो कि केवल एकतरफा संवाद है?" भारत सरकार ने कश्मीर में मीडिया सुविधा केंद्र स्थापित किया हुआ है जहां से पत्रकार कंप्यूटरों और मोबाइल फोनों का कुछ देर के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं.
कश्मीर प्रेस क्लब के महासचिव इशफाक तांत्री ने कहा, "कोई प्राइवेसी नहीं है. करीब 300 पत्रकार रोजाना उन सुविधाओं का इस्तेमाल करते हैं और ये भरा रहता है. इसे मोनीटर भी किया जाता है, हम पर निगरानी रखी जा रही है."
कश्मीर के एक स्थानीय वेब-आधारित समाचारपत्र की संपादक ने भारतीय न्यूज चैनल एनडीटीवी को बताया कि वह अपने पेपर को अपडेट नहीं कर पा रही हैं क्योंकि उनका घाटी के तमाम जिलों में मौजूद अपने संवाददाताओं के साथ नियमित संपर्क स्थापित नहीं हो पाता है. उन्होंने बताया, "एक रिपोर्ट मिलने में दो दिन तक लग जाते हैं." एसोसिएशन की ओर से जारी बयान में कहा गया, "संचार के इस तरह के ब्लैक आउट, खासकर इंटरनेट को बंद रखना और मोबाइल सेवाएं ठप्प रखना पेशेवर पत्रकारों के काम को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है."
आरपी/एमजे (डीपीए, एपी)
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